अन्तरात्मा या आत्मा की आवाज
सभी मनुष्यों के मन से एक ध्वनि(आवाज) आती है जिसे अन्तरात्मा या आत्मा की आवाज कहते हैं। यह हमें सही और गलत का एहसास कराती है। यह हमें बताती है कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। अन्तरात्मा की आवाज अक्सर नैतिक मूल्यों और सिद्धान्तों से जुड़ी होती है। यह अन्तरात्मा की आवाज हमारे मन का वह हिस्सा है जो हमें बताता है कि हम जो कर रहे हैं, वह नैतिक रूप से सही है या गलत। इसे आन्तरिक आवाज भी कहा जाता है।
इसके बारे में हम सबने सुना है। सोचने की बात यह है कि आखिर यह आत्मा की आवाज है क्या? इस विषय में यही कहा जा सकता है कि इस आवाज को हम अपने भीतर से ही सुनते हैं। खासकर ऐसे समय में जब हम कुछ नैतिक या अनैतिक करने की कोशिश कर रहे होते हैं। यह आवाज हमें चेतावनी देती है, जगाती है और प्रोत्साहित करती है। इसे केवल हम ही सुन सकते हैं। हमारे पास बैठा हमारा कोई प्रियजन अथवा कोई मित्र तक भी नहीं सुन सकता। यह इस आवाज की विशेषता है।
यह आवाज कहीं बाहर से नहीं आती बल्कि हमारे अन्त:करण से आती है। जैसे हम लोग अपने बन्धु-बान्धवों से बात करके उसे गुप्त रखते हैं ताकि उसकी सिक्रेसी बनी रहे, उसी तरह हमारे अन्तस से आने आवाज भी गुप्त रहती है। इसीलिए यह किसी अन्य व्यक्ति को सुनाई नहीं देती। ईश्वर ने इस प्रकार यह विधान बनाया है। वह स्वयं प्रत्यक्ष होकर हमें कुछ नहीं कहता पर इस आवाज के माध्यम से हम लोगों को सजग अवश्य करता रहता है। इस प्रकार वह मालिक सदैव हमारी चेतना को झिंझोड़ता रहता है।
यह आवाज हमें कब जगाती है? यह विचारणीय विषय है। जब भी हम कोई शुभ कार्य (घर-परिवार, समाज आदि के नियमानुसार कार्य) करते हैं तब हमारे मन में उत्साह होता है, खुशी होती है। इसका अर्थ है कि हमारा किया जाने वाला कार्य करणीय है अर्थात् करने योग्य है। यही वे कार्य हैं जो हमें मानसिक शान्ति व चैन की जिन्दगी प्रदान करते हैं। हमें उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाते जाते हैं। अपने उत्थान के लिए उन कार्यों को सावधानी से करते रहना चाहिए।
इसके विपरीत जिन कार्यों को करते समय हमारे मन में उत्साह नहीं होता, वह बैचेन हो जाता है या परेशान होता है। वे निश्चित ही अकरणीय (न करने योग्य) कार्य होते हैं। घर-परिवार, समाज आदि के नियमों के विरूद्ध किया जाने वाला होता है यह कार्य है। इसका यही अर्थ होता है कि हमें वह कार्य किसी भी शर्त पर नहीं करना चाहिए। इन कार्यों को करने से मन व्यग्र रहता है। हमारा दिन-रात का चैन छिन जाता है। ऐसे कार्यों को करने में असफलता हाथ लगती है। इसलिए इन कार्यों को न करना ही हमारे लिए उचित होता है।
मन में होने वाली उथल-पुथल को गहराई से समझने पर स्वयं हम ज्ञात कर सकते हैं कि हमें कौन-से कार्य करने चाहिए और किन्हें छोड़ना चाहिए। यह आवाज सदा हमें पतन के रास्ते पर जाने से रोकती है। ईश्वर कभी नहीं चाहता कि हम उसके बच्चे कुमार्गगामी बन जाऍं। घर-परिवार, देश-समाज, पुलिस-कानून आदि से डर-डरकर हम जीवन व्यतीत करें। उसकी यही इच्छा होती है कि हम सन्मार्ग पर चलकर उसके पास जाने का अपना मार्ग प्रशस्त करें।
हमें अपने विचारों और भावनाओं को शान्त करने की आवश्यकता है ताकि हम अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुन सकें। ध्यान और आत्म-चिन्तन हमें अपनी अन्तरात्मा से जुड़ने में सहायता कर सकते हैं। नैतिक मूल्यों का पालन करने से हम अपनी अन्तरात्मा को दृढ़ बना सकते हैं। अन्तरात्मा की आवाज एक शक्तिशाली उपकरण है जो हमें सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकती है। कुछ लोगों के लिए अन्तरात्मा की आवाज एक आध्यात्मिक अनुभव भी हो सकती है, जो उन्हें अपनी आत्मा से जोड़ती है। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपनी अन्तरात्मा की आवाज सुनें।
हम इस आवाज को अपने अहंकार के कारण अनसुना करते रहते हैं तो एक समय ऐसा आ जाता है जब उसे सुन ही नहीं पाते। यह हमें चेतावनी देती रहती है। हमें जगाने का कोई मौका नहीं छोड़़ती। परन्तु बस हम ही उससे अनजान बने रह जाते हैं। हम अपनी इसी अज्ञानता के चलते हम दुखों के सागर में डूबते-उतरते रहते हैं। तब हम यह विचार करने लगते हैं कि हमने ऐसा क्या अपराध किया जिस कारण दुख-परेशानियाँ हमारा पीछा नहीं छोड़ रही हैं।
यदि हम अपनी आत्मा की आवाज सुनेंगे और उसे ईश्वर की आज्ञा मानकर कार्य करेंगे तब हम वास्तव में सफलता की सीढ़ियाँ चढेंगे। हमारा मन प्रफुल्लित रहेगा, उत्साहित रहेगा। अपनी व अपनों के जीवन में सुख-शान्ति बनी रहे, इसके लिए अन्तरात्मा की आवाज को अनसुना न करते हुए हम निरन्तर आगे बढ़ते रहें। ईश्वर हम सबका मार्ग प्रशस्त करे।
चन्द्र प्रभा सूद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें