सोमवार, 11 अगस्त 2025

जल में कमल की तरह रहना

जल में कमल की तरह रहना 

 मनीषी हमें समझाते हुए कहते हैं कि इस संसार में जल में कमल की तरह रहना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि कमल का फूल कीचड़ में जन्म लेता है। परन्तु फिर भी तालाब के कीचड़ वाले जल का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह उसमें रहते हुए भी वह उससे निर्लिप्त रहता है। तालाब का जल और कीचड़ दोनों उसे छू भी नहीं सकते। यहॉं पर हम कह सकते हैं कि तालाब का जल इस संसार का प्रतीक है और मनुष्य कमल का।
              जल में कमल की भाँति रहने का यह अर्थ कदापि नहीं कि हम अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर इस दुनिया से विदा लेकर साधु-सन्यासी बनकर जंगलों में शरण ले लें। वहाँ पर तपस्या करते हुए गुमनाम रहकर अपने इस भौतिक जीवन की इहलीला को समाप्त करके परलोक गमन कर जाऍं। आजकल न तो वह माहौल ही रह गया है और न ही कोई ऐसा करना चाहता है।
            अपने सभी कार्यकलापों को करते हुए और अपने दायित्वों को भलीभाँति निभाते हुए, उनसे निर्लिप्त रहकर हमें दुनिया में रहना चाहिए। हम यदि ऐसा कर सकें तो दुनिया के सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय, दिन-रात, सर्दी-गर्मी आदि द्वन्द्व कष्ट नहीं देते। मोह-माया के बन्धन हम पर हावी नहीं हो सकते। इसलिए निर्द्वन्द्व होकर दुनिया में रहने से हम सबके प्रिय हो जाते हैं। कमल के फूल की तरह चारों दिशाओं में अपना जलवा बिखेर सकते हैं। समाज में अपना एक स्थान बना सकते हैं।
              'श्रीमद्भवद्गीता' में भगवान श्रीकृष्ण इस अवस्था को स्थितप्रज्ञ की संज्ञा देते हैं। महाराज जनक राज्य के सभी कार्यों को करते हुए, अपने घर-परिवार के दायित्वों का निर्वहण करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते थे। इसीलिए उन्हें विदेहराज जनक कहा जाता है। महाराज जनक की भॉंति अपने सभी दायित्वों का निर्वहण करते हुए हम अपना जीवन व्यतीत करें। भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण आदि महामानव भी अपने इहलौकिक दायित्वों का पालन करते हुए ही इस पृथ्वी पर हमारे आदर्श बने। उनकी हम पूजा-अर्चना करते उ।
               हमारे प्राचीन ऋषि-मुनि भी अपने-अपने गृहस्थाश्रम का पालन करते हुए संसार में निर्लिप्त होकर रहते थे। ईश्वर की उपासना करते हुए वे अपने लक्ष्य मोक्ष की ओर कदम बढ़ाते थे। 
            विशेष अनुष्ठान करते समय कमल के फूलों को अर्पित किया जाता है, हर पूजा में नहीं। इसी से इस फूल का महत्त्व समझ में आ जाता है। इसी प्रकार संसार में कमल के फूल की तरह रहने वाले मनुष्य भी विशेष होते हैं। वे दुनिया की भेड़चाल में नहीं रहते बल्कि अपनी एक अलग पहचान रखते है। इससे ही उनके महत्त्व को हम समझ सकते हैं। वे जन साधारण की सोच से परे होते हैं। उनके साथ स्पर्धा करना हर किसी के बस की बात नहीं होती। वे असाधारण प्रतिभा सम्पन्न, दयालु, परोपकारी सज्जन व्यक्ति अपने दिव्य गुणों के कारण ही युगों-युगों तक स्मरणीय होते हैं।
            इस श्रेणी में हम उन विभूतियों को स्मरण कर सकते हैं जिन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना देश, धर्म, जाति व समाज के आत्मोत्सर्ग किया। कितने ही युवाओं ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों का बलिदान किया। ऐसे ही महापुरुष इतिहास के रचने वाले होते हैं। उनके उन निस्वार्थ बलिदानों को युगों-युगों तक आने वाली पीढ़ियाँ श्रद्धावनत होकर याद करती रहती हैं।
            जल में कमल की तरह रहना ही इस संसार का सार है। जिसने इस असार संसार के सार को समझ लिया मान लीजिए उसका बेड़ा पार हो गया। जन्म-मरण के बन्धनों से मुक्त होकर, चौरासी लाख योनियों के फेर से वह मनुष्य स्वतन्त्र हो जाता है। फिर वह अपने परम लक्ष्य मोक्ष को निश्चित ही प्राप्त कर लेता है। ऐसा ही व्यक्ति संसार में सबका अपना बनकर महान हो जाता है और ईश्वर का प्रिय बन जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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