बुधवार, 11 जून 2025

लालच करने वाले के सिर पर चक्र घूमता है

लालच करने वाले के सिर पर चक्र घूमता है 

बाहरी शत्रुओं से मनुष्य अपनी सुरक्षा का प्रबन्ध करता रहता है। कभी बल का प्रयोग करता है, कभी अपने लिए मजबूत किले बनाता है। वह स्वयं को और सुरक्षित करने लिए कुत्तों को पालता है और अपने घर के बाहर सुरक्षा गार्ड नियुक्त करता है। इस प्रकार करके अपने और अपने परिवार की सुरक्षा का प्रबन्ध करके सुख की सॉंस लेता है। दुर्भाग्य की बात है कि वह अपने स्वयं के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए वह आजन्म प्रयास करता है परन्तु सफल नहीं हो पाता। वे शत्रु हैं- काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार। 
            अन्तस् के शत्रुओं में से आज हम लोभ या लालच के विषय में चर्चा करते हैं। पंचतन्त्र की एक कहानी के माध्यम से इस पर विचार करते हैं।
          प्राचीन काल में चार ब्राह्मण पुत्रों में मित्रता हो गयी। अपनी स्वभाविक दरिद्रता से बहुत परेशान थे। उन्होंने परदेस जाकर धन कमाने के विषय में सोचने लगे। एक दिन चारों भैरवानंद से मिले। उन्होंने उन ब्राह्मणों की सफलता के लिए उन्हें सिद्ध किया हुआ एक-एक सिक्का दिया। उन्हें कहा कि हिमालय की दिशा में जाते हुए जहाँ सिक्का गिरेगा वहाँ अवश्य ही खजाना मिलेगा।
            जाते हुए एक के हाथ से सिक्का गिरा, खोदने पर उनको ताँबा मिला। वह प्रसन्न होकर ताँबा लेकर चला गया जबकि बाकी तीनों दोस्तों ने उसे बहुत मना किया। इसी तरह दूसरा रुपये लेकर और तीसरा स्वर्ण लेकर घर चला गया। चौथे ब्राह्मण को लालच ने घेर लिया। उसे लगा कि पहले ताँबा, फिर रुपये और फिर स्वर्ण मिला तो आगे निश्चित ही हीरे-जवाहरात मिलेंगे। इसी लालच में वह अकेले ही आगे बढ़ गया।
      कहते हैं न भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता। आगे जाकर उसने एक ऐसे आदमी को देखा जिसके सिर पर चक्र घूम रहा था। वह लहूलूहान, भूख-प्यास से व्याकुल गर्मी में इधर-उधर घूम रहा था। इस ब्राह्मण ने ज्यों ही उससे उसकी उस हालत के बारे में पूछा तो वह चक्र उसके सिर पर आ गया। उस व्यक्ति ने पूछने पर उसे बताया कि मुझे नहीं पता मैं कितने सालों से यहाँ भूख-प्यास, जीवन-मृत्यु और नींद से रहित यहाँ केवल कष्ट का अनुभव कर रहा हूँ। उसने इसके बाद बताया कि वह भी और अधिक धन के लालच में यहाँ आया था और उसकी ही तरह पूछने पर यह चक्र उसके सिर पर आ गया था। अब वह ब्राह्मण इस इन्तज़ार में असह्य पीड़ा सहता अपने भाग्य को कोसने लगा कि शायद कोई और लालची आकर उसे मुक्त कराएगा।
        इसीलिए कहते हैं कि जो अतिलोभ करता है उसके सिर पर चक्र घूमता है। यह काल चक्र है जो जन्म जन्मांतर तक हमारे सिर पर मंडराता रहता है। यही हमारी परेशानियों, मुसीबतों का नाम है जिसके कारण हम अधिक-अधिक पाने की होड़ में दिन-रात का चैन खो देते हैं। खाने-पीने की सुध बिसरा कर कोल्हू के बैल की तरह हरपल हम पिसते रहते हैं, थककर चूर हो जाते हैं।
    अब हमें ही विचार करना है कि इन शत्रुओं पर हम विजय प्राप्त करें और कष्टों से बचें।
चन्द्र प्रभा सूद 

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