अकेलापन मनुष्य के लिए अभिशाप
अकेलापन मनुष्य के लिए एक अभिशाप होता है। सामाजिक प्राणी यह मनुष्य अकेला रहे इसकी कल्पना करना भी बहुत कठिन है। फिर भी इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता है कि विश्व में अनेक लोग अकेले ही जीवन जीने के लिए विवश हैं। इसके पीछे कारण कोई भी हो सकता है। इस अकेलेपन के कारणों की हम समीक्षा करने का प्रयास करते हैं।
अपने जीवन साथी की मृत्यु होने के कारण दूसरे साथी का अकेला हो जाना स्वाभाविक है। यानी जब दोनों साथियों में से एक काल कवलित हो जाता है तो दूसरा साथी निपट अकेला रह जाता है।इस स्थिति में यदि घर-परिवार का या बच्चों का साथ मिल जाए तो वह इन्सान सौभाग्यशाली होता है। अपने बच्चों का साथ पाकर मनुष्य मानो जी उठता है। उसका अकेलापन उसे काटने को नहीं दौड़ता।
इसके विपरीत यदि अपनों के बीच रहते हुए उनमें अबोलापन हो जाए या एक-दूसरे को स्वीकार करने अथवा समर्पण करने की भावना ही न रहे तब भी मनुष्य अकेला हो जाता है। व्यक्ति को तब अपने बच्चे बोझ समझने लगते है। इस परिस्थिति में वह टूटने लगता है। जब यह अकेलापन उस पर हावी होने लगता है तब तनाव ग्रस्त हो जाता है। धीरे-धीरे वह डिप्रेशन में जाने लगता है। उस समय उसे लगता है कि ऐसी औलाद से वह बैऔलाद ही रह जाता तो अच्छा होता। तब उसे कम से कम इतना दुख तो नहीं होता।
कुछ घर ऐसे भी होते हैं जिनमें केवल बेटियाँ होती हैं, बेटा नहीं। विवाहोपरान्त बेटियॉं अपने-अपने घर यानी ससुराल की जिम्मेदारियों में व्यस्त हो जाती हैं। उस समय अपने अकेले रह रहे माता या पिता को वे किसी भी कारण से चाहकर उतना समय नहीं दे पातीं जितना उन्हें देना चाहिए। माता या पिता बेशक उनकी मजबूरी समझते हैं परन्तु समस्या तो वही रहती है। ऐसी परिस्थिति में उन माता या पिता को वृद्धावस्था में अकेले होकर रह जाना पड़ता है।
आज के इस भौतिक युग में रोजी-रोटी के चक्कर में बच्चे अपने घर से दूर, अपने शहर को छोड़कर दूसरे प्रदेश में नौकरी की मजबूरी में चले जाते हैं। विश्व की दूरी भी कम होने के कारण बच्चे अपने देश को छोड़कर दूसरे देश में भी चले जाते हैं। उस समय माता या पिता के पास अकेले रहने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता। क्योंकि अब बच्चे वापिस आ नहीं सकते। किन्हीं अपरिहार्य कारणों से माता या पिता वहाँ जा नहीं सकते। तब भी अकेलापन नासूर बन जाता है।
ऐसे भी कई भाग्यहीन परिवार भी हैं जहाँ पूर्वजन्म कृत कर्मों के फलस्वरूप माता-पिता जीवन में सन्तान का मुख नहीं देख पाते। सन्तान के अभाव में घर सूना-सा लगता है। अपने अहं के कारण या किसी परिस्थितिवश वे बच्चे को गोद भी नहीं लेते, ऐसे वे भी अपने जीवन में अकेले रह जाते हैं। जीवन में यदि दुर्भाग्य की अधिकता हो तो इकलौते या एक से अधिक बच्चों की दुर्घटना में असमय मृत्यु हो जाती है तब माता या पिता में से जो एक पीछे बच जाता है, वह अकेला रह जाता है। यद्यपि दोष किसी का भी नहीं होता। यह अकेलापन उनकी विवशता बन जाती है।
विधवा या विधुर का अकेलापन तो मजबूरी होती है, वह समझ में भी आता है। परन्तु कुछ लोग स्वेच्छा से भी अकेलेपन का चुनाव करते हैं। विवाह की आयु में अहंकारवश दूसरों में कमियाँ ढूँढ़ते रहते हैं। आयु बीत जाने पर निपट अकेले रह जाते हैं। उनके भाई-बहन जीवन में सेटल हो जाते हैं और अकेलापन उनका मित्र बन जाता है। आजकल कुछ युवा भविष्य में आने वाली जिम्मेदारियों को झंझट का नाम देकर भी विवाह नहीं करना चाहते। इसलिए वे अकेले रहना पसन्द करते हैं।
किन्हीं कारणों से कुछ युवा घर-परिवार की जिम्मेदारियों को निपटाने में व्यस्त रहते हैं। इसलिए अपने विवाह के प्रति उदासीन रहते हैं। जब दायित्वों से मुक्त होते हैं तब तक उनके विवाह की आयु बीत जाती है। उनके छोटे भाई-बहन अपने-अपने पारिवारों में व्यस्त हो जाते हैं। वे अपने लिए बलिदान करने वाले के विषय में नहीं सोचते। उसका सम्मान करने में भी उन्हें जोर आता है। इस प्रकार त्याग करने वाला सबके होते हुए अकेले रह जाता है।
आज के भौतिक युग में धन लोलुपता इतनी बढ़ गयी है और मनुष्य स्वार्थ में अन्धा हो चुका है। कभी-कभी कुपुत्र माता या पिता की धन सम्पत्ति उनकी इच्छा से या धोखे से हथियाकर उन्हें घर से बेघर करके दरबदर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं।
कुछ अन्य लोग बिल्कुल अकेले हैं या फिर भरापूरा परिवार होते हुए भी वे अकेलेपन का दंश झेल रहे हैं अथवा सामाजिक परिस्थितियों के वशीभूत होकर निपट अकेले होते हैं। वृद्धावस्था की मजबूरी के उनका कारण घर से बाहर आना-जाना कठिन हो जाता है तब वे न किसी से बातचीत कर पाते हैं और न ही कहीं आना-जाना कर सकते हैं। बस तब उनके अकेलेपन का उनका साथी घर बन जाता है।
आप सभी सुधीजनों से मेरा अनुरोध है कि जहाँ तक हो सके अपने बच्चों को संस्कारी बनाने के साथ-साथ अन्य बच्चों को भी माता-पिता की सेवा करने की प्रेरणा दें। हम सभी यदि अपने इस सामाजिक दायित्व का निर्वहण करते हैं तो इस अकेलेपन की समस्या से बचा जा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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