बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

व्यक्तित्व में गहराई और विचार शुद्धता

मनुष्य का महान होना या बड़ा होना वाकई बहुत प्रशंसनीय होता है। इसके साथ ही मनुष्य के व्यक्तित्व में गहराई और विचारों में शुद्धता का होना भी उतना ही आवश्यक होता है। तभी एक महान व्यक्ति कहलाने का वह अधिकारी बन सकता है।
        यहाँ पर मैं तालाब का उदाहरण देना चाहती हूँ। तालाब सदैव कुँए से कई गुणा बड़ा होता है फिर भी लोग कुँए का ही पानी पीते हैं। इसका कारण है कि कुँआ गहरा होता और उसका पानी शुद्ध व पेय होता है। तालाब में लोग नहाते हैं और पशु भी वहाँ घुस जाते हैं। वहाँ गन्दगी होने लगती है। इसलिए तालाब का पानी शुद्ध न होने के कारण पीने योग्य नहीं रह पाता।
         यदि मनुष्य के विचारों में शुद्धता नहीं होगी और संकीर्णता होगी तो उसके कार्य भी उसी के अनुरूप होंगे। वह 'मैं और मेरे' से ऊपर नहीं उठ सकता। यानी मैं, मेरा परिवार और मेरे बच्चे बस इसी में ही सीमित होकर रह जाता है। वह किसी भी तरह के असामाजिक कार्य या अनैतिक कार्य कर सकता है।
        उसके मन में दूसरों के प्रति सद्भावना न होकर दुर्भावना रहती है। उसका यह संकुचित हृदय सदा स्वार्थ साधने में तत्पर रहता है। ऐसा स्वार्थी व्यक्ति किसी का भी सगा नहीं हो सकता। आवश्यकता पड़ने पर वह गधे को भी अपना बाप बनाने में संकोच नहीं करता। परिस्थितियों के अनुरूप अपने प्रियजनों तक को पहचानने से इन्कार कर सकता है। अपने प्रियजनों की और भगवान की झूठी कसमें वह ऐसे खा जाता है जैसे बच्चे लालीपाप अथवा चाकलेट खाते हैं।
          इन लोगों का हर कार्य मात्र प्रदर्शन के लिए होता है। ये लोग यदि दानादि जैसे परोपकार के कार्य करते भी हैं, तब भी यही सोचते हैं कि उन्हें इससे क्या लाभ होगा? अपनी लाभ-हानि के इतर ये सोचना इनका स्वभाव ही नहीं होता। इनका मन उथला होता है उसमें गहराई का अभाव होता है। इसीलिए इन लोगों के सद् कार्यों की प्रशंसा भी क्षणिक ही होती है और फिर लोग उन्हें शीघ्र भूलने भी लग जाते हैं।
        इनके विपरीत महान लोग सदा ही देश, समाज और धर्म की भलाई के कार्य करते रहते हैं। अपना घर-परिवार तो हर कोई पाल लेता है। दूसरों का हित साधना ही सबसे कठिन कार्य होता है। इसके लिए अपना सुख और आराम खोना पड़ता है। महापुरुषों को कितनी ही कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पड़े, वे अपना आगे बढ़ाया हुआ कदम पीछे लौटाकर कभी नहीं लाते।
       उनका सहृदय होना ही उनकी सबसे बड़ी विशेषता होती है। इसी गुण के कारण वे सभी के प्रिय बन जाते हैं। बिना किसी स्वार्थ के हर समय दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। निस्वार्थ सेवा करने वाले इन महानुभावों के पास लोग अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए बिना झिझक के किसी भी समय आ जाते हैं। ये लोग भी बिना माथे पर शिकन लाए उसी समय उनकी सहायता के लिए चल पड़ते हैं।
        लोगों के कठिन समय में अपने कार्यों को अनदेखा करके उनके साथ कन्धे-से-कन्धा मिलाकर खड़े रहते हैं। न उन्हें दिन की चिन्ता होती है और न ही रात की। वे अपने लाभ अथवा हानि की चिन्ता बिल्कुल भी नहीं करते। वे जानते हैं कि दूसरों की सेवा करके ही मनुष्य समाज के ऋण से उऋण हो सकता है।
        मन के विचारों की गहराई और उसकी पवित्रता ही सज्जनों और दुर्जनों का अन्तर स्पष्ट करती है। इसी के कारण एक व्यक्ति संसार में पूजनीय बनकर सिर-आँखों पर बिठाया जाता है और दूसरा सबकी अवहेलना का पात्र बनता है।
          अतः प्रत्येक मनुष्य को स्वयं अपने विवेक से ही यह निर्णय करना है कि उसे कौन-से मार्ग पर चलकर अपनी जीवन यात्रा पूर्ण करनी है।
चन्द्र प्रभा सूद
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