शनिवार, 16 अगस्त 2025

नकारात्मक विचार

नकारात्मक विचार 

 नकारात्मक विचार हमारे अन्तस में अंगद की तरह पैर जमाकर विद्यमान रहते हैं। उन्हें हिला पाना असम्भव तो नहीं पर बहुत कठिन अवश्य हो जाता है। सकारात्मक विचारों पर ये नकारात्मक विचार जब हावी हो जाते हैं तब मनुष्य निराशा के अन्धकूप में गोते खाते हुए डगमगाने लगता है। उसे वहॉं से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिलता और वह छटपटाता रहा जाता है।
             नकारात्मक विचार से तात्पर्य है कि मनुष्य हर समय निराश रहता है। अच्छी-से-अच्छी बात में भी वह बुराई ढूँढता रहता है। स्वादिष्ट भोजन में भी उसे आनन्द नहीं आता। दिन-रात निराशा के गर्त में डूबा वह धीरे-धीरे स्वयं ही सबसे कटने लगता है। न तो उसे किसी का साथ अच्छा लगता है न किसी की सलाह पसन्द आती है। टीवी, फिल्म, सैर-सपाटा, मित्रों का साथ, विवाह, पार्टी आदि उत्सव कुछ भी उसे नहीं भाता। इन सबसे वह कन्नी काटने लगता है और वहॉं जाने से कतराते लगता है। यदि उसे उसके घर-परिवार के लोग या बन्धु-बान्धव उसे इन स्थानों पर जाने के लिए जिद करते हैं तो वह उनसे नाराज हो जाता है।
            इस तरह वह अपने आप को सबसे काटकर अकेला कर लेता है, अलग-थलग कर लेता है। सारा समय बस उल्टा-सीधा सोचता रहता है।ऐसी स्थिति यदि लम्बे समय तक चलती रहे तो मनुष्य को किसी पर विश्वास नहीं रहता। उसे ऐसा लगने लगता है कि सभी उसके दुश्मन हैं। इसलिए वह अपने घर के सदस्यों से भी कन्नी काटने लगता है। उसके मन में यही डर घर करने लगता है कि वे किसी-न-किसी बहाने से मार डालेंगे। उसकी ऐसी सोच से सभी परेशान हो जाते हैं। उसे सब समझाते हैं पर अविश्वास का सर्प फन फैलाकर उसके हृदय में बैठ जाता है।
             'आत्मानुशासन' नामक पुस्तक का यह श्लोक हमें समझा रहा है-
     जीविताशा धनाशा च येषां तेषां विर्धिविधि:।
     किं करोति विधिस्तेषां येषामाशा निराशता।।
अर्थात् जिनको जीने की और धन की आशा है उनके लिए विधि विधि है परन्तु उन लोगों का विधि या भाग्य क्या करेगा जिनकी आशा निराशा में बदल गई हो।
             कहने का तात्पर्य यही है कि जीवन में जो व्यक्ति आशा को अपना सखा बना लेता है, वह कभी हार नहीं मानता। सफलता निश्चित ही उसके कदम चूमती है। इसके विपरीत जो व्यक्ति आशा को छोड़कर निराशा का दामन थाम लेता है, वह हर पल दुखी रहता है। उसे किसी का समझाना बुरा लगता है। ऐसा व्यक्ति शीघ्र ही डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। तब उस पर डाक्टरों के पास जाकर अपना मेहनत से कमाया हुआ पैसा और समय नष्ट करना पड़ता है। समस्या यह है कि ऐसे लोग डाक्टर के पास भी तो नहीं जाना चाहते। 
            'जातकमाला' नामक पुस्तक में कवि आर्यशूर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है-
      निरीहेण स्थातुं क्षणमपि न युक्तं मतिमता।
अर्थात् बुद्धिमान का एक भी क्षण निरीह की तरह रहना उचित नहीं। यानी उसे पल भर भी निराश नहीं होना चाहिए।
             जिस क्षण मनुष्य के मन में नकारात्मक विचारों का उदय होता है उसी पल उनका दुष्प्रभाव उसके शरीर पर भी परिलक्षित होने लगता है। शरीर पर होने वाले कुछ प्रभाव यहाँ दे रही हूँ -
1. शरीर एसिड छोड़ता है।
2. मनुष्य की औरा पर प्रभाव पड़ता है।
3.  आत्मविश्वास में कमी आती है।
4. शरीर का पाचन तंत्र प्रभावित होता है।
5. हार्ट बीट बढ़ती है।
6. बल्ड प्रेशर बढ़ता है।
7. अनचाहे हारमोन शरीर से निकलते हैं।
            नकारात्मक विचारों के चलते मनुष्य स्वयं को तो हानि पहुँचाता ही देता है और दूसरों को भी हानि पहुँच सकता है। ऐसा इन्सान आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध तक कर बैठता है। वह तो इस जीवन से मुक्त हो जाता है पर अपने पीछे परिवारी जनों के लिए समस्याओं का अम्बार लगा जाता है। पुलिस उन पर शक करती है और बार-बार पूछताछ करने आती है। वे लोग अपनी नजरें झुकाकर चलने के लिए विवश हो जाते हैं। लोग उन पर सन्देह करते हुए उनसे तरह-तरह के प्रश्न पूछते हैं जिनका उत्तर उनके पास नहीं होता। 
            जहाँ तक सम्भव हो सकारात्मक विचारों को अपनाएँ। अनावश्यक सोच-सोचकर स्वयं को पीड़ित नहीं करना चाहिए। अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए। सबके साथ मिलजुल कर रहना आरम्भ कीजिए। स्वयं को हमेशा क्रियात्मक कार्यो में व्यस्त रखने का यथासम्भव प्रयास करना चाहिए। अपने सद् ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिए। ईश्वर की उपासना में समय व्यतीत करना चाहिए। एवंविध उपायों को अपनाने लें तो इस निराशा से छुटकारा पा सकते हैं। इसलिए सदा ही सकारात्मक विचारों को अपनाकर नकारात्मक विचारों से बचा जा सकता है और प्रसन्न रहा जा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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