आत्मविश्लेषण
आत्मविश्लेषण करने वाला व्यक्ति सदा सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता है। स्वयं के विषय में विचार करना ही आत्मविश्लेषण कहा जाता है। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि हम चौबीसों घण्टे अपने बारे में सोचते-सोचते स्वार्थी बन जाएँ। अपनी धार्मिक, सामाजिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों से पिण्ड छुड़ा लें और हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाएँ। ऐसा करके तो हम आलसी बनकर जीवन की रेस में पिछड़ जाएँगे। यह स्थिति तो किसी भी शर्त पर स्वीकार नहीं की जा सकती।
जीवन की भागदौड़ का हिस्सा बनते हुए ही आत्मचिन्तन अपेक्षित है। वैसे तो आज के भौतिक जीवन हमें धन कमाने के लिए जी तोड़ परिश्रम करना पड़ता है अन्यथा अपने सभी दायित्वों को अर्थाभाव में पूर्ण नहीं कर पाएँगे। समय का अभाव तो हमेशा ही रहता है। इस समयाभाव में थोड़ा-सा समय निकालकर अपना निरीक्षण-परीक्षण करना श्रेयस्कर होता है। हम अपने आराम के समय में से कुछ पल चुरा कर विचार कर सकते हैं। रात को सोने के लिए बिस्तर में लेटते हुए विचार करने का समय सबसे उत्तम होता है।
यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि हमें विचार क्या करना है ? सबसे पहले यह देखना है कि हमने अपनी दिनचर्चा के अनुसार आज के कार्य सम्पादन कर लिए हैं। उत्तर यदि हाँ है तो बहुत अच्छा। यानी हमने आज का लक्ष्य सन्धान कर लिया है। परन्तु इसके विपरीत यदि उत्तर न में मिले तो इसका सीधा-सा अर्थ है कि आज हमने कहीं चूक कर दी है। यह समस्या गम्भीरतापूर्वक विचारणीय है। आने वाले कल के लिए कटिबद्ध होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है।
दिनभर में जो भी कार्य किये हैं, उन पर एक नजर डालनी चाहिए। स्वत: ही हमें समझ में आ जाएगा कि हमने जो- जो कार्य आज दिन के लिए निर्धारित किए थे उनके पूरा न होने का कारण क्या था। हो सकता है वे कार्य हमारी असावधानी के कारण पूरे नहीं हो सके हों या यह भी हो सकता है कि किसी ऐसे आवश्यक कार्य में उलझ जाने के कारण वह कार्य नहीं कर पाए। इसलिए अगले दिन उन्हें पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त कभी-कभी घर-परिवार या आस-पड़ोस में कोई ऐसी अनहोनी घटना घट जाती है जिस पर हमारा जोर नहीं चलता। इनमें से कोई भी कारण हो विचार तो करना ही होगा। अब उचित यही है कि अपनी कमी को दूर करके अगले दिन संकल्पपूर्वक निर्धारित कार्य का लक्ष्य पूर्ण करने का यत्नपूर्वक प्रयास करेंगे तो अवश्य सफलता मिलेगी और हमारा मन भी प्रसन्न होगा। इससे आत्मसन्तोष भी होगा।
इसी प्रकार दिनभर के किए गए कार्यों के चिन्तन के साथ ही यह भी विचार करना है कि आज के दिन हमने कितने गलत कार्य किए, किस का दिल दुखाया, किस के साथ अनावश्यक नोकझोंक की या अपने काम में ईमानदारी से चूक गए, कितनी बार झूठ-सच किया आदि।
यदि हमें हमारे मन ने हमें हरी झण्डी दिखा दी तो समझिए कि आज का हमारा दिन सफल रहा। परन्तु यदि अपने-आपको सन्तुष्ट करने के लिए हमें किन्तु-परन्तु जैसे बहाने तलाशने की आवश्यकता पड़ें तो निश्चित ही कहीं गलती हुई है। फिर उन गललतयों की सूची बनाएँ। अगले दिन उन्हें न दोहराने का संकल्प करें। और फिर अगले दिन भी यही क्रम अपनाएँ। इस क्रम को अन्य आवश्यक हिस्सों की तरह अपने जीवन में ढाल लेना चाहिए। इस प्रकार यदि जीवन में हम इन छोटे-छोटे लक्ष्यों को प्राप्त करते जाएँगे तो आत्मोत्थान करने व भौतिक सफलताओं को प्राप्त करने से हमें कोई नहीं रोक सकता।
एवंविध आत्मचिन्तन करने वाला मनुष्य अपनी कमियों को दूर करके महान बनता है। अपने विवेक से आत्ममन्थन करके हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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