शुक्रवार, 13 जून 2025

बच्चों में झूठ बोलने की समस्या

बच्चों में झूठ बोलने की समस्या

घर में माता-पिता तथा विद्यालय में अध्यापकगण बच्चों में झूठ बोलने की समस्या से परेशान रहते हैं। सोचने वाली बात है कि ये नन्हे-मुन्ने इस आदत के अभ्यस्त कैसे हो जाते हैं? उन बेचारे नौनिहालों को तो यह भी नहीं पता होगा कि वे दिन-प्रतिदिन कितनी भयावह बिमारी का शिकार बनते जा रहे हैं? अब यह सोचना हमारा कर्त्तव्य है कि बच्चों में पाई जाने वाली इस असत्यवादिता पर लगाम किस प्रकार लगाई जाए। जिसके कारण वे बेचारे मासूम हर स्थान पर डाँट-फटकार का सामना करने से बच जाएँ।
           यदि गहराई से सोचें तो इस समस्या की जड़ तक पहुँचने में हमें बिलकुल भी कठिनाई नहीं होगी क्योंकि इसका कारण भी हम सब ही हैं। अब आप सब हैरान हो रहे हैं न मेरी सोच पर। वास्तव में हमें अपने गिरेबान में झाँकने की आवश्यकता है। छोटा बच्चा अपने आसपास के माहौल का बड़ी बारीकी से निरीक्षण करता है। उससे बहुत कुछ सीखता भी है। बच्चा जाने-अनजाने उस सबको अपने जीवन में ढालने का प्रयास करता है।
              सबसे पहले हम अपने घर की बात करते हैं। बच्चे की सबसे पहली पाठशाला उसका घर होता है। अपने घर में वह जैसा देखता है, उसे ही ब्रह्म वाक्य मान लेता है। घर में उसे बराबर झूठ का व्यवहार दिखाई देता है। इस वाक्य पर चौंकिए नहीं। प्राय: घर में हर छोटी-बड़ी बात को हम एक-दूसरे से छिपाने की कोशिश करते हैं। इस प्रयास में हम बारम्बार झूठ बोलते हैं। किसी मित्र, पड़ौसी या सम्बन्धी से हम नहीं मिलना चाहते तो कहलवा देते हैं घर पर नहीं हैं। आफिस जाने का मन न होने पर बीमार होने का बहाना करके छुट्टी ले लेते हैं। घर में इस प्रकार झूठ का व्यवहार देखकर बच्चा उस व्यवहार को सत्य मानकर उसी राह पर चल पड़ता है।
          कई बार हम बच्चे को कहीं बाहर नहीं ले जाना चाहते। कारण कोई भी हो सकता है। फिल्म देखना या शापिंग के लिए जाना या किसी से मिलने जाना या अन्य कोई और कारण हो सकता है। उसे घर पर रहने के लिए कहा जाए तो वह मानने को तैयार नहीं होता। तब हम अनावश्यक बहाना बनाते हैं कि आफिस जा रहे हैं या डॉक्टर के पास इंजेक्शन लगवाने जा रहे हैं आदि। उस समय बच्चे का कोमल मन इन बहानों को मानकर चुप लगा जाता है। सोचिए बच्चे के झूठ बोलने की ट्रेनिंग तो आरम्भ हो गई।
           जाने-अनजाने हमें अपना असत्य व्यवहार अच्छा लगता है। हमें याद ही नहीं रहता कि हमने बच्चे के सामने कितनी बार झूठ बोला है। परन्तु जब मासूम बच्चा वैसा असत्य व्यवहार करता है तो हम उस पर आगबबूला हो जाते हैं। उसे भला-बुरा कहते हैं, डाँटते-डपटते हैं और जीभर करके उसे कोसते हैं। कभी-कभी उसे सजा भी देते हैं। परन्तु अपने गिरेबान में झांकना नहीं चाहते। वह बेचारा मासूम बच्चा हैरान-परेशान हो जाता है। वह समझ ही नहीं पाता कि उसने कौन-सी गलती की है? जो उसे इस प्रकार डॉंटा जा रहा है।
            इसी भाँति अपने आसपास हो रहे ऐसे कार्यकलाप उसके विचारों को और अधिक हवा देते हैं। धीरे-धीरे बच्चा झूठे आचरण का इतना आदि हो जाता है कि वह अपनी सुविधा के लिए विद्यालय में अपनों की बिमारी की अथवा मौत की झूठी खबर सुनाने में भी परहेज नहीं करता। नित नए बहाने बनाने में वह अपनी शान समझता है और उसमें एक्सपर्ट हो जाता है। ऐसा लगता है मानो उसने झूठे बहाने गढ़ने में पीएचडी कर ली है।
            विद्यालय में गृहकार्य करके न जाने की शिकायत जब अध्यापक करते हैं अथवा परीक्षा में उसके कम अंक आने हैं तो माता-पिता के बुलाने पर वह टालमटोल करने के बहाने बनाता है। कई बार डर के कारण बच्चा माता-पिता के जाली हस्ताक्षर करके विद्यालय में डाँट खाने से बचने की कामयाब-नाकामयाब कोशिश करता है। घर में अपनी असफलताओं की चर्चा न करके उन्हें छिपाने का प्रयास कर ता है।
             जब तक घर में उसकी असलियत पता चलती है तब तक बहुत देर हो चुकती है। तब तक बच्चा झूठ बोलने का अभ्यस्त हो चुका होता है। वह इतनी सफाई से झूठ बोलता है कि उसके झूठ को पकड़ पाना बहुत कठिन हो जाता है। उस समय बच्चे का सुधार नामुमकिन तो नहीं कठिन अवश्य हो जाता है। इस बात को अवश्य याद रखिए कि इस संसार में बच्चा जब जन्म लेता है तब वह मासूम होता है, कोरी स्लेट की भॉंति होता है। इस दुनिया के छल प्रपंचो से अनजान होता है। उसे छल-कपट के संस्कार हमीं देते हैं।
             उन भोलेभाले बच्चों पर हम बड़े अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का अनावश्यक दबाव डालने लगते हैं जिसके कारण भी हमसे छुपाने के चक्कर में वह असत्यवादिता को अपना सखा बना लेता है और दिन-प्रतिदिन हमसे दूर होता जाता है। उसकी समस्या को समझते हुए उसके साथ प्यार से पेश आना चाहिए। प्रयास करने पर अपने बच्चे को इस गलत व्यवहार से बचा सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद 

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