शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

खिलौना लेकर सोते बच्चे

खिलौना लेकर सोते बच्चे

आधुनिकीकरण के कारण आज के एकल परिवारों में प्रायः बच्चों को कोई न कोई खिलौना या स्टफ टॉय यानी टेडी बियर या कोई गुड़िया आदि लेकर सोने की आदत हो जाती है। माता-पिता अपने बच्चों के लिए घर में एक सुन्दर-सा डिजाइनर बेडरूम बनवा देते हैं। उसमें उनकी आवश्यकता का सारा सामान रखवा देते हैं, ताकि छोटे बच्चे आकर्षित होकर उस कमरे में सोने के लिए तैयार हो जाएँ।
           दूसरे शब्दों में कहें तो माता-पिता बच्चे को अलग कमरे में रात को सोने के लिए एक प्रकार से रिश्वत देते हैं। हम कह सकते हैं कि पश्चिमी देशों के अँधानुकरण का ही यह परिणाम है कि माता-पिता द्वारा छोटे बच्चे को जबरदस्ती अलग कमरे में रात को सोने के लिए विवश किया जाता है। छोटी आयु में बच्चा माता-पिता के साथ ही सोने की जिद करता है। परन्तु वे उसे बहला फुसलाकर, लालच देकर वहाँ सोने के लिए तैयार करते हैं। 
           बहुत बार बच्चा उन्हें अपने पास सोने के लिए मजबूर करता है। उस समय माता या पिता उसके साथ सोने का नाटक करते हैं और बच्चे के सोते ही अपने कमरे में आ जाते हैं। बड़े ही दुख की बात है कि माता-पिता यह जानने का प्रयास ही नहीं करते कि बच्चा अलग क्यों नहीं सोना चाहता? वे बस अपने साथियों में अपनी शान बघारते नहीं थकते कि उन्होंने अपने छोटे बच्चे को सभी सुविधाओं से लैस एक सुन्दर-सा बेडरूम दिया हुआ है।
          कई बार ऐसा होता है कि बच्चा रात को टॉयलेट जाने के लिए उठता है, तब माता या पिता को अपने पास न पाकर रोने लगता है अथवा उनके कमरे में आकर उनके पास ही सो जाता है। बड़ी आयु के बच्चों को प्राइवेसी चाहिए होती है, वे बड़ी कक्ष में आ जाते हैं। तब उनकी पढ़ाई डिस्टर्ब न हो, इसलिए उन्हें अपना अलग कमरा चाहिए होता है। पर छोटे बच्चों के साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं होती।
         एकल परिवार में प्रायः माता-पिता दोनों ही नौकरी अथवा व्यवसाय करते होते हैं। इसलिए उनके पास अपने बच्चों के लिए समय कम ही निकल पाता है। वे बच्चे के पास अधिक समय तक लेटकर या बैठकर उसे कहानी नहीं सुना सकते और न ही उसके साथ ज्यादा समय तक कुछ खेल सकते हैं। इसके लिए उन्हें कोई दोष नहीं दिया जा सकता। उनकी अपनी विवशता है कि वे चाहकर भी बच्चे को अधिक समय नहीं दे पाते।
         परन्तु एक सच्चाई यह भी है कि बच्चा उनसे मनचाहा समय पाना चाहता है, नहीं तो वह उदास हो जाता है। उस समय बच्चा खिलौने को ही अपने एकाकीपन का साथी बन लेता है। रात को जब उसे डर लगता है, तो वह कसकर उसे पकड़ लेता है। उसे यह अहसास होता है कि कोई उसके पास है, डरने की कोई बात नहीं है। उसे ऐसा लगता है कि कोई उसका साथी है, जो उसके साथ सो रहा है। 
           दूसरे शब्दों में कहें तो बच्चे के दुख और सुख का साथी वह खिलौना बन जाता है। वह उसी के साथ सोता है और उसी के साथ जागता है। उसी खिलौने से वह झगड़ा करता है, उसी से प्यार भी करता है। उससे मित्रवत बातें करके अपना मन बहलाता है। जब कभी उसे माता या पिता से डाँट पड़ती है, तब वह उसे ही जाकर बताता है। इस तरह वह अपने मन का गुबार निकल करके स्वस्थ हो जाता है।
          संयुक्त परिवारों के रहते बच्चों को इन सब समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता था। वहाँ उनकी देखभाल के लिए दादा-दादी या परिवार के अन्य सदस्य होते हैं। दादा-दादी की गोद उनका सबसे बड़ा सम्बल होती है। रात को उनसे कहानी सुनते, उनके साथ मस्ती करते हुए, सोते और जागते हुए बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, यह पता ही नहीं चल पाता। वहाँ रहने वाले माता-पिता भी बच्चों की ओर से निश्चिन्त रहते हैं।
           इस चर्चा का सार यही है कि बच्चे की सुरक्षा और भलाई के लिए माता-पिता कृतसंकल्प रहते हैं। उसकी छोटी-छोटी समस्याओं को समझने के लिए उन्हें अपने व्यस्त समय में से थोड़ा समय निकालना चाहिए और उनका समाधान करना चाहिए। बच्चे के ऊपर जबर्दस्ती अपनी मर्जी नहीं थोपानी चाहिए, उसे सदा प्यार से समझना चाहिए। इससे बच्चे के मन में माता-पिता के लिए कडवाहट नहीं आती।
चन्द्र प्रभा सूद

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