बच्चों पर अंकुश
हमारे सयाने कहा करते थे कि यदि आप बच्चे को गलत काम के लिए दण्डित नहीं करते हैं तो वह सही काम करना नहीं सीख पाएगा। अंग्रेजी भाषा की यह उक्ति इसी बात की पुष्टि करती है -
Spare the rod and spoil the child
माना कि आज युग बदल रहा है और विद्यालय व घर में अध्यापकों व माता-पिता को बच्चों पर हाथ न उठाने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि बच्चों पर अंकुश न लगाया जाए।
यदि आप चाहते हैं कि आपके बच्चे संस्कारी व योग्य बनें तो उन्हें अनुशासन में रखना बहुत आवश्यक है। विदेशों का अन्धानुकरण करके हम अपने बच्चों के जीवन से खिलवाड़ नहीं कर सकते। हम टीवी की खबरों में देखते हैं और समाचार पत्रों में पढ़ते रहते हैं कि विदेशों में छोटे-छोटे बच्चे पिस्तौल लेकर स्कूल जाते हैं। जरा-सी बात होने पर अपने साथियों पर गोलियाँ चलाकर उनकी जान ले लेते हैं।
अब आप सभी सुधीजन स्वयं ही विचार कीजिए कि हम अपनी आनेवाली पीढ़ी को ऐसे ही असहिष्णु व उद्दण्ड बनाना चाहते हैं? यदि आप ऐसा ही चाहते हैं तो फिर कोई समस्या नहीं। इसके विपरीत यदि आप चाहते हैं कि आपके अपने बच्चे आपकी अवहेलना न करें और संस्कारी बन जाऍं तो उसके लिए आपको परिश्रम करना पड़ेगा। बच्चों की ओर ध्यान देना परम आवश्यक है। उन्हें प्रतिदिन थोड़ा समय देना आरम्भ कीजिए। उन्हें अपने पास बैठाकर दुनिया की ऊॅंच-नीच समझाइए।
बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। आप अपने बच्चे को जैसा बनाना चाहते हैं, वह वैसा ही बन जाएगा। यहाँ पर मैं एक कुम्हार का उदाहरण देना चाहती हूँ। कुम्हार मिट्टी को मनचाहा आकार देकर अपनी इच्छित वस्तुएँ बनाता है। उसी प्रकार मासूम और कोमल बच्चों को हम कोई भी आकार दे सकते हैं। यह सत्य है कि उनमें आप ही की छवि दिखाई देगी। लोग यही कहेंगे कि फलॉं व्यक्ति का बच्चा जा रहा है। यह एक दिन अपने माता-पिता का नाम रौशन करेगा।
बच्चा घर के बाहर या किसी मित्र-सम्बन्धी के यहाँ जाकर या स्कूल-कालेज में उद्दण्डता करेगा तो लोग माता-पिता को ही दोष देते हैं कि बच्चों को उन्होंने तमीज नहीं सिखाई। तब उन्हें शर्मिन्दगी का समना करना पड़ता है। उस समय वे अपनी झेंप मिटाने के लिए वे तर्क देते हैं कि क्या करें हमारा बच्चा थोड़ा शरारती हैं। पर ऐसा कहकर वे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो सकते। माता-पिता होने का दायित्व तो उन्हें निभाना ही होगा। बच्चों की जिम्मेदारी उठाने से वे बच नहीं सकते।
जो बच्चे हर स्थान पर ही अनुशासित रहते हैं, उन्हें बारबार सबसे प्रशंसा मिलती है। इसका अर्थ यही हुआ कि उन बच्चों को उनके माता-पिता ने ही ये संस्कार दिए हैं। इसीलिए बच्चे बाहर अच्छा व्यवहार करते हैं। बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता की भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रशंसा होती है। अपने ऐसे बच्चों की तारीफ सुनकर उनके माता-पिता का सिर भी गर्व से ऊँचा हो जाता है।
बच्चे पर आप चाहे हाथ न उठाएँ परन्तु उसे आपकी तरेरी हुई नजर का डर उन्हें अवश्य होना चाहिए। बच्चों के सामने अपने धन का प्रदर्शन व रौब नहीं दिखाना चाहिए और न ही बच्चों को इसकी अनुमति देनी चाहिए। साथ ही स्वयं झूठ बोलने से परहेज करना चाहिए। बच्चों को भी सदा सच बोलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। जब आपका बच्चा गलत कार्य करे तो उसके मन में आपका डर होना चाहिए पर सम्मान के साथ। वह किसी भी स्थिति में कभी भी आपका तिरस्कार न करने पाए। उसे अपने माता-पिता की आँख की शर्म बनी रहनी चाहिए।।
बचपन से ही अपने बच्चे की हर जायज-नाजायज माँग को पूरा करके उसे जिद्दी न बनाएँ। उसे 'न सुनने' की आदत डालिए। उसे पता होना चाहिए कि यदि माता-पिता ने किसी बात या वस्तु के लिए मना किया है तो वह उसे नहीं मिलेगी। चाहे वह कितना रो-पीट ले। उसे हर अच्छाई-बुराई से अवगत कराना चाहिए। जब भी वह कुछ गलती करे तो उसे उसकी गलती को माफ नहीं करना चाहिए। उसे अपनी गलती का अहसास कराने के लिए हर पहलू के विषय में समझाइए। आजकल बच्चे बहुत समझदार हैं वे अपना भला और बुरा बेहतर समझते हैं।
धीरे-धीरे उसे अपने भले-बुरे की पहचान उसे हो जाएगी और वह एक जिम्मेदार बच्चा बन जाएगा। यह आदर्श स्थिति है कि आपका बच्चा सभ्य एवं योग्य बनकर चारों ओर अपना यश फैलाए। वह तो हर स्थान पर प्रशंसा का अधिकारी बनेगा ही और आपको उसे ऐसा बनाने का श्रेय भी मिलेगा। ऐसा करके सजग व जिम्मेदार माता-पिता होने का दायित्व निभाते हुए बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाइए और देश व समाज को एक योग्य विरासत सौंपिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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