अन्तरात्मा की आवाज़
अन्तरात्मा हमारे शरीर में विद्यमान आत्मा को कहते हैं। कुछ विद्वान इसे मन भी कहते हैं। मनीषी कहते हैं कि यह अन्तरात्मा समय-समय पर मनुष्य से वार्तालाप करने का प्रयास करती रहती है। इस अन्तरात्मा की आवाज के बारे में हम सबने सुना अवश्य है परन्तु इसके बारे में जानते नहीं हैं। किसी आवाज को सुनने का अर्थ होता है कि कोई मनुष्य कुछ बोल रहा है और दूसरा व्यक्ति उसे सुन रहा है। इसके विपरीत अन्तरात्मा की बातचीत दो या अधिक लोगों की परस्पर होने वाले वार्तालाप की भॉंति नहीं होती है। इसलिए इसे समझना अथवा पकड़ पाना बहुत कठिन होता है।
अब विचार यह करना है कि आखिर अन्तरात्मा की आवाज है क्या? यह कैसी आवाज होती है? क्या यह सबको सुनाई देती है या किसी व्यक्ति विशेष को यह सुनाई देती है? अन्तरात्मा से क्या बातचीत की जा सकती है?
इस प्रश्नों के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि इस आवाज को केवल हम ही सुन सकते हैं। हमारे पास बैठा हमारा कोई प्रियजन, परिवारीजन या मित्र तक भी इसे नहीं सुन सकता। यह आवाज कहीं बाहर से नहीं आती बल्कि हमारे अन्त:करण से ही आती है। जैसे हम अपनों से बात करके उसे गुप्त रखते हैं ताकि उसकी सिक्रेसी बनी रहे। उसी तरह हमारे अन्तस् से आने आवाज भी गुप्त रह सके इसीलिए यह अन्य किसी को सुनाई नहीं देती। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह आवाज केवल वही व्यक्ति सुन सकता है जिसकी अन्तरात्मा से आवाज आती है।
यह आवाज हमें कब और क्यों जगाती है? यह प्रश्न विचारणीय है। जब भी हम कोई ऐसा कार्य करते हैं जो घर-परिवार, समाज, देश आदि के नियमानुसार होता हैं तब हमारे मन में एक प्रकार का उत्साह होता है, खुशी होती है। इसका अर्थ होता है कि हमारा किया जाने वाला कार्य करणीय है अर्थात् करने योग्य है। उन कार्यों को हमें बिना अधिक विचारे कर लेना चाहिए। ये वही कार्य होते हैं जो हमें मानसिक शान्ति व सुख-चैन की जिन्दगी प्रदान करते हैं।
इसके विपरीत जिन कार्यों को करते समय हमारे मन में उत्साह नहीं होता, हमारा मन बैचेन होने लगता है तो वह निश्चित ही अकरणीय(न करने योग्य) कार्य होते है। वे घर-परिवार, समाज, देश आदि के नियमों के विरूद्ध किए जाने वाले कार्य कहलाते हैं। उन कार्यों को करने से हमें एकदम किनारा कर लेना चाहिए। ये कार्य हमारा सुख, हमारी नींद उड़ाने वाले होते हैं। ये कार्य हमें विनाश के मार्ग पर ले जाने वाले भी हो सकते हैं। जिस कारण हम न्याय व्यवस्था के दोषी बनकर अपने घर-परिवार और बन्धु-बान्धवों से विमुख होकर अकेले हो सकते हैं।
मन में होने वाली उथल-पुथल को गहराई से समझने पर स्वयं ही हम ज्ञात कर सकते हैं कि हमें कौन-से कार्य करने चाहिए और किन्हें छोड़ देना श्रेयस्कर होगा। हमारी अन्तरात्मा हमें बार-बार आवाज देती रहती है। यदि बार-बार हम इस आवाज को सुनकर अनसुना करते रहते हैं तो एक समय ऐसा भी आता है जब यह आवाज हमें सुनाई ही नहीं देती। वह हमें चेतावनी देने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ती। बस हम ही अपने स्वार्थवश उससे अनजान बने रहना चाहते हैं।
यदि हम अपनी आत्मा की आवाज सुनकर, उसके अनुसार कार्य करते हैं तब हम वास्तव में स्वयं पर उपकार करते हैं और अपने मित्र बन जाते हैं। फलस्वरुप हम सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते जाते हैं। ऐसी अवस्था में हमारा मन प्रफुल्लित रहता है, उत्साहित रहता है। यदि हम आत्मा की आवाज के विपरीत कार्य करते हैं तो हमारा मन हमें कचोटता है, हमें निरूत्साहित करता है। तब हम स्वयं के शत्रु बन जाते हैं। अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं। तब दुर्भाग्यवश अपने पतन का कारक हम स्वयं ही बन जाते हैं।
हम कैसा जीवन जीना चाहते हैं इसका निर्णय हमें स्वयं करना है। हम अपने जीवन में सफलता के सोपानों पर चढ़ना चाहते हैं अथवा अपना अधोपतन करना चाहते हैं। इसलिए हमें अपने मन की, अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुनकर उसके अनुरूप ही कार्य करते चले जाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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