बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

अहं का त्याग करें

हम अपने घर के दरवाजे व खिड़कियाँ बन्द करके रखते हैं। सूर्य आता है, हमारे द्वार पर खड़ा रहता है और दस्तक देता है। अब यह हमारी इच्छा पर निर्भर करता है कि हम अपना दरवाजा खोलें या नहीं। चुपचाप मौन खड़ा वह हमारी प्रतीक्षा करता रहता है। अपने प्रति हमारे द्वारा की गई अपेक्षा या उदासीनता को देखकर वह हमसे कोई गिला-शिकवा किए बिना ही वापिस लौट जाता है।
       सूर्य ने कभी इसे अपने अहम का प्रश्न नहीं बनाया। यदि हमारे इस व्यवहार से सूर्य अपना अपमान समझ लेता तो हम लोगों की तरह हमारी शक्ल दुबारा न देखने की कसम खा लेता। अब सोचिए यदि ऐसा हो जाए और सूर्य अगले दिन से ही उदय होने से इन्कार कर दे तो क्या स्थिति हो जाएगी? चारों ओर हाहाकार मच जाएगा। सम्पूर्ण पृथ्वी पर शीत का ही साम्राज्य हो जाएगा। चारों ओर बर्फ-ही-बर्फ जम जाएगी। फिर हर तरफ त्राहि-त्राहि मच जाएगी। हम सभी जीवों का जीवन तत्काल ही समाप्त हो जाएगा।
       ईश्वर निर्मित सम्पूर्ण सृष्टि इस प्रकार हमारी बेवकूफियों व गुस्ताखियों को नजरअंदाज करके हमें ईश्वरीय नेमतों से मालामाल करती है।
       जब प्रकृति हमारी गलतियों की हमें सजा नहीं देती, वह क्षमाशील हो सकती है तो ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना हम मनुष्य क्यों नहीं? यह प्रश्न रह-रहकर मन को पुनः पुनः उद्वेलित करता है।
        किसी ने जरा-सा कुछ कह दिया या हमारी ओर ध्यान नहीं दिया तो हम यह मानने लगते हैं कि अमुक व्यक्ति ने हमारा अपमान कर दिया है। उसे हमारी रत्ती भर भी परवाह नहीं है। चाहे यह सब अनजाने में ही हुआ हो। ऐसा भी हो सकता है कि जिसे हम अपना शत्रु मान चुके हैं वह इस सबसे अनजान हो। परन्तु हम अनावश्यक ही नकारात्मक विचारों की गाँठ मन में बांधे  सोच-सोचकर व्यर्थ ही परेशान होने लग जाते हैं।
        उस समय हम आपे से बाहर होकर किसी भी प्रकार हर हालत में उससे बदला लेने के लिए मचलने लगते हैं। कभी उसका चेहरा न देखने की कसम तक खा लेते हैं।
       अपने अहम के कारण हर किसी को भी देख लेने और हर कदम पर दूसरों को नीचा दिखाने वाली प्रवृत्ति के कारण हम बदले की आग में जलते रहते हैं। ईर्ष्या और क्रोध की अग्नि में जलते हुए हम अपने दुश्मन स्वयं ही बन जाते हैं। तब हार्ट अटैक, बी पी, शूगर, डिप्रेशन जैसी नामुराद व लाइलाज बीमारियों को हम अनायास ही न्यौता दे बैठते हैं। उस समय दिन-रात एक करके परिश्रम से कमाए गए धन को और अपने अमूल्य समय को हम डाँक्टरों के हवाले करते हैं। राई को पहाड़ बनाकर निरर्थक ही हम अपने और अपनों के दुख का कारण बन जाते हैं। अपने स्वास्थ्य व धन की हानि करते हुए अपनी मानसिक शांति भंग करते हैं।
         उस समय ग्रन्थों द्वारा समझाए गए ये वचन भूल जाते हैं कि अहंकार करने वाले का कभी भला नहीं होता। उसका अंत  हमेशा ही भयानक होता है। इतिहास के पन्नों में ऐसे लोगों के नाम सदा के लिए दफन हो जाते हैं। युगों तक कोई भी उनका नाम सम्मान से नहीं लेता।
        हमें यथासंभव अपने झूठे अहम से स्वयं को बचाना चाहिए ताकि किसी प्रकार के मानसिक व शारीरिक आघातों से दूर रह सकें। हम प्रकृति की तरह क्षमाशील बनकर अपने जीवन को संतुलित रखने में समर्थ हो सकें।
चन्द्र प्रभा सूद
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