जीवन-मृत्यु के बीच झूलता मनुष्य
जीव इस संसार में जन्म लेता है और अपने पूर्व जन्म कृत कर्मानुसार ईश्वर प्रदत्त आयु भोगकर इस दुनिया से विदा लेता है। वह जीवन और मृत्यु के बीच में झूलता रहता है। एक शरीर से मुक्त होने के बाद उसका जन्म कब और किस योनि में होगा, कोई नहीं जानता। हमारे ग्रन्थों का मानना है कि जो पुण्यात्मा होते हैं, उनका पुनर्जन्म एक शरीर को छोड़ने के तुरन्त बाद हो जाता है। कुछ लोगों के कर्म ऐसे होते हैं जो वायुमण्डल में वर्षो तक भ्रमण करते रहते हैं उन्हें नया शरीर नहीं मिलता। उन्हें हम भूत-प्रेत के नाम से पुकारते हैं।
शेष अन्य जीवों को भी अपने कर्मानुसार निश्चित अवधि के पश्चात पुनर्जन्म मिलता है। वह निश्चित अवधि क्या है? किस समय नया जन्म मिलेगा? किस स्थान पर हम जन्म लेंगे? आदि प्रश्न विचारणीय हैं। इस विषय में हमारी यह मानुषी बुद्धि कुछ भी नहीं जान पाती। महान ज्ञानी जन इस विषय में शायद कुछ बता सकते हैं। वैसे तो यह सब भी भविष्य के गर्भ में सुरक्षित है। इसे केवल ईश्वर ही जानता है।
एवंविध जीव की मृत्यु कब होगी? वह किस पल आ जाएगी? यह भी एक रहस्य है। ईश्वर के अतिरिक्त इस भेद का ज्ञान ही किसी को नहीं हो सकता। हम मनुष्यों के लिए तो इसे जान पाना असम्भव-सा है। बड़े-बड़े ज्ञानी व ॠषि-मुनि इस रहस्य को खोजने में सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं। फिर भी जन्म-मरण के इस सार को समझने और समझाने में असमर्थ रहते हैं।
सारांशत: हम कह सकते हैं कि जन्म और मृत्यु के इस रहस्य को जानना और समझना हमारी बुद्धि अथवा हमारी सोच से परे है। इस पुनर्जन्म का रहस्य समझ पाना बहुत ही कठिन है। इसे भले ही हम न जान सकें पर इतना निश्चित मान सकते हैं कि हम सभी जीव इस धरती पर कुछ निश्चित समय के लिए ही आते हैं। उसी समय में हमें अपनी सुगन्ध फैलानी होती है। जिस उद्देश्य के लिए हमने जन्म लिया है या ईश्वर ने हमें इस धरती पर भेजा है, उसे पूरा करना हमारा धर्म है।
ईश्वर ने हमें अपने कर्मों के अनुसार जो भी समय हमें दिया है, उसका पूर्णरूपेण सदुपयोग करना चाहिए। अन्यथा हमारा जीवन इस पृथ्वी पर एक बोझ बनकर रह जाएगा। मृत्यु के समय हमें पश्चाताप करने का समय भी नहीं मिल पाएगा। उस समय हम चाहे कितनी भी प्रार्थना कर लें, परन्तु पलभर की मोहलत भी नहीं मिलेगी। तब अन्त समय में जीवन को व्यर्थ गंवाने का क्षोभ मन में लेकर हमें इस संसार से विदा होकर नवजीवन की ओर जाना होगा।
जब तक हम इस संसार में आने के अपने लक्ष्य को यानी मोक्ष को प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक हम चौरासी लाख योनियों के चक्र में पड़कर इस संसार में ही आवागमन करते रह जाएँगे। ऐसे में मुक्ति का कोई भी रास्ता नहीं निकल सकेगा। जन्म और मृत्यु की यह पहली एक बहुत उलझी हुई है। इसे सुलझाना आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसा असम्भव कार्य है।
घर, परिवार, धर्म, देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहण हमें नित्य ही निष्ठापूर्वक मन, वचन और कर्म से करना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। यह दिखावा आखिर हम क्यों और किसके लिए करते हैं? शायद अल्पकालीन वाहवाही प्राप्त करने के लिए परन्तु हमारा अन्तर्मन सदा ही हमारी इस आदत को भली-भॉंति जानता है। यह स्मरण रखना चाहिए कि उससे हम बच नहीं सकते। वह हमें सदा कचोटता रहता है।
इस असार संसार में कौन पहले विदा लेगा और कौन बाद में, यह एक अनसुलझी पहेली है। अपने किसी प्रियजन से वियोग कभी भी हो सकता है यह हमें हमेशा याद रखना चाहिए। जीवन में न जाने कौन-सी रात आखिरी होगी इसलिए सबसे मिल-जुलकर रहना चाहिए। अपने झूठे अहं के नशे में इस संसार के भौतिक रिश्ते-नातों की गरिमा और मर्यादा खण्डित न होने पाए इसका ध्यान रखना आवश्यक है। हमें यह विश्लेषण समय-समय पर करते रहना चाहिए।
ईश्वर को हमें अपने जीवनकाल में हर कदम पर पल-पल स्मरण करना चाहिए जिससे अन्तकाल में जब उसके पास जाने का समय आए तो उस प्रभु से नजरें चुराने की कदापि आवश्यकता महसूस न हो। इस संसार से विदा लेते समय हमारे मन में परमपिता से मिलने की प्रसन्नता का अनुभव हो। यह मलाल न रहे कि काश समय रहते हम चेत जाते तो हम बहुत कुछ कर सकते थे। इस स्थिति से उबरने के लिए यह आवश्यक है कि हमें अभी से जागरूक हो जाना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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