छोटी-छोटी खुशियॉं तलाशिए
हम लोग सुखों को खोजने में इतना अधिक व्यस्त हो जाते हैं कि बड़ी-बड़ी खुशियों की तलाश करने के लिए यहाँ-वहाँ भटकते रहते हैं। उस चक्कर में हम अपनी छोटी-छोटी खुशियों की ओर ध्यान नहीं दे पाते, उन्हें अनदेखा कर देते हैं। पर शायद यह सब अनजाने में ही हो जाता है। वैसे तो सभी लोग अपने जीवन में खुशियाँ ही चाहते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में कभी दुखों का सामना नहीं करना चाहता।
वास्तव में खुशियों के पल जीवन में पलक झपकते ही बीत जाते हैं। या यूँ कह सकते हैं कि रेत पर पड़ी मछली की तरह हमारे हाथ से फिसल जाते हैं। शायद इसलिए हमें ऐसा लगता है कि हम कभी सुखी रह ही नहीं पाए। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि जब सुख आता है तो उस समय हम बहुत अधिक आनन्द में डूब जाते हैं। तब हमें ऐसा प्रतीत होता है कि जब हम खुशियॉं मनाऍं तो सारी कायनात हमारे सुख में शामिल हो जाए। आनन्द में सराबोर हमें दिन-रात का भान ही नहीं हो पाता। सुख के ये पल हमें बहुत तेजी से भागते हुए प्रतीत होते हैं। इसलिए हमें लगता है कि सुख आए भी और जल्दी ही चले गए।
यहाँ एक उदाहरण प्रस्तुत करती हूँ। मान लीजिए घर में किसी की शादी एक माह पश्चात है। वह पूरा महीना योजनाएँ बनाते, खरीददारी करते, सबको न्योता देने, मेहमानों की आवभगत करते हुए एवं शादी के फंकशन में भाग लेते हुए बीत गया। हमें वह एक महीना ऐसा लगता है कि मानो बहुत थोड़ा-सा समय था जो पलक झपकते हुए सपने की तरह बीत गया। अपने घर-परिवार और अपने सभी बन्धु-बान्धवों के साथ हॅंसी-खुशी में बिताया हुआ वह समय हमें कम लगता है।
इसके विपरीत दुख का समय जब हमारे जीवन में आता है तब हमें ऐसा प्रतीत होता है कि वह हमें अधिक समय तक घेरकर परेशान कर रहा है। कष्ट का समय बिताए नहीं बीतता। पल-पल हमारी परेशानी बढ़ती रहती है। हमें कुछ भी अच्छा नहीं लगता। बीमारी, दुर्घटना अथवा अन्य किसी कारण आए हुए दुख के समय एक-एक दिन तो क्या पलभर भी भारी हमें लगने लगता है। इस तरह सुख का समय हमें कम लगता है और दुख के समय ऐसा लगता है कि वह रबर की तरह खिंचता ही चला जा रहा है।
हमें जीवन में छोटी-छोटी खुशियों को ढूँढना है और उन पलों को समेटना है। उन नन्हीं खुशियों को गॅंवाना नहीं है। वे हो सकती हैं- प्रतिवर्ष आने वाले परिवारी जनों के जन्मदिन और शादी की साल गिरह, बच्चे का मनचाहे स्कूल में दाखिला या कैरियर चयन, कक्षा में अच्छे अंक लाना, बच्चे को प्राइज मिलना, घर में किसी छोटी-बड़ी वस्तु की खरीददारी, घूमने जाना, व्यस्तता में कुछ पलों को चुराकर सिनेमा देखना या शापिंग करना अथवा डिनर के लिए जाना।
मेहमानों का अपने घर पर आना या स्वयं मेहमान बनकर किसी दूसरे के घर जाना भी तो खुशियाँ ही देता है। इन सभी पलों को समेटने का यथासम्भव प्रयत्न करना चाहिए। इन खुशियों का आनन्द भोगना चाहिए, इनसे वंचित नहीं रहना चाहिए। घर-परिवार में बड़ी-बड़ी खुशियाँ तो अपने समय पर ही आती हैं। जैसे बच्चे का जन्म, उसका मुण्डन, बच्चे का सेटल होना, शादी-ब्याह, नया घर या गाड़ी खरीदना, व्यापार या नौकरी में सफलता आदि। ये सभी सुख या खुशियाँ नित्य प्रति हमारे जीवन में नहीं आ सकतीं।
इन सुखों को ढूँढने के लिए जंगलों, तीर्थ स्थानों या तथाकथित गुरुओं के पास, तान्त्रिकों या मान्त्रकों के पास कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है। किसी के पास इस समस्या का हल नहीं मिलेगा। यदि किसी के पास इसका हल होता तो दुनिया में भटकाव की स्थिति न होती। हम इस विषय में जानकारी जुटाने के लिए कदापि उत्सुक नहीं होते। हम केवल शार्टकट अपनाना चाहते हैं। वह सम्भव नहीं होता।
हमारे पूर्वकृत कर्मों के अनुसार जो भी सुख अथवा दुख हमें जीवन में मिलते है, उन्हें धैर्यपूर्वक भोगना चाहिए। यदि हम बड़ी और छोटी सभी प्रकार की खुशियों का आनन्द ले सकेंगे तो हमारा जीवन बहुत चैन से बीतेगा। अन्यथा हम अनावश्यक रूप से तनावग्रस्त रहेंगे जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। सबसे प्रमुख बात यह है कि हर खुशी या सुख का भोग करते समय हम प्रभु को धन्यवाद देना न भूलें जिसने हमें छप्पर फाड़कर खुशियाँ दी हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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