सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

सबका साझा दुःख

यह तेरा दुख
यह है मेरा दुख
इसका दुख, उसका दुख
सबके दुख जानो जहान में एक समान।

मत बाँटों अब
इस दुख को कभी
राजनीति करती कैद
जाति-पाति, ऊँच-नीच की इन दीवारों में।

इस दुख की
नहीं कोई भी हद
सीमा रहित है यह
मन की गहराई से मान लो इस सच को।

सबका दुख है
साझा होता दुख है
इस पर ताण्डव करना
जश्न मनाना आखिर कब तक चल पाएगा?

कहो, बताओ
हम सबको अब
जरा सोचकर मन से
किसके हिस्से में नहीं है आया यह दुख?

दुख की भाषा
मानो मौनी भाषा
पढ़ सकते हो क्या भाई 
अनकही मौन की यह विरली परिभाषा।

समझ आ जाए
हमें भी समझा देना
बलखाते दुख की पीड़ा
करेंगे उस पल की हम प्रतिक्षण प्रतीक्षा।
चन्द्र प्रभा सूद
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