रविवार, 8 अक्तूबर 2023

पितरों को श्रद्धा से तृप्त करो श्राद्ध से नहीं

हर व्यक्ति अपने जीवन में कल्याण की कामना करता है। वह अपने परिवारों जनों तथा समाज  में एक अच्छी सन्तान होने का मेडल पहनना चाहता है। इस प्रसिद्धी को पाने का एकमात्र यही उपाय है कि अपने बुजुर्ग होते माता-पिता को श्रद्धापूर्वक अपने आचार-व्यवहार से प्रसन्न करना चाहिए। 
           जहॉं तक हो सके उनके जीवनकाल में ही उनकी सेवा कर ली जाए। उनके खान-पान का समुचित ध्यान रखा जाए। उनके स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही न बरती जाए। उनके वस्त्रों के प्रति सजग रहा जाए। उनके साथ कुछ समय व्यतीत किया जाए ताकि वे अकेलेपन से घबरा न जाऍं। जो बच्चे ऐसा करते हैं उनका घर ही मन्दिर बन जाता है और वहॉं पत्थर की मूर्तियों का स्थान जीवित मूर्तियॉं यानी उनके माता-पिता ले लेते हैं।
          गुरु नानक देव जी के जीवन से ‌जुड़ी एक घटना कहीं पढ़ी थी, उसे यहॉं उद्धृत करना‌ चाहती‌ हूॅं। एक बार गुरू नानक देव जी भ्रमण करते हुए शिष्यों सहित तीर्थराज हरिद्वार गए । वहाॅं उन्होनें देखा कि हजारों भावुक अन्ध विश्वासी श्रद्धालु लोग गंगा में खड़े होकर मरे हुए माता-पिता आदि को पानी द्वारा तर्पण व पिण्ड दान कर रहे हैं।   
       नानक देव जी ने सोचा कि इन भोले लोगों कैसे समझाया जाय, अतः वे भी गंगा की धारा में खड़े होकर पंजाब की तरह मुॅंह करके दोनों हाथों से गंगा का पानी फैंकने लगे। स्वयं से विपरीत दिशा में जल फैंकते देख लोगों को आश्चर्य हुआ तो उन्होनें नानक देव जी से पूछा महाराज! आप ये क्या कर रहे हैं? 
            सरल स्वभाव गुरु नानक जी बोले, "भाइयो, मैं अपने खेत को पानी दे रहा हूँ।"  
         यह सुनकर सब लोग हंसने लगे और गुरु नानक जी से कहने लगे, "महाराज इस प्रकार आपके खेतों में पानी पहुॅंचना सम्भव है क्या?" 
       तब महात्मा नानक देव जी बोले, "ओ भोले लोगो! मेरा पानी मेरे पंजाब प्रान्त के खेतों में नहीं पहुँचेगा तो तुम्हारे मरे हुए माता-पिता जो किस योनि में किस देश में और अपने कर्मानुसार क्या फल भुगत रहे हैं, उन्हें तुम्हारा ये तर्पण पिण्ड दान कैसे पहुँचेगा ?" 
        लोगों को समझाते हुए गुरु नानक देव जी ने फिर कहा, "अतः इस पर विचार करो और अपने जीवित माता पिता और गुरुजनों को श्रद्धा व भक्ति भाव से तृप्त करो तभी तुम्हारा कल्याण होगा अन्यथा आप दुःख सागर में गोते ही खाते रहोगे।"
           इस घटना को पढ़कर यही प्रतीत होता है कि महापुरुषों के समझाने का‌ तरीका बड़ा विचित्र होता है। वे अपनी क्रियात्मकता से जन साधारण के मन में अपनी बात को बड़ी‌ सरलता से पहुॅंचा देते हैं। गुरु नानक देव जी के उपदेश के‌ बाद मेरे कहने के लिए कुछ नहीं बचता। यह अब आप सुधीजनों पर निर्भर करता है कि आप महापुरुषों का अनुसरण करना चाहते हैं या अन्धविश्वासों एवं रुढ़ियों में फसे रहना चाहते हैं।
           मैं बस इतना ही‌ कहना चाहती हूॅं कि अपने माता-पिता का ऋण जीवनभर उनकी सेवा करके भी नहीं चुका सकते। इसलिए उनके जीवनकाल में ही उन्हें इतना सन्तुष्ट कर दीजिए ताकि उनके परलोक सिधारने पर आपको किसी ढकोसले की आवश्यकता ही न रहे।
चन्द्र प्रभा सूद

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