मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

झूठा आडम्बर

जरा देखो तो
हँसते-हँसते आज
जीतती जा रही है अब
यह मौत, जिन्दगी की बाजी को हमसे।

खुश होंगे बच्चे
कि अब है छूटी जान
जो बुजुर्गों के बन्धन में
अब तक न चाहते हुए भी फँसी हुई थी।

उनकी आजादी
नहीं रहेगी बन्धक
उनका कमरा भी तो
अब खाली हो जाएगा जो भरा हुआ था।

जीवनकाल में
जिन्होंने न पूछा
एक घूँट पानी का कभी
आज अपने नाम को प्याऊ लगवा रहे हैं।

माता-पिता को
नालायक बच्चों ने
न दी दो जून रोटी कभी
आज देखो तो सही भण्डारे करवा रहे हैं।

जीते जी उनको
अपने घर में दे न
सके जो एक कमरा भी
आज उनके नाम से वे कमरे बनवा रहे हैं।

दिलवा सके न
दवाई कभी जिनको
बीमारी की अवस्था में
आज उनके नाम से दवाइयाँ बँटवा रहे हैं।

तन ढकने को
एक जोड़ी कपड़े
के लिए रहे जो तरसते
आज उनके नाम से कम्बल खरीदवा रहे हैं।

पूछ लिया होता
उन्हें जीते-जी यदि
न पड़ती जरूरत फिर
जग में इन सभी झूठे आडम्बरों की कभी।

नाम रौशन है
करना धरा पर यदि
देवतुल्य माता-पिता को
न बिसराओ अपने जीवन में यूँ ही कभी।
चन्द्र प्रभा सूद
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