मंगलवार, 30 सितंबर 2014

हमारे त्योहार

आज अक्टूबर मास ने खुशियों की दस्तक दी है। बहुत से त्योहार इस महीने में आ रहे हैं। ये त्योहार हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं व हमारे संबंधों के सुदृढ़ होने का प्रमाण है।
        आज लोग कितना भी कहें कि हमारी परंपराओं अथवा हमारे संबंधों में पहले जैसी गर्माहट नहीं रही। धीरे-धीरे उनका ह्रास हो रहा है। यह तर्क मानने को मन गवाही नहीं देता।
       नवरात्रों से ही रामलीला का मंचन आरंभ हो जाता है। दुर्गा पूजन के साथ-साथ दशहरे पर रावण दहन की चहल-पहल देखते ही बनती है। अहोई अष्टमी, करवाचौथ का व्रत, धनतेरस आदि त्योहार हमारी संस्कृति को सुदृढ़ करते हैं
       दीपावली पर्व में सबका उत्साह प्रशंसनीय होता है। घरों की साफ-सफाई, बाजारों की चमक-दमक, चारों ओर गहमागहमी बताते हैं कि हम अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े हुए हैं। भैयादूज भाई-बहन के अटूट बंधन का परिणाम है
         इन त्योहारों के आने से हमारे जीवन में उत्साह बना रहता है। आपसी मेलजोल निराशा को दूरकर उमंग जगाते हैं अन्यथा जीवन एक ही ढर्रे पर चलते-चलते ऊबाऊ होने लगता है।
         हमें इच्छा न होते हुए भी सामाजिकता का निर्वहण करते हुए इन त्योहारों को प्रसन्नता पूर्वक उल्लासपूर्ण मन से मनाना चाहिए।

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