गुरुवार, 6 जुलाई 2017

मायके व ससुराल में सामञ्जस्य

बेटियाँ अपने माता-पिता का मान होती हैं। अपने मायके की शान होती हैं। भाइयों की जान होती हैं। उन्हें घर-परिवार में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। उनकी राय को सदा अहमियत भी दी जाती हैं। उनकी चहचहाहट से सारा घर गुलजार रहता है।
         सभी माता-पिता अपनी प्यारी बेटी को पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ देखना चाहते हैं। आज वे उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए प्रयत्न कर रही हैं।  अपने माता-पिता का नाम रौशन करती हुईं वे इसीलिए उच्च पदों पर आसीन हैं।
        समयानुसार जब बेटी की शादी हो जाती है तो उसका दायित्व बहुत बढ़ जाता है। तब उसे मायके के साथ-साथ अपने ससुराल की भी चिन्ता होनी चाहिए। उसे केवल मायके के बारे में सोचते हुए अपने ससुराल के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं भूलना चाहिए।
          मायके में हर दूसरे दिन जाना या अपनी ससुराल की छोटी-मोटी नोकझोंक को नमक-मिर्च लगाकर माता-पिता की सहानुभूति बटोरने से बचना चाहिए। इससे संबंधों में दरार आने की संभावना बढ़ती है जिससे दोनों घरों में अनावश्यक तनाव बढ़ जाता है और मनमुटाव होने लगता है।
         पढ़ी-लिखी समझदार लड़कियों से समाज समझदारी की उम्मीद रखता है। जब तक पानी सिर से ऊपर होने की नौबत न आए तब तक सदा ही अपने परिवार में मिलजुलकर सामंजस्य बनाए रखने का यत्न करना चाहिए।
          भाई की शादी के बाद तो बेटी को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके मायके को अपने भाई और भाभी के सुपुर्द कर देना चाहिए। वे अपने घर को कैसा भी रखते हैं उसमें दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए। भाभी और ननद के संबंधों की बुनियाद आपसी प्रेम व विश्वास पर होती है क्योंकि वे रक्त संबंध नहीं होते। इस रिश्ते में कटुता न आने पाए इसलिए सदा सावधान रहना चाहिए।
         हर व्यक्ति सुरुचिपूर्ण तरीके से, अपनी इच्छा से ही अपने घर की साज-सज्जा करना चाहता है। उसमें जाकर व्यर्थ ही मीनमेख निकालना सर्वथा अनुचित होता है। ऐसा करने से उनके मन में आपके प्रति रोष उत्पन्न होगा। उन्हें ऐसा लगेगा कि उनके घर में आप अनावश्यक रूप से हस्ताक्षेप कर रही हैं। यह बेरुखी वाला व्यवहार धीरे-धीरे बढ़ता हुआ विनाश के कगार पर पहुँच जाता है।
         अपने माता-पिता की चिन्ता हर बेटी को निस्संदेह रहती है। भाई-भाभी को यह कहकर अपमानित करना कि वे उनका ध्यान नहीं रखते अनुचित है। वे उनके भी माता-पिता हैं। इसलिए वे यथासंभव उनका सम्मान व ध्यान रखते ही हैं।
          सबसे बड़ी समस्या तब आड़े आती है जब बेटी अपने माता-पिता के भाई-भाभी के विरुद्ध कान भरती है और वे भी उसकी बातों में आकर अपने बेटे-बहू को दोष देने लगते हैं। मैं सबसे प्रार्थना करूँगी कि ऐसी स्थितियों से यथासंभव बचें।
         यदि बेटी चाहे भी तो माता-पिता को अपने साथ नहीं रख पाती और न ही वे अपने बेटे का घर छोड़कर बेटी के पास रहना चाहते हैं। इसका कारण हमारा है पारिवारिक व सामाजिक ढाँचा।
         बेटियों को एक बात का और ध्यान रखना चाहिए कि मायके में अनावश्यक दखल देते हुए अपने ससुराल की ओर से लापरवाह नहीं होना चाहिए। ऐसा न हो कि 'दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।'
अर्थात मायके से संबंध बिगड़ जाएँ और ससुराल में भी सम्मान कम हो जाए।
          यह बात हमेशा ही स्मृति में रखनी चाहिए कि माता-पिता का साथ सबको सीमित समय तक ही मिलता है पर बहन को अपने भाई और भाभी के साथ आयु पर्यंत निभाना होता है। अतः अपनी ओर से ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे घर-परिवार में सबका सम्मान बना रहे और जग हंसाई भी न हो।
चन्द्र प्रभा सूद
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