शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। इसका कारण यह माना जाता है कि खरबूजे के पहले फल के पकने पर उसमें से एथिलिन नामक कोई गैस निकलती है। जैसे ही एक खरबूजा पकता है, उसकी गन्ध वातावरण में फैलने लगती है। पहले आसपास के खरबूजे रंग बदलने लगते हैं। धीरे धीरे पूरा खेत एथेलिन की वजह से रंग बदलने लगता है। उस समय यह मायने नहीं रखता कि खरबूजा 100 ग्राम का है अथवा 1 किलोग्राम का है। उस समय सभी खरबूजे एक ही रंग में नजर आते है।
              यह उक्ति हम मनुष्यों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। हम लोग भी खरबूजे की तरह रंग बदलने में माहिर हैं। हम मनुष्य एक-दूसरे की नकल बहुत शीघ्र कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि जिस वातावरण या संगति में मनुष्य रहता है, वैसे ही गुण उसमें भी आ जाते हैं। यदि वह अच्छे लोगों के साथ रहता है तो उसमें भी सद् गुणों का विकास होने लगता है। उनकी अच्छाई, उनका व्यवहार और उनकी सोच उसे प्रभावित करती है।  अपने दोषों को दूर करने की समझ उसमें आने लगती है।
              हम मनुष्य दूसरों के अच्छे कामों को तो बहुत पसन्द करते हैं। जब उन्हें अपनाने की बारी आती है तो हम आनाकानी करने लगते हैं। हम बगलें झॉंकने लगते हैं। तब हम सोचते हैं कि ये सभी कार्य दूसरे लोग करें या दूसरों के घर से इनकी शुरूआत हो। सच्चाई और ईमानदारी की राह बहुत कठिन होती है। इस रास्ते पर चलने वालों को अपेक्षाकृत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इस मार्ग पर चलने वाले अन्ततः अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करते हैं।
              इसके विपरीत यदि मनुष्य बुरे लोगों के साथ रहते हैं, तो उसमें भी बुरे गुण आ सकते हैं। उनकी बुरी आदतें, उनका नकारात्मक रवैया और उनकी गलत सोच उसे प्रभावित कर सकती है। दूसरों के गलत कार्यों का बिना परिणाम सोचे-समझे हम एकदम से नकल करने लगते हैं। पड़ोसी के घर बेइमानी या रिश्वत का पैसा बहुत आ रहा है और उनकी सुख-समृद्धि में अचानक बढ़ोत्तरी हो रही है। यह बात हम पचा नहीं पाते और चल पड़ते हैं उसी गलत राह पर। इसी प्रकार भ्रष्टाचारी, चोरबाजारी, दूसरों का गला काटकर अपने वैभव को बढ़ाने में हम पलभर भी नहीं गॅंवाना चाहते। इसके लिए हमें कोई भी मूल्य क्यों न चुकाना पड़े। इसका परिणाम कुछ भी होगा देखा जाएगा वाली हमारी प्रवृत्ति बनती जा रही है। बिना सोचे-समझे हम हर जगह अपनी नाक घुसेड़ते रहते हैं।
                पड़ोसी या मित्र के घर नई गाड़ी, बड़ा फ्रिज, बड़ा टीवी, महंगा मोबाइल आदि आ जाएँ या वे नया घर खरीद लें तो हमारे दिन-रात का चैन खो जाता है। पता नहीं  हमारी नाक कैसी है जो जरा सी बात पर कटने लगती है। फिर बस कवायद शुरु हो जाती है उसे खरीदने की चाहे हमारे पास पैसा है या नहीं है। हमें कर्जा भी लेना पड़ेगा तो कोई समस्या नहीं पर हमारी तो नाक ऊँची हो जाएगी। फिर हम बैंक की ओर आशा भरी नजरों से देखते हैं। तब हम अनावश्यक ई. एम. आई. के रूप में अपने ऊपर खर्च का एक और बोझ बढ़ा लेते हैं।
              गिरगिट तो मुसीबत आने पर रंग बदलती रहती है परन्तु हम इन्सान तो पल-पल में अपना रंग बदलते रहते हैं। हमारे लिए हर समय एक जैसा ही रहता है। अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए गधे को भी बाप बनाने में जरा-सा परहेज नहीं करते। उसके लिए खड़े-खड़े पचासों बयान बदल देते हैं जिसकी आवश्यकता ही नहीं होती। चाहे सुनने वाला हमारी मक्कारी समझकर हमारी पीठ पीछे मजाक ही क्यों न उड़ाए। हम सोचते हैं कि अब वह हमारी मुट्ठी में आ गया है। हम सोच लेते हैं कि हमने उसे उल्लू बना दिया है पर यह नहीं समझ पाते हैं कि अनजाने में हमारा ही उल्लू बन गया है। 
               रत्नाकर डाकू (महर्षि वाल्मीकि) साधुओं की संगति में महर्षि बने। उन्होंने कालजयी रामायण की रचना की। क्रूर अगुलीमाल डाकू महात्मा बुद्ध का शिष्य बना। ऐसे कुछ ही लोग होते हैं जो सज्जनों की संगति में आकर अपने कुमार्ग को त्याग कर सन्मार्ग पर आ जाते हैं। इन्हें हम लोग अपवाद के रूप में ही मान सकते हैं।
                इस संसार में प्रायः ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो सच्चाई व ईमानदारी के रास्ते को छोड़कर किसी भी कारण से या लालचवश शार्टकट अपनाने के कारण कुमार्गगामी बन जाते हैं। समय बीतने पर जब उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जब उनकी पोल खुल जाती है तब वे दुखी हो जाते हैं। न्याय व्यवस्था के अपराधी बन जाते हैं। सबसे नजरें चुराते हुए वे अपने आप को सबसे काटकर अकेला कर लेते हैं। अकेलेपन का दंश झेलने के लिए विवश हो जाते हैं।
               हमें खरबूजे की तरह रंग बदलने वाला इन्सान बनने के स्थान पर अपने असूलों पर डटे रहना चाहिए। जो व्यक्ति अपने नियम-कानून का पालन ईमानदारी से करता है, वही विश्व में पूजनीय होता है। लोग उसे अपने सिर ऑंखों पर बिठाते हैं।‌ हमें अपने विचारों की दृढ़ता बनाए रखनी चाहिए जिससे हमारी अपनी एक संयमित छवि सबके समक्ष आ सके। हम अपना सम्मानित स्थान संसार में बनाए रख सकें।
चन्द्र प्रभा सूद 

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