शनिवार, 8 जुलाई 2017

सत्य की शक्ति

जीवन में सत्य का बहुत महत्त्व होता है।सच में बहुत शक्ति होती है वह बड़े-बड़े साम्राज्य तक हिला देती है। दूर क्या जाना. महात्मा गांधी का उदाहरण हमारे समक्ष प्रत्यक्ष है जिन्होंने अंग्रेजों के विदेशी शासन को इसी शक्ति से देश के बाहर निकाल फैंका था  और हमारे भारत देश को स्वतंत्र करवाकर हमारे ऊपर महान उपकार किया था।
    असत्य का व्योपार बच्चे घर में बचपन से ही देखते हैं। छोटे बच्चे अपने माता-पिता को किसी आवश्यक कार्य के लिए जाने को तैयार देख जब उन्हें घर से बाहर नहीं देना चाहते या उनके साथ जाने की जिद करते हैं तब प्रायः वे उन्हें यह कहकर घर से जाते हैं कि आफिस जा रहे हैं या डाक्टर के पास इंजेक्शन लगवाने जा रहे हैं। बच्चे उस झूठ को सच मानकर अपना दुराग्रह छोड़कर घर में रह जाने के लिए मान जाते हैं। वे कभी विश्वास भी नहीं सकते कि हर समय सत्य बोलने के पक्षधर उनके माता-पिता असत्य का पालन कर सकते हैं। बच्चों को झूठ बोलने पर घर-बाहर या विद्यालय हर स्थान पर डाँट पड़ती है या सजा मिलती है परन्तु हम बड़े होकर भी हर समय इसे भूल जाते हैं।
      कभी-कभी माता या पिता घर आए किसी जानकार या मित्र से मिलना नहीं चाहते तो बच्चे से, घर के किसी सदस्य से या नौकर से कहला देते हैं कि वे घर पर नहीं हैं। कभी यह विचार हमारे मन में नहीं आता कि बच्चे वही सीखेंगे जो उदाहरण हमे उनके समक्ष रखेंगे। बच्चे बड़ों की देखा देखी जब धीरे-धीरे इस असत्य आचरण के अभ्यस्त होने लगते हैं तब हम स्वयं को दोषी न मानते हुए उनको डाँट-डपट करते हैं और कोसते हैं।
       कमोबेश हम सब की यही स्थिति है। हम चाहे असत्य का आचरण कर लें पर किसी दूसरे के झूठ की अनुपालना हमें स्वीकार नहीं होती। शायद इस विषय पर विचार करने की आवश्यकता ही हम नहीं समझते।
      हमें इस विषय पर मनन करने की बहुत आवश्यकता है। पूरी प्रकृति सत्य या ऋत् का पालन करती है। अपने नियम का पालन करती है तभी तो हमें इन सारी छह ऋतुओं की सौगात मिलती है। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि व आकाश पाँचों महातत्व हमारी सारी जरूरतों को पूरा करते हैं।
    जगत् गुरू शंकराचार्य कहते हैं-
            'ब्रह्म सत्य जगत् मिथ्या।'
अर्थात् ईश्वर सत्य है और यह जगत मिथ्या या असत्य है। तो फिर हमें सत्य का व्यवहार करते हुए अपने धर्म का पालन करना चाहिए।
        सौ परदों में छुपकर किया गया असत्य आचरण समय आने पर सबके सामने उजागर हो जाता है। उस समय हमें लोगों की जिल्लत सहनी पड़ती है। सबकी अवहेलना सहते हुए हम अलग-थलग पड़ जाते हैं।
    सबसे मुख्य यह है कि हम किससे छुपकर ऐसा करते हैं? दुनिया से बच सकते हैं पर वो जो कण-कण में, जर्रे-जर्रे में विद्यमान है उसकी नजर से नहीं बच सकते। चलिए सबसे बचने का जुगाड़ हम कर भी लेंगे पर अपने अंत: करण से बचकर कहीं नहीं जा सकते। वह हरपल हमें इस असत्य आचरण के लिए कचोटता रहेगा।
       इसीलिए ऋषि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं-  'असतो मा सद्  गमय'। अर्थात् हे ईश्वर! हमें असत्य मार्ग से हटाकर सत्य की ओर ले चलो।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail.com
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें