मंगलवार, 17 जून 2025

युवावर्ग में अकेलेपन की समस्या

युवावर्ग में अकेलेपन की समस्या

युवावर्ग में आज अकेलेपन की समस्या घर करती जा रही है। इस भौतिक युग में जीवन में आपाधापी इतनी अधिक  बढ़ गई है कि आज का युवा अपना मार्ग सुनिश्चित ही नहीं कर पा रहा। वह समझ ही नहीं पा रहा कि उसकी प्रमुखता या प्रायरिटी क्या है। यह वास्तव में एक बहुत गम्भीर समस्या है। युवाओं के अकेलेपन की इस समस्या का कुछ तो समाधान खोजना पड़ेगा।
        आज का युवा बहुत महत्त्वाकांक्षी है। वह अपना कैरियर बनाना चाहता है, वही उसकी प्राथमिकता है जो उचित भी है। इस भौतिक युग में समय के साथ ताल मिलाकर चलना वह बखूबी जानता है। वह उच्च शिक्षा प्राप्त करके दूर आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहता है। देश-विदेश जहाँ भी उसे मौका मिलता है, वह अपने लक्ष्य को पाने के लिए उस ओर बढ़ जाता है। इसलिए इस ओर वह इतना अधिक व्यस्त है कि जीवन के अन्य सभी पहलुओं की ओर नहीं देखना चाहता तथा उनके साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रहा। 
            जितना ही वह सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा है उतना ही अकेला होता जा रहा है। दिन भर सिर्फ काम और काम। कभी मीटिंग और कभी टूर। सवेरे घर से समय से निकलने के बाद घर वापिस लौटने का उसका कोई समय नहीं होता। बस इसके अतिरिक्त और कोई गतिविधि नहीं और न ही कोई सामाजिक जीवन। शादी-ब्याह, पार्टी, तीज-त्योहार कुछ भी निभाना समय के अभाव के कारण बहुत कठिन हो जाता है। यह भी उनके अकेलापन का बड़ा कारण बन जाता है।
             अपने व्यावसायिक कार्योँ में व्यस्त रहने वाला युवावर्ग स्वयं अपने लिए न समय निकाल पाता है और न ही अपने बारे में सोच पाता है। अपने कैरियर के लिए सजग युवा तरक्की और तरक्की की आशा में अपनी उम्र की बढ़ती आहट को नहीं सुन नहीं पाता। अपने लिए जीवन साथी के विषय में सोचने का समय उसके पास नहीं है। यदि वह विवाह के बन्धन में बॅंध जाता है तो जीवन की भागदौड़ में जीवनसाथी व बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाता। 
             जब युवा अपने घर-परिवार के लिए समय नहीं निकाल पाता तो घर में व्यर्थ की तकरार में उनका समय व्यतीत होने लगता है। जिसके बढ़ जाने पर तालाक तक के हालत पैदा हो जाते हैं। तालाक के बाद कुछ युवा पुनर्विवाह कर लेते हैं और कुछ अपने कटु अनुभवों के बाद अकेले रहना ही पसन्द करते हैं।
              बहुत-सी स्थितियों में युवा को अपना भविष्य संवारने के लिए अपने घर-परिवार से दूर दूसरे शहर या विदेश में अपनी इच्छा से या अनिच्छा से नौकरी करने के लिए अकेले ही जाना पड़ता है। यह वह स्थिति होती है जब अकेलापन उसका साथी बन जाता है। कई बार वह ऐसे स्थान पर नौकरी कर रहा होता है जहॉं परिवार को ले जाना सम्भव नहीं हो सकता। उस स्थिति में विवशतावश अकेलापन उसका मित्र बन जाता है।
             कुछ युवा सही समय पर अपने अहं के कारण दूसरों में कमी निकालते रहते हैं जिससे आयु बीत जाती है और वे अकेले रह जाते हैं। कभी-कभी परिस्थितिवश यानी अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वाहण करते हुए भी उन्हें अकेले रह जाना पड़ता है। कुछ युवा आजकल स्वेच्छा से अकेलेपन का वरण करते हैं उनके ऐसा करने के पीछे कोई साख कारण नहीं होता। शायद वे अपने घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाना ही नहीं चाहते। वास्तव में यह पीठ दिखाकर भागने वाली स्थिति होती है।
              युवा पति या पत्नी में से किसी एक की मृत्यु के बाद दूसरा साथी अपने बच्चों के लिए या अन्य किसी कारण से पुनः विवाह न करके अकेला रहने का निर्णय कर लेते हैं।
              युवा स्वेच्छा से एकाकी रहना चाहता है,  अपना भविष्य बनाना चाहता है। उसके पास यह सब सोचने का समय नहीं है, यह सब तो ठीक है। परन्तु युवावस्था के पश्चात जब वृद्धावस्था की ओर वह कदम बढ़ाता है तब उसके पास अपना कहने के लिए कोई नहीं होता। उस समय तक उसके माता-पिता इस लोक से विदा ले चुके होते हैं और भाई-बहन अपनी-अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो जाते हैं। इस प्रकार वह दिन-दिन अकेला होता जाता है। उस समय अपने जीवन की ओर मुड़ कर देखना ही शेष बचता है।
चन्द्र प्रभा सूद 

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