इन्सान गलतियों का पुतला
इन्सान गलतियों का पुतला है। वह बार-बार गलती करता है और उसका परिणाम आने पर पश्चाताप करता है। समय बीतने पर वह फिर पहले जैसा बन जाता है। यदि वह गलती न करे तो फिर वह भगवान के समान ही हो जाएगा। जाने-अनजाने मनुष्य बहुत-से अपराध करता रहता है जिनका दण्ड उसे भोगना पड़ता है। उसे प्रयास यही करना चाहिए कि वह अपने दोषों के कारण तिरस्कृत न हो। अपनी कमियों को दूर करने का यत्न करना चाहिए। यदि सावधानी बरती जाए तो वह उसमें सफल हो सकता है।
कभी-कभी किसी मनुष्य का एक दोष भी उस पर भारी पड़ जाता है। परन्तु प्रायः एक दोष उसके गुणों के समूह में उसी प्रकार छिप जाता है जैसे चन्द्रमा पर लगे हुए एक दाग को लोग अनदेखा कर देते हैं। संस्कृत भाषा के महाकवि कालिदास ने 'कुमारसम्भवम्' महाकाव्य के निम्न श्लोक में इसी भाव को लिखा है-
अनन्तरत्नप्रभवस्य यस्य
हिमं न सौभाग्यविलोपि जातम्।
एको हि दोषो गुणसन्निपाते
निमज्जतीन्दोः किरणेष्विवाङ्कः।।
अर्थात् अनन्त रत्नों के प्रभव हिमालय के सौन्दर्य का विनाश उपर जमी बर्फ नहीं कर सकती चूॅंकि दोष गुणों के समूह में वैसे विलीन हो जाता है जैसे चन्द्रमा की किरणों में कलंक।
दूसरे शब्दों में हम यहकह सकते हैं कि गुणों का समूह एक दोष को महत्वहीन बना देता है। जैसे हिमालय अनेक रत्नों और गुणों से भरा है। इसलिए उसकी ऊपरी बर्फ उसके सौन्दर्य को कम नहीं करती। सार रूप में जिस प्रकार चन्द्रमा की किरणों में उसका एक दोष या कलंक छिप जाता है और दिखाई नहीं देता, ठीक उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति में या किसी वस्तु में बहुत सारे गुण हों तो उसमें मौजूद एक छोटा-सा दोष उतना महत्वपूर्ण नहीं रह जाता। यह सुन्दर संस्कृत श्लोक हमें किसी व्यक्ति में मौजूद एक दोष पर ध्यान केन्द्रित करने के स्थान पर उसमें विद्यमान गुणों को देखने का महत्व सिखाती है।
चन्द्रमा के शीलतता, प्रकाश आदि गुणों के साथ-साथ उसकी सुन्दरता भी महत्त्वपूर्ण है। उसका सौन्दर्य तो अनेक कवियों और लेखकों के लिए सदियों से प्ररेणा का स्त्रोत रहा है। वह बच्चों का प्यारा चन्दा मामा है। माँ बच्चे को सुलाने व बहलाने के लिए भी चन्दा मामा का सहारा लेती है। कितने ही गीत व बच्चों की कविताएँ उसे लक्ष्य करके लिखी गई हैं। ऐसे चन्दा में जो एक दाग है, उसे लोग नजरअंदाज कर देते हैं। इसने तो वैज्ञानिकों को भी अपनी ओर बहुत ही आकर्षित किया है। वे भी इसकी खोज करने के लिए बार-बार उपग्रह भेजते हैं।
जिन लोगों में गुणों की अधिकता होती है उनके एकाध दोष को भी चन्द्रमा के एक दोष की तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है। केवल उनके गुणों को ही महत्त्व दिया जाता है दोषो को नहीं। इसका अर्थ यह भी है कि जो व्यक्ति गुणों की खान हैं, उनका एक दोष कष्ट का कारण नहीं बनता। यह सत्य है कि गुणीजनों के गुण परखे जाते हैं। यदि वे कसौटी पर खरे उतरते हैं तो फिर लोग उन्हें अपने सिर आँखों पर बिठाते हैं। उनके उन्हीं गुणों को अपनाने के लिए लोग सदैव आतुर रहते हैं।
अपने घर-परिवार, मित्रों-बन्धुओं व देश-समाज के सभी दायित्वों को वे पूर्ण करते हैं। कुछ दायित्वों को निभाने में हमारा स्वार्थ जुड़ा होता है। परन्तु महान लोगों के सभी कार्य निस्वार्थ होते हैं वे देश, धर्म व समाज के हितों को सर्वोपरि रखते हैं। प्राणीमात्र का हित साधने के लिए वे आतुर रहते हैं। परोपकारी, जनकल्याण की भावना रखने वाले सहृदय लोग वास्तव में महान लोगों की श्रेणी में आते हैं। इसी भाव के कारण ही वे सबके प्रिय बन जाते हैं। जन मानस उनका अनुकरण करता है। वे सभी के बन्धु बन जाते हैं।
बच्चा अपने माता-पिता के पास बेझिझक होकर अपनी समस्या रखता है। उसे पता होता है कि उसकी समस्या का निदान वे लोग बिना उसका उपहास किए कर देंगे। उसी प्रकार जन साधारण उन महापुरूषों को अपना शुभचिन्तक मानते हुए निसंकोच अपनी समस्याओं को उन्हें बताते हैं। फिर उनके मार्गदर्शन से उन्हें सुलझाते हैं। वे जानते हैं कि उनकी समस्याओं को किसी के सामने प्रकट नहीं किया जाएगा और न ही उनका कभी मजाक बनाया जाएगा।
मनुष्य को सदा उसके गुणों के कारण ही पहचाना जाना जाता है। उसके सद् गुण उसे महान बनाते हैं और उसे अपनी सिर-ऑंखों पर बिठाते हैं। ऐसे लोग हमारे आसपास ही मौजूद होते हैं। उन्हें बस यत्न पूर्वक खोजना चाहिए। उनकी संगति में अपने सद् गुणों का विकास करना चाहिए। बड़े भाग्य से ऐसे गुणीजनों के संसर्ग का अवसर हाथ आता है। इनके सम्पर्क में आने पर मनुष्य बिना किसी के कहे अपनी कमियों को दूर करने का यत्न करता है। उन्हीं की तरह बनने में अपना सौभाग्य समझता है।
चन्द्र प्रभा सूद