बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

मेरे मन कुछ और है मालिक के मन और

मेरे मन कुछ और है मालिक के मन और

हम सबके जीवन में प्रायः ऐसे क्षण आते हैं कि जब हम कल्पना कुछ करते हैं और परिणाम विपरीत आ जाता है। तब हम हक्के-बक्के से रह जाते हैं। हम बस योजनाऍं ही बनाते रहे जाते हैं और हमारी योजनाओं पर पानी फिर जाता है। वे सब धरी की धरी रह जाती हैं। उस समय न चाहते हुए भी हमें अपरिहार्य स्थितियों का सामना करना पड़ता है। हमें समझ ही नहीं आता कि आखिर हमारे साथ क्या हो रहा है? उस समय यही कह सकते हैं -
       मेरे मन कुछ और है मालिक के कुछ और
         इस उक्ति को कहने का तात्पर्य यही है कि हम अपने मन से कुछ भी सोच सकते हैं, कार्य कर सकते हैं, होगा वही जब ईश्वर चाहेगा। तुलसीदास जी ने भी कहा था -
       होइहि सोइ जो राम रचि राखा
इसका अर्थ भी यही है कि जो कुछ भगवान श्रीराम जी ने पहले से ही रच रखा है, वही होगा। 
         दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ईश्वर ने पहले ही हमारे लिए सब कुछ निर्धारित किया हुआ है। यानी अपने कर्मों के द्वारा जन्मों-जन्मों में हम जो कमाते हैं, वही हमारा प्रारब्ध होता है। उसी के अनुसार हम फल प्राप्त करते हैं। यहॉं एक बात स्पष्ट कर दूॅं कि ईश्वर के मन में किसी जीव के लिए कोई दुर्भावना नहीं है। फिर भी हम सदा ही उसे दोष  देते रहते हैं। अपने गिरेबान में झॉंककर देखना ही नहीं चाहते।
         हम मनुष्य तो सदा ही ऊँची उड़ान भरना चाहते हैं पर वह मालिक जानता है कि हम मुँह के बल गिर जाएँगे या हमारे पंख जल जाएँगे। इसीलिए वह हमारी रक्षा करने के लिए हमें झटका दे देता है। उसकी महिमा को हम अज्ञानी नहीं समझ पाते। हम बस मात्र अपने स्वार्थो की पूर्ति करना चाहते हैं। तभी तो हम हमेशा उसकी महानता को अनदेखा करके उसे पानी पी-पीकर कोसते हैं और अपना शत्रु तक मान बैठते हैं। जबकि वह परमपिता तो खुले मन से बाहें पसार कर कदम-कदम पर हमारी रक्षा ही करता है।
            वह हमें दुनिया में भेजने के पश्चात हमारी सारी आवश्यकताओं को हमारे कहे बिना कहे ही पूर्ण कर देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि वह इतने एहसान हम पर करता है पर हमें जताता भी नहीं है। इसके विपरीत यदि किसी मनुष्य पर हम राई जितना उपकार करते हैं तो उसे पहाड़ जितना बढ़ा-चढ़ाकर हर जगह गाते फिरते हैं। हम उस व्यक्ति से यही आशा करते हैं कि जीवन भर वह हमारे अहसान के बोझ के नीचे दबा रहे और हमारे सामने अपनी नजर नीची रखे। 
          वह मालिक अपने मन से जीवन पर्यन्त पहाड़ जितने उपकार हम पर करता रहता है परन्तु कभी उनका अहसास तक नहीं कराता। हम हर समय झोली पसारे उससे धन-दौलत, अच्छा स्वास्थ्य, आज्ञाकारी संतान, सुख-समृद्धि, अच्छी नौकरी या खूब चलता व्यापार, उच्च शिक्षा, बढ़िया-सी गाड़ी, बड़ा-सा बंगला, नौकर-चाकर आदि न जाने क्या-क्या माँगते रहते हैं। फिर भी उसी का तिरस्कार करते हैं, उसकी कद्र नहीं करते। कभी सोचिए कि हम कितना गलत सोचते हैं और इसका प्रायश्चित कीजिए।
          दुनिया में रहते हुए कभी कोई पारिवारिक जन, मित्र, सम्बन्धी, पड़ोसी या कोई अन्य व्यक्ति हमारी सहायता करता है, तो पचासों बार हम उसका धन्यवाद करते हैं और उसकी प्रशस्ति में  गाते नहीं थकते। परन्तु उस प्रभु का जो झोलियाँ भरकर, बिन माँगे ही हमें सारी नेमते देता रहता है, उसका न तो हम कभी धन्यवाद करते हैं और न ही कभी उसकी स्तुति करते हैं। यहाँ हम अनायास कंजूस हो जाते हैं। हालांकि वह हमारे मन में आने वाली छोटी-छोटी इच्छाओं को भी देर-सवेर पूरा कर देता है।
           हमें यह अहसास ही नहीं होता कि हमें उस मालिक का सच्चे मन से गुनगान करना चाहिए। मनीषी कहते हैं कि यदि हम सुख में परमपिता का याद करें, तो दुख हमारे पास नहीं आएँगे। कहने का तात्पर्य यह है कि हम बिना दिखावे के अपने हृदय की गहराइयों से, मन की भावना से मालिक का स्मरण करेंगें, तो दुख या शूल भी हमारे लिए फूल की भाँति बन जाएँगे। हमें उनसे कष्ट नहीं होगा बल्कि वे हमारे मार्गदर्शक बनकर हमें उन्नति के पथ पर ले चलेंगे।
          वह एक दाता सब जीवों को उनकी योग्यता व पूर्वजन्मों के कृत कर्मों के अनुसार समय-समय पर देता रहता है। हम सब कुछ शीघ्र प्राप्त कर लें, इस कारण उतावले रहते हैं। हम भूल जाते हैं कि समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता। भाग्योदय का समय जब आ जाएगा तब हम यदि मिट्टी को भी हाथ लगाएँगे, तो वह भी सोना बन जाएगी। अतः समय की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए और अपने परमपिता परमात्मा पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। वह कभी हमें निराश नहीं करेगा। 
           हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मानुसार वह हमारी सभी मनोकामनाओं को समय से पूर्ण कर देता है। उसके घर में देर हो सकती है पर अंधेर नहीं हो सकता। इसके लिए कारण हमारे अपने शुभाशुभ कर्म होते हैं। अपने अन्तर्मन की गहराइयों से अपनी त्रुटियों के लिए क्षमायाचना करते हुए उस प्रभु के समक्ष विनत हो जाना चाहिए। वही भव सागर से पार लगाएगा और माता के समान अपनी गोद में स्थान देगा।
चन्द्र प्रभा सूद 

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