मंगलवार, 19 दिसंबर 2017

ज्ञान की पिपासा

ब्रह्माण्ड में अथाह ज्ञान का भण्डार है। मनुष्य सारी आयु यदि चाहे तो ज्ञानार्जन कर सकता है। बस उसमें जिज्ञासा होनी चाहिए। ज्ञान प्राप्त करने की कोई आयु नहीं होती और वह किसी से भी लिया जा सकता है। जिज्ञासु व्यक्ति अपनी ज्ञान पिपासा को शान्त करने लिए जहाँ भी बैठता है, वहीं से ज्ञान पा लेता है। उसके लिए कोई भी विषय अछूता नहीं रह जाता। प्रतिभा का धनी ऐसा व्यक्ति किसी भी विषय पर घण्टों चर्चा कर सकता है।
         यहाँ पर उस पुस्तकीय ज्ञान की चर्चा नहीं की जा रही जो शिक्षा ग्रहण करते समय मनुष्य अर्जित करता है। जीवन के अनुभव से जो ज्ञानार्जन किया जाता है, वह भी महत्वपूर्ण होता है। परन्तु यहाँ हम उस जिज्ञासु की बात कर रहे हैं जो स्कूल-कालेज के ज्ञान से भी अधिक कुछ और जानना चाहता है। अपने ज्ञान का विस्तार करके वह वास्तव में अपनी ज्ञान पिपासा को शान्त करना चाहता है। उस मनुष्य को हर समय कुछ और, कुछ और जानने की भूख रहती है, जिसे शान्त करने के लिए वह सदैव प्रयासरत रहता है।
          अब विचार करते हैं कि ऐसा व्यक्ति किसी के पास बैठकर ज्ञान कैसे प्राप्त करता है? जिसके पास वह बैठता है, वह उससे बोर नहीं होता?
          इस विषय में निम्न श्लोक का आश्रय लेते हैं। इसमें कवि ने बहुत ही सरल तरीके से समझने का प्रयास किया है-
             यः पठति लिखति पश्यति
                  परिपृच्छति पंडितानुपाश्रयति।
              तस्य दिवाकरकिरणै: नलिनी
                   दलमिव   विस्तारिता   बुद्धिः॥
अर्थात जो व्यक्ति जिज्ञासु होता है, वह पढ़ता है, लिखता है, देखता है और प्रश्न पूछता है, बुद्धिमानों का आश्रय लेता है। उसकी बुद्धि उसी प्रकार बढ़ती है जैसे कि सूर्य की किरणों से कमल की पंखुड़ियाँ।
         यह श्लोक हमें यही शिक्षा दे रहा है कि जिज्ञासु का ज्ञान दिन-प्रतिदिन उसी तरह बढ़ता रहता है जैसे सूर्योदय होने पर कमल के फूल की पंखुड़ियाँ। कमल के फूल से ही उसके ज्ञान की तुलना कवि ने इसलिए की है कि रात्रि के समय कमल का फूल सिमट जाता है यानी बन्द हो जाता है। जब प्रात: सूर्य देव का पदार्पण होता है तब उसकी सारी पंखुड़ियाँ खिल उठती हैं। जिज्ञासु पढ़कर, लिखकर और प्रश्न पूछ करके अपने ज्ञान की वृद्धि करता है। तब ज्ञान के प्रकाश से उसकी बुद्धि कमल के फूल की तरह खिलने लगती है।
         ज्ञान प्राप्त करने वाले मनुष्य का रंग-रूप, उसकी जाती अथवा आयु कोई मायने नहीं रखती। अपने ज्ञान के प्रकाश से वह किसी भी विद्वान को विस्मित कर सकता है। उसकी खुशबू चारों ओर फैल जाती है। वह व्यक्ति किसी का भी मार्गदर्शन कर सकता है। ऐसे व्यक्ति के पास ज्ञान का अकूत खजाना होता है। माँ सरस्वती की उस पर विशेष कृपा बनी रहती है। 
          कुछ लोग उससे ईर्ष्या भी कर सकते हैं, उसे चिपकू कहकर उसका उपहास भी कर सकते हैं। पर जिसको ज्ञानार्जन का नशा हो वह इन सब उक्तियों को सुनकर भी अनदेखा कर देता है। वह अपने पास आकर बैठने वाले के ज्ञान का कुछ अंश ग्रहण कर लेना चाहता है। मनीषी कहते हैं-
           बूँद बूँद से घट भर जाता है।
उसी प्रकार थोड़ा-थोड़ा ज्ञान बटोरते हुए कोई भी मनुष्य ज्ञानी बन सकता है। अपने ज्ञान के उज्ज्वल प्रकाश से वह चारों दिशाओं में उजाला कर देता है। ज्ञानी को अपने ज्ञान पर कभी अहंकार नहीं करना चाहिए। न ही ज्ञान के मद में उसे किसी व्यक्ति का तिरस्कार करना चाहिए। ऐसा ज्ञानवान मनुष्य सबका मान होता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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