शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

प्यार में इन्कार-लघुकथा

नलिनी अपने कमरे में अकेले बैठकर सोच रही थी कि आखिर नितिन ने ऐसा कदम  क्यों उठाया?
       असल में नितिन कई दिनों से नलिनी के पीछे पड़ा हुआ था। उसने कई बार उससे पूछा था- "क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी?"
नलिनी ने उत्तर दिया- "नहीं, मैं दोस्ती नहीं करना चाहती।"
         नलिनी केवल पढ़ने के उद्देश्य से स्कूल आती थी। वह किसी से फालतू में दोस्ती करके अपना समय बरबाद नहीं करना चाहती थी। वह पढ़-लिखकर अपना और  अपने माता-पिता का सपना पूरा करना चाहती थी।
         आज तो हद ही हो गयी। पीरियड समाप्त होने की घण्टी बजी। अध्यापक कक्षा से बाहर चले गए। अगले पीरियड वाले अध्यापक आने वाले थे। नितिन ने उसके पास आकर जोर देते हुए फिर पूछा- "क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती?"
उसने एक बार फिर से वही जवाब दिया-"नहीं, न मैं तुमसे प्यार करती हूँ और न ही दोस्ती करूँगी।"
इस पर वह चिढ़कर बोला- "यदि तुम मेरे साथ दोस्ती नहीं करोगी तो मैं अपनी जान दे दूँगा।"
        नलिनी उसके इस रवैये पर हैरान रह गई और उससे कुछ भी कहते नहीं बना। उसकी चुप्पी पर बड़बड़ाता हुआ नितिन उठा और अपनी कक्षा के बाहर जाकर  स्कूल की उसी चौथी मंजिल से छलाँग लगा दी।
        पलक झपकते ही सब हो गया। जब तक अगले अध्यापक कक्षा में आते उन्होंने जमीन पर गिरे नितिन को देखा। आनन-फानन में अम्बुलेंस बुला ली गई और नितिन के माता-पिता को सूचित कर दिया गया।
      बाद में पता चला कि उसकी जान तो बच गई पर उसे कई स्थानों पर मल्टीपल फ्रेक्चर हो गया था।
चन्द्र प्रभा सूद
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