सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

सद् गुण न त्यागें

सद् गुण न त्यागें

मनुष्य अपने सद् गुणों के कारण ही इस संसार में महान बनता है। उसकी कीर्ति, उसकी सुगन्ध चारों ओर फैलती है। इसीलिए उसके गुणों को देखते हुए लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं। ये गुण उसे सफलता के लक्ष्य तक पहुॅंचाते हैं।  हमें अपनी अच्छाई को या अपने सद् गुणों को कदापि नहीं छोड़ना चाहिए। जब दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता के व्यवहार को नहीं छोड़ते तो हम अपने सज्जनता के गुणों का त्याग क्योंकर करें। हमें अपनी पहचान अपने गुणों से बनानी चाहिए, अवगुणों के कारण अपना तिरस्कार नहीं करवाना चाहिए।
            यहॉं मैं एक दृष्टान्त देना चाहती हूॅं। आप सबने भी इसे पढ़ा अथवा सुना होगा। एक बार एक महात्मा जी नदी में स्नान कर रहे थे। वहाँ उन्हें एक बिच्छू दिखाई दिया। महात्मा जी को लगा कि कहीं यह बिच्छू नदी में मर न जाए। इसलिए वे उसको सुरक्षित करने का प्रयास करने लगे। उसे एक पत्ते पर रखकर बचाने लगे परन्तु वह चलता हुआ फिर से नदी में गिर पड़ा। यह क्रम कुछ समय तक अनवरत चलता रहा। 
            तब किनारे खड़े उनके शिष्य ने उन्हें यह कहते हुए रोका, "गुरु जी, आप इस बिच्छू को बचा रहे हो और यह आपको ही काट लेगा।" 
           इस पर महात्मा जी ने हंसकर अपने शिष्य को बहुत अच्छा उत्तर दिया, "यह बिच्छू अपना कर्म करेगा और मैं अपना। जब वह अपना धर्म नहीं छोड़ता तो मैं इन्सान होकर अपना धर्म कैसे छोड़ दूँ?"
             यह दृष्टान्त हमें सोचने पर मजबूर करता है। हमें शिक्षा देता है कि हर जीव का कार्य निर्धारित होता है। वह अपने गुण और स्वभाव के अनुसार ही कार्य करेगा। इसी प्रकार साँप को कितना भी दूध पिला दो वह डंक मारने से बाज नहीं आएगा। अपने गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार ही जीव व्यवहार करते हैं। साँप की तरह दुष्ट व्यक्ति को कितना भी अपना बना लो, उसके लिए कितने भी भलाई के कार्य कर लो पर समय आने पर वह वार करने से नहीं चूकेगा।
             हम सब जानते हैं कि हर मनुष्य में तीन वृत्तियाँ- सात्विक, राजसिक और तामसिक होती हैं। सत्व गुण की प्रधानता होने पर मनुष्य सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त होता है और देवतुल्य बन जाता है। जब मनुष्य में राजसिक गुणों की अधिकता होती है तो वह मानवोचित गुणों को अपनाता है। तब वह कभी सात्विक गुणों की ओर बढ़ता है तो कभी उसे तामसिक वृत्तियाँ ललचाती हैं। तीसरे तामसी गुणों वाले लोग संसार के आकर्षणों में फंसकर समाज विरोधी रास्ते यानी कुमार्ग पर चल पड़ते हैं। उस समय उन्हें सुधारना बहुत कठिन हो जाता है। इस प्रकार अपने इन विशेष गुणों के कारण ही मनुष्य की पहचान बनती है।
            हमें सच्चे, परोपकारी सज्जन लोग बहुत अच्छे लगते हैं। परन्तु अपने को और अपनों को इन गुणों से दूर रखना चाहते हैं। यदि सभी सोचने लगें कि अच्छाई का ठेका क्या हमने लिया है? बाकी और लोग भी तो हैं, वे क्यों नहीं अच्छे बनते? यह स्वार्थपरक सोच समाज के लिए बहुत घातक बन सकती है।
            समाज को सुधारने का ठेका कुछ मुट्ठी भर लोगों का दायित्व नहीं है, हम सबका इसमें बराबर का योगदान अपेक्षित है। तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकता है। ईश्वर ने इस संसार में हम सब मनुष्यों को कुछ कर दिखाने का अवसर देकर भेजा है। जो लोग उस अवसर का सदुपयोग कर लेते हैं, वे समाज में अग्रणी बन जाते हैं। समाज उन्हें अपने सिर ऑंखों पर बिठाता है। परन्तु जो लोग किसी भी कारण से अपने इस अवसर का लाभ उठाने से चूक जाते हैं, वे असफल होकर इस दुनिया से विदा लेते हैं।
             जो लोग समय रहते अपनी योग्यताओं को पहचान लेते हैं और अपनी अच्छाइयों के बल पर आगे बढ़ते हैं, वे सभी परिस्थितियों में सम रहकर सबके हृदयों पर राज करते हैं। इन्हीं लोगों की ओर संसार टकटकी लगाए देखता रहता है। ये समाज के वो सम्मानित व्यक्ति होते हैं जो पथप्रदर्शक बनते हैं।उसे दिशा और दशा दिखा सकते हैं। इन लोगों के पदचिह्नों पर चलकर जन मानस स्वयं को सुरक्षित और गौरवान्वित महसूस करता है। निश्चित ही इन लोगों का नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है।
              इसके विपरीत समय की धारा में बहकर जो लोग आकर्षणों में फंस जाते है, समय बीतने पर वे पश्चाताप करते हैं। उस समय उनका पश्चाताप करना व्यर्थ हो जाता है। उन्हें लोग अवहेलना की दृष्टि से देखते है। समय-समय पर इन्हें घर-परिवार में तिरस्कृत होना पड़ता है। तब उन्हें समझ में आता है कि वे बहुत कुछ खो चुके हैं। यह नाकामी उन्हें आजन्म बहुत बेचैन करती है।
             इसलिए दुनिया की परवाह किए बिना अपनी अच्छाइयों को न छोड़ने का संकल्प ले लेना चाहिए। दूसरों की बुराइयों की ओर ध्यान न देना ही हमारे लिए उचित है। हम सबको तो बदल नहीं सकते पर अपने गुणों का दामन अवश्य ही कसकर पकड़ सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद 

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