समय प्रतीक्षा नहीं करता
समय कभी किसी की प्रतीक्षा नहीं करता क्योंकि उसे इसकी आदत नहीं है। वह किसी का गुलाम नहीं है। जो समय का गुलाम बन जाता है, समय उसका सर्वस्व हरण कर लेता है। उसे नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है। उसकी विशेषता यह है कि वह किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जो समय को नष्ट करता है, वह उन्हें बर्बाद कर देता है। जो व्यक्ति उसका मूल्य पहचान लेता है और उसका सदुपयोग करता है, उसे वह जीवन की ऊँचाइयों की ओर ले जाता है।
हमें सदा ही समय के साथ-साथ कदमताल करते हुए चलना चाहिए। जो व्यक्ति समय के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलता है, सफलता उसके ही कदम चूमती है।Time is money कहकर हमें यही समझाने का प्रयास किया गया है कि जैसे हम अपने धन की सुरक्षा करते हैं, वैसे ही समय की भी सार-सम्हाल करनी चाहिए। समय के मूल्य को पहचानकर अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने से कार्यों में सफलता अवश्य मिलती है। इसी भाव को संस्कृत भाषा के महाकवि कालिदास ने अपने 'रघुवंशम्' महाकाव्य में कहा है-
काले खलु समारब्धा: फलं बध्नन्ति नीतय:।
अर्थात् समय पर जिन नीतियों को आरम्भ किया जाता है, वहीं फलदायी होती हैं।
इसके विपरीत समय के साथ जो व्यक्ति रेस नहीं लगा पाता, वे समय की दौड़ में पिछड़ जाता है। उसे जीवन के हर कदम पर निराशा एवं असफलता का सामना करना पड़ता है। असफल व्यक्ति का कोई मीत नहीं होता। कोई उसका हाथ थामकर चलना नहीं चाहता। उसके अपने प्रिय बन्धु-बान्धव उनसे किनारा कर लेते हैं। उसके साथ खड़े होने में उन्हें शर्म महसूस होती है।
महाभारत में स्पष्ट रूप से कहा है-
अकाले कृत्यमारब्धं कर्तुं नार्थाय कल्पते।
अर्थात् असमय (समय बीतने पर) किया गया कार्य व्यर्थ हो जाता है। यानी उसकी उपयोगिता समाप्त हो जाती है। फिर बस लकीर पीटते रहे जाने वाली बात होती है।
हमें समय का गुलाम नहीं बनना चाहिए बल्कि उसे अपनी मुट्ठी में कर लेना चाहिए। तभी हम एक सफल इन्सान बन सकते हैं। चारों ओर हमारा यश फैलेगा अन्यथा तब failure व्यक्ति होने का ठप्पा हमारे ऊपर लग जाएगा। तब सभी लोग हिकारत की नजर से देखने लग जाते हैं। यहाँ कोई भी असफल व्यक्ति का साथी नहीं बनना चाहता। हर व्यक्ति उससे किनारा कर लेना चाहता है। उसे सारा जीवन ही निराशा का सामना करना पड़ सकता है। धीरे-धीरे निराशा के गर्त में डूबा व्यक्ति जीवन की बाजी ही हार जाता है।
जो प्रबुद्ध जन समय रहते उसकी नब्ज पहचान लेते हैं, वे चमत्कार करते हैं। वे ही आकाश की ऊँचाई को छूने से लेकर समुद्र की गहराई तक को नाप लेते हैं। वे लोग ही हमारी सुख-सुविधा के लिए नित्य नए-नए अविष्कार करके सदा मानव जाति को कृतार्थ करते हैं। यही लोग अपने महान कालजयी ग्रन्थों की रचना करते हुए हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
भारतीय संस्कृति के पोषक हम लोग मानते हैं कि यह मानव जन्म बहुत दुर्लभ है। चौरासी लाख योनियों में भटकने के पश्चात ही यह मिलता है। इस अमूल्य जीवन को अपने आलस्य के कारण यूँ ही बर्बाद नहीं करना चाहिए। समय रहते यदि इसे सत्कर्मों में प्रवृत्त किया जाए तभी इसकी सार्थकता है अन्यथा अन्तिम समय हमारे पास पश्चाताप करने का समय भी नहीं बचेगा। महर्षि वाल्मीकि ने 'वाल्मीकिरामायणम्' में कहा है-
अत्येति रजनी या तु, सा न प्रतिनिवर्तते। अर्थात् जो रात बीत जाती है वह कभी लौटकर नहीं आती। यानी बीता हुआ समय हमारी पहुॅंच से दूर हो जाता है।
रावण, कंस, हिरण्यकश्यप, दुर्योधन, हिटलर जैसे घमण्डियों और विश्व की अनेक संस्कृतियों के विनाश का साक्षी यह समय है। समय कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता। वह हम लोगों से भी यही उम्मीद करता है कि अपने अतीत को बार-बार दोहराने का कोई लाभ नहीं। जो गलतियॉं हमने अपने भूतकाल में की हैं, उनसे शिक्षा लेकर कर आगे बढ़ने में ही समझदारी है। अनावश्यक ही उसी स्थान पर जमकर खड़े रहने से हम अपने साथ शत्रुता निभाने का कार्य करते हैं।
अपनी शारीरिक क्षमता और आत्मिक शक्ति को पहचानकर जब समय रहते हम अपने कार्य का सम्पादन करेंगे तभी कामयाब होने में सफल हो सकेंगे। सफलता का मूलमन्त्र है समय की नब्ज को पहचानकर आगे बढ़ो और मनचाहा फल हाथ बढ़ाकर तोड़ लो। तभी अपने जीवन में हर प्रकार का सुख प्राप्त करने के स्वप्न को साकार किया जा सकता है। समय की रेत पर अपने पैरों के निशान छोड़ने वाला बनने का हमें यथासम्भव प्रयास करना चाहिए। इस प्रकार समय का मूल्य हम सबको जान-समझकर हमें अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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