रिश्तों में विश्वास
जिस रिश्ते में सबसे ज्यादा विश्वास होना चाहिए उसी में सबसे ज्यादा बेवफाई होती है समझ नहीं आता। यह वाक्य अन्तस को झकझोर कर रखने वाला है। विचार मन्थन चलता रहता है। इस विचार को आपके साथ साझा करना चाहती हूँ।
सारे भौतिक सम्बन्धों में पति-पत्नी का रिश्ता बहुत करीबी होता है। जिसे दूसरे शब्दों में हम दो जिस्म और एक जान मानते हैं। एक जान होने का अर्थ है सब कुछ एक। फिर यहाँ अलगाव वाली बात की तो गुँजाइश ही नहीं बचती। मुझे समझ में नहीं आता कि 'तेरा और मेरा' का यह भाव इन दोनों के रिश्ते के बीच में कहाँ से अपनी नाक घुसा लेता है। उस समय बड़ी हैरानी होती है जब आसपास के माहौल में पति और पत्नी को परस्पर आपस में जाने-अनजाने लड़ते-झगड़ते देखती हूँ।
पति आगे बढ़े, तरक्क़ी करे तो पत्नी फूली नहीं समाती। उसके लिए खुशियॉं मनाती हैं। खुद ही उसे समाज में हीरो बना देती है। दूसरी ओर पत्नी आगे बढ़े, पति से अधिक तरक्की करे तो पति के अहं को ठेस लग जाती है और वह घायल होने लगता है। उसका पुरुषत्व या उसका अहं शायद ऐसे काँच का बना हुआ है जो जरा हल्की-सी चोट लगने से टूटकर किरच-किरच हो जाता है। इसे दुर्भाग्य ही कहा सकते हैं।
आज भी पुरुष प्रायः बच्चों की जिम्मेदारी लेने, घरेलू कामकाज में पत्नी ( कामकाजी ) का हाथ बटाना अपनी शान के खिलाफ समझता है।प्राय: पुरुषों का तकिया कलाम होता है कि वे तो पत्नी से बड़ा डरते हैं या घर जाते ही उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है आदि-आदि। उसे न जाने किन-किन नामों से उसे सम्बोधित कर अपने अहं की तुष्टि करते हैं। दिखावा या छलावा करना इन पुरुषों की फितरत में शामिल है। मौके-बेमौके सबके सामने पत्नी को अपमानित करने से भी ये लोग नहीं चूकते।
पुरुषवादी सोच उस पर हमेशा हावी रहती है। कहने को तो स्त्री को वह लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा और काली रूप में भगवती मानता है। पर क्या अपनी पत्नी को जीवन में वाकई वह मुकाम दे पाता है? शायद नहीं। खुद को देवता कहलवा कर वह अपने अहं को तुष्ट करना चाहता है पर पत्नी को देवी बनाकर नहीं रखना चाहता। जब तक स्त्री पति के हाथ की कठपुतली बनकर रहे तो वह सती, सावित्री व पूज्या कहलाती है। परन्तु यदि पत्नी अपनी इच्छा से कोई भी एक कार्य करना चाहे तो न जाने उसे किन-किन विशेषणों से उसे नवाजा जाता है। उसकी इच्छा का तो मानो पुरुष की नजर में कोई मूल्य ही नहीं है।
दोनों में बहुधा परस्पर विश्वास व सामंजस्य की कमी दिखाई देती है। प्रायः दोनों अपनी-अपनी बचत व अपने-अपने बैंक खातों को छुपाकर रखते हैं कि दूसरे को कहीं भनक न लग जाए। अपने फोन, फेसबुक अकाउण्ट या वाट्सएप जैसी सोशल साइट्स को ऐसे छुपाते फिरते हैं जैसे कोई खजाना छिपा रहे हों। अरे भाई अगर एक-दूसरे से दुराव-छिपाव की नौबत आ रही है तो क्यों गलत काम करते हो? इसका अन्त कभी भी भला नहीं हो सकता।
दोनों में परस्पर विश्वास बहुत आवश्यक है। जहाँ अविश्वास होता है या एक-दूसरे से विश्वासघात किया जाता है वहाँ तलाक हो जाते हैं। कभी-कभी अपने दूसरे पार्टनर को मार दिया जाता है या किसी के साथ मिलकर मरवा दिया जाता है। ऐसी स्थिति वाकई बहुत दुखदाई होती है।
स्त्री के चरित्र को अबूझ पहेली कहकर पुरुष उसे अपमानित करते हैं पर वे स्वयं कितने षड्यन्त्र करते हैं, इसे मानने के लिए भी तैयार नहीं होते। हर आज्ञा का पालन होते देखने का आदि पति किसी भी कदम पर अपनी अवहेलना सहन नहीं कर सकता। इस कारण सम्बन्धों में कटुता बढ़ने लगती है। यह आपसी सम्बन्धों के लिए बहुत घातक होती है।
जीवन का कुछ भी पता नहीं कि कौन पहले जाएगा और कौन बाद में। इसलिए जिन्दगी के जितने पल ईश्वर ने दिए हँस-खेलकर बिता लेना चाहिए। अन्यथा बाद में पश्चाताप न करना पड़ता है। आपसी सामंजस्य से पति-पत्नी रहें तो घर स्वर्ग बन जाता है अन्यथा नरक। उचित यही है कि हम अपने जीवन को संगीत की भाँति गुनगुनाते हुए व्यतीत करें।
चन्द्र प्रभा सूद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें