रविवार, 3 अगस्त 2025

अपने कर्त्तव्यों से जी चुराना

अपने कर्त्तव्यों से जी चुराना 

अपने कर्त्तव्यों से कभी जी नहीं चुराना चाहिए। जो व्यक्ति अपने दायित्वों से जी चुराता है, वह कभी भी सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता। अपनी हानि तो वह करता ही है, साथ ही अपने लोगों को भी नुकसान पहुँचाता है। मनुष्य को अपने घर-परिवार की आवश्यकताओं को पूर्ण करने का भरसक यत्न करना चाहिए। परन्तु यदि वह इसमें चूक जाता है तो उसकी पत्नी, उसके माता-पिता और उसके अपने बच्चे उसे लानत-मलानत करते हैं। ऐसी स्थिति में परिवार तक बिखर जाता है।
          अब देखिए एक व्यक्ति बीमार पड़ा है और उसे तुरन्त डाक्टर के पास ले जाने की आवश्यकता है। यदि मनुष्य आजकल करके समय बर्बाद करेगा तो हो सकता है रोगी का रोग इतना बढ़ जाए कि उसे प्राणों से ही हाथ धोने पड़ जाएँ। उसके पश्चात तो बस प्रायश्चित करना ही शेष बचता है। सारी आयु उसके मन में कसक रह जाती है कि यदि उचित समय पर इलाज करवा लिया जाता तो वह प्रियजन शायद उन्हें छोड़कर न जाता।
          अपने कार्यक्षेत्र में काम में कोताही करने से अपने बॉस या मालिक से डाँट-फटकार सुनने को मिलती है। यदि बारबार चेतावनी मिलने पर भी यदि मनुष्य अपनी आदत में सुधार नहीं करता तो नौकरी से हाथ भी धोना पड़ सकता है। उस समय मनुष्य पैसे-पैसे का मोहताज हो जाता है। घर-परिवार में हर स्थान पर उसे तिरस्कृत होना पड़ता है। पर अब तीर हाथ से निकल चुका होता है। नयी नौकरी मिलने में पता नहीं कितना समय लग जाए। तब तक क्या स्थिति होगी? इसकी कल्पना हम सब कर सकते हैं।
           अपने व्यापार में मनुष्य को अपनी सुस्ती के कारण हानि उठानी पड़ सकती है। हद तो तब हो जाती है जब उसकी योजनाओं का लाभ कोई और उठा लेता है। तब हाथ मलने के अतिरिक्त कोई और चारा नहीं बचता। इसका यह अर्थ हुआ कि जब तक मनुष्य अपने काम को सच्चाई व ईमानदारी से न करे तो उसे सफलता नहीं मिलती। वह जीवन की रेस में पिछड़ जाता है। 
             हम अपने आसपास देखते हैं कि कुछ लोगो को अपने धन-वैभव का, किसी को अपनी सुन्दरता का, किसी को अपनी योग्यता आदि का घमण्ड होता है। वे अपने सामने दूसरे लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं। अपने दम्भ के कारण सबसे अलग दिखना चाहते हैं। इसलिए किसी के साथ मिलना या काम करने में अपना अपमान समझते हैं। ऐसे लोगों को आम जन जब नजरअंदाज करते हैं तो उन्हें बहुत कष्ट होता है। सीधा-सा अर्थ है कि यदि समाज में किसी के काम न आ सकें तो यह मानव जीवन व्यर्थ है।
            अपने घर-परिवार की ओर नजर डालिए। कितनी भी सुन्दर व पढ़ी लिखी गुणी बहु-बेटी हो पर यदि काम न करे तो वह बड़े-बजुर्गों की नजर से उतर जाती है। इस संसार में उसी की इज्जत होती है जो सबके साथ मिल-जुलकर रहे व घर-बाहर के कार्यों को सुघड़ता से पूरे करे। इसीलिए हमारे बड़े-बुजुर्ग कहा करते है- 
              काम प्यारा होता है चाम नहीं।
                        और 
       इस देह को चील कौवे ने भी नहीं खाना।
अर्थात् हर व्यक्ति को काम अच्छा लगता है, सुन्दर शरीर नहीं भाता। इस शरीर को चील और कौवों ने भी नहीं खाना। इस कथन का अर्थ है कि हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार मृत्यु के अन्तर यह शरीर अग्नि के हवाले कर दिया जाता है।        
           एवंविध घर-परिवार में जो लड़का अपने  समय पर पढ़ाई न करके मस्ती करता है, वह रदौड़ में पिछड़ जाता है। फिर समय आने पर वह ठीक से काम-धन्धा नहीं करता और उनकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाता, वह किसी का भी प्रिय नहीं होता। गाहे-बगाहे चलते-फिरते उसे सबकी छींटाकशी का शिकार बनना पड़ता है। समाज में उसी को सम्मान मिलता है जो अपनी मेहनत के बल पर अपना एक स्थान बनाता है। दूसरों को अपनी योग्यता के बल पर पछाड़ कर कहीं ऊँचाइयों को छूने का साहस करता है। कामचोर कहीं भी रहे सफल व्यक्ति नही बन सकता।
            दुनिया का दस्तूर है कि वह चढ़ती कला को प्रणाम करते हैं। प्रातःकालीन उदय होते सूर्य को सभी प्रणाम करते हैं, उसे अर्घ्य देते हैं और उसकी पूजा करते हैं। वहीं पर अस्त होते सूर्य को कोई पूछता ही नहीं है। मनुष्य उदय का चाहने वाला है अस्त का नहीं। सफल व्यक्ति के आस-पास लोग इस प्रकार मंडराते हैं जिस प्रकार गुड़ के ऊपर मक्खियाँ। असफल व्यक्ति के साथ एक कदम भी चलने के लिए कोई तैयार नहीं होता।
            अपने जीवन से कामचोरी की आदत को शीघ्रातिशीघ्र छोड़कर यत्नशील बनना चाहिए। परिश्रम करने वाले की कभी हार नहीं होती। स्वयं को इस समाज में एक सम्मानजनक स्थान दिलाने के लिए हमें अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए आगे बढ़ते रहना है।
चन्द्र प्रभा सूद

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