शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

किशोरावस्था में अवसाद

किशोरावस्था में भी आजकल अकेलापन हावी होता जा रहा है। वे चिड़चिड़े होते जा रहे हैं। आजकल प्राय: सभी लोग शिकायत करते है कि किशोर किसी के साथ सीधे मुँह बात नहीं करते। पता नहीं वे किस नशे में रहते हैं। परन्तु बच्चे इस अकेलेपन की समस्या से झूझते हुए दिखाई देते हैं। किशोरों की यह अवस्था युवावस्था और बाल्यावस्था के बीच में पुल की तरह होते हैं।
          किशोर स्वयं को बड़ा घोषित चाहते हैं परन्तु उनका मानसिक स्तर बड़ों जैसा नहीं होता। वे पूर्ण स्वतन्त्रता चाहते हैं पर उसके मायने न पता होने पर उसे सम्हाल नहीं पाते। उस स्वतन्त्रता का दुरूपयोग करते हुए किशोर यदाकदा बुरे दोस्तों की संगति में पड़कर जाते हैं और अपना जीवन बरबाद कर लेते हैं।
         इस वय में वे छोटे भाई-बहनों के साथ रहना पसद नहीं करते। वे उन्हें अपने बराबर के नहीं लगते। इसलिए वे उनसे दूरी बनाकर रहते हैं। बड़े उन्हें बच्चा मानते हुए अनदेखा करते हैं। इस कारण वे निपट अकेले हो जाते हैं।
          अपने इस अकेलेपन को दूर करने के लिए वे नित नए उपाय तलाशते हैं। हमउम्र साथियों को ढूँढते हैं। उनके साथ वे अपना समय व्यतीत करते हैं, मौज-मस्ती करते हैं, हंसी-मजाक करते हैं और घूमते-फिरते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसे दोस्तों को खोजकर उन्होंने कोई खजाना पा लिया है।
         वे माता-पिता का समय चाहते हैं। वे  उनसे सलाह-मशविरा करना चाहते हैं, स्कूल और अपने दोस्तों की समस्याओं को उनके साथ शेयर करना चाहते हैं। वे माता-पिता की डाँट-डपट के लिए तरसते हैं।
        माता-पिता दोनों अपने-अपने कार्य-व्यवसाय में सवेरे से शाम तक बहुत ही व्यस्त रहते हैं। सुविधा सम्पन्न घरों  की स्त्रियाँ क्लबों, किटी पार्टियों या शापिंग आदि में व्यस्त रहती हैं। उनके पास बच्चों के लिए समय का अभाव रहता है।
         समयाभाव के मुआवजे के रूप में वे बच्चों को उनकी मनपसंदीदा मंहगी वस्तुएँ खरीदकर देते हैं। घूमने जाने पर उनको आवश्यकता से अधिक धन थमाकर उनका दिल जीतने की नाकाम कोशिश करते हैं। किशोरों को धन से अधिक माता-पिता से लाड-प्यार करने की आवश्यकता होती हैं। वे बच्चों की तरह उनके साथ रूठने-मानने का खेल खेलना चाहते हैं।
       घर में सबके बीच रहते हुए भी वे स्वयं को बहुत अकेला महसूस करते हैं। अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए वे अपने कमरे में अकेले बैठकर टीवी देखना और गेम्स खेलना पसद करते हैं। मोबाइल पर वाटस अप से दोस्तों से गप्पें हाँकने कर संतुष्ट होते हैं। फेसबुक पर मनपसंद पोस्ट या वीडियो देखकर अपना समय बिताना उन्हें अच्छा लगता है। अपनी पसंद के गाने सुनते हुए वे अपना मन बहलाने की नाकामयाब कोशिश करते हैं।
         किशोरावस्था में बच्चे संक्रमण काल से गुजर रहे होते हैं उन्हें इस अवस्था में मात-पिता के प्यार-दुलार की आवश्यकता होती है। वे उनका ध्यान आकर्षित करने की भरसक कोशिश करते हैं। उन्हें संस्कार देने की बहुत जरूरत होती है।
         इस अवस्था से सभी को ही गुजरना होता है। माता-पिता को किशोरावस्था की कठिनाइयों को समझने का प्रयास करना चाहिए। बच्चों से वार्तालाप करते रहना चाहिए। उनकी छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझाना चाहिए।
          किशोरों के साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए उन्हें आश्वस्त करना चाहिए कि जीवन के इस कठिन दौर में वे अकेले नहीं हैं बल्कि माता-पिता उनके साथ हैं। यह विश्वास किशोरों की बहुत बड़ी पूँजी होता है अन्यथा वे दुनिया की भीड़ में स्वयं को अकेला समझते हुए निराश हो जाते हैं। इसलिए अकेलेपन की समस्या से झूझते हुए कुछ किशोर डिप्रेशन के भी शिकार हो जाते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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