शनिवार, 23 अगस्त 2025

अहं का प्रश्न न बनाऍं

अहं का प्रश्न न बनाऍं

हम अपने घर के दरवाजे व खिड़कियाँ रात को बन्द करके रखते हैं। प्रातःकाल सूर्य आता है, हमारे द्वार पर खड़ा रहता है और दस्तक देता है। अब यह हमारी इच्छा पर निर्भर करता है कि हम अपने घर का दरवाजा खोलते हैं या नहीं। चुपचाप मौन खड़ा रहकर वह कुछ पल हमारी प्रतीक्षा करता रहता है। अपने प्रति हमारे द्वारा की गई उपेक्षा या उदासीनता को देखकर वह हमसे कोई गिला-शिकवा नहीं करता। फिर बिना कुछ कहे ही वह वापिस लौट जाता है। है न यह सूर्य की महानता?
             सूर्य ने कभी इसे अपने अहं का प्रश्न नहीं बनाया। यदि हमारे इस व्यवहार से सूर्य अपना अपमान समझ लेता तो हम लोगों की तरह हमारी शक्ल दुबारा न देखने की कसम खा लेता। अब सोचिए यदि ऐसा हो जाए और सूर्य अगले दिन से ही उदय होने से इन्कार कर दे तो ब्रह्माण्ड की क्या स्थिति हो जाएगी? चारों ओर हाहाकार मच जाएगा। सम्पूर्ण पृथ्वी पर शीत का ही साम्राज्य हो जाएगा। चारों ओर बर्फ-ही-बर्फ जम जाएगी। फिर हर तरफ त्राहि-त्राहि मच जाएगी। हम सभी जीवों का जीवन तत्काल ही समाप्त हो जाएगा।
             चन्द्रमा रात्रि में आकाश को सुशोभित न करें तो चारों ओर अन्धकार का साम्राज्य हो जाएगा। राहगीरों को कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। सबका मामा कहा जाने जब चन्दा रूठ जाएगा तो उसकी कल्पना कीजिए। चॉंद कवियों और लेखकों की प्रेरणा है। फिर वे बेचारे क्या करेंगे? अब वायु को ही ले लीजिए। यदि वह कहे कि युगों-युगों से बस मैं सबकी जीवनी शक्ति हूॅं फिर भी लोग दूषित करते हैं। अब मैं सबको मजा चखाती हूॅं। बताइए वायु के नाराज होने पर हम पर मर भी जीवित नहीं रह सकेंगे।
              जल भी न जाने कितने ही युगों से हमारी सारी आवश्यकताओं को पूरा करता है। फिर भी हम उसमें गंदगी डालते हैं। उसके नाराज होने पर तो सब कुछ वहीं-का-वहीं थम जाएगा। कृषि न होने की स्थिति में सब भूखे मर जाऍंगे। विद्युत का उत्पादन न होने पर सर्वत्र अन्धेरा अपने पैर जमाकर बैठ जाएगा। हमारी सुविधा के लिए जुटाए गए सभी उपकरण धरे रह जाऍंगे। हमारा जीवन कष्टमय हो जाएगा। इस सबकी कल्पना करके ही हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
               ईश्वर निर्मित सम्पूर्ण सृष्टि इस प्रकार हमारी बेवकूफियों व गुस्ताखियों को नजरअंदाज करके हमें ईश्वरीय नेमतों से मालामाल करती है।
जब प्रकृति हमारी गलतियों की हमें सजा नहीं देती। वह क्षमाशील हो सकती है तो ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना हम मनुष्य क्यों नहीं? यह प्रश्न रह-रहकर मन को पुनः पुनः उद्वेलित करता है।
            किसी ने जरा-सा कुछ कह दिया या हमारी ओर ध्यान नहीं दिया तो हम यह मानने लगते हैं कि अमुक व्यक्ति ने हमारा अपमान कर दिया है। उसे हमारी रत्ती भर भी परवाह नहीं है। चाहे यह सब अनजाने में ही हुआ हो। ऐसा भी हो सकता है कि जिसे हम अपना शत्रु मान चुके हैं, वह इस सबसे अनजान हो। परन्तु हम अनावश्यक ही नकारात्मक विचारों की गाँठ मन में बॉंधे  सोच-सोचकर व्यर्थ ही परेशान होने लग जाते हैं। 
             उस समय हम अपने आपे से बाहर होकर किसी भी प्रकार से हर हालत में उस व्यक्ति से बदला लेने के लिए मचलने लगते हैं। कभी उसका चेहरा न देखने की कसम तक खा लेते हैं। भविष्य में उसके घर न जाने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो जाते हैं। यह तो नहीं हो सकता कि हर स्थान पर हमारा ही डंका बोले। हम इतने विशिष्ट हो गए हैं कि सारा संसार हमारी पूजा करे। सबको देख लेने और दुनिया को आग लगा देने वाले हमारे विचार किसी तरह से सही नहीं कहे जा सकते।
      अपने अहन के कारण हर किसी को भी देख लेने और हर कदम पर दूसरों को नीचा दिखाने वाली प्रवृत्ति के कारण हम बदले की आग में जलते रहते हैं। ईर्ष्या और क्रोध की अग्नि में जलते हुए हम अपने दुश्मन स्वयं ही बन जाते हैं। तब हार्ट अटैक, बी पी, शूगर, डिप्रेशन जैसी नामुराद व लाइलाज बीमारियों को हम अनायास ही न्यौता दे बैठते हैं। उस समय दिन-रात एक करके परिश्रम से कमाए गए धन को और अपने अमूल्य समय को हम डाक्टरों के हवाले करते हैं। राई को पहाड़ बनाकर निरर्थक ही हम अपने और अपनों के दुख का कारण बन जाते हैं। अपने स्वास्थ्य व धन की हानि करते हुए अपनी मानसिक शान्ति भंग करने का दुष्कार्य करते हैं। 
              उस समय ग्रन्थों द्वारा समझाए गए ये वचन भूल जाते हैं कि अहंकार करने वाले का कभी भला नहीं होता। उसका अन्त  हमेशा ही भयानक होता है। इतिहास के पन्नों में ऐसे लोगों के नाम सदा के लिए दफन हो जाते हैं। युगों तक कोई भी उनका नाम सम्मान से नहीं लेता। हमें यथासम्भव अपने झूठे अहं से स्वयं को बचाना चाहिए ताकि किसी प्रकार के मानसिक व शारीरिक आघातों से दूर रह सकें। हम प्रकृति की तरह क्षमाशील बनकर अपने जीवन को सन्तुलित रखने में समर्थ हो सकें।
चन्द्र प्रभा सूद

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