बुधवार, 22 नवंबर 2017

मृत्यु का समय नहीं

हमारे मनीषी 'जीवेम शरद: शतम् ' कहकर ईश्वर से प्रार्थना किया करते थे कि वे सौ वर्षों तक स्वस्थ जीवन जीएँ। पर आजकल तो यह अवधारणा टूटती जा रही है। हम कहते रहते हैं कि मनुष्य की आयु सौ वर्ष है, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता। मनुष्य के जीवन का कोई भरोसा नहीं। कब उसका बुलावा आ जाए और वह अपना सब कुछ इस संसार में छोड़कर खाली हाथ ही यहाँ से विदा हो जाए। मृत्यु न तो मनुष्य की आयु ही देखती है और न ही उसका रुतबा। उसे तो बस अपने नियम का पालन करना होता है।
         एक घटना कहीं पढ़ी थी, उस पर विचार करते हैं। एक सन्त प्रतिदिन सत्संग किया करते थे। उस समय सर्दी का मौसम था। एक छोटा-सा लड़का उनके पास आकर सत्संग में बैठ जाता था।
एक दिन सन्त ने उससे पूछा- "बेटा, इतनी सर्दी के समय प्रात:काल जल्दी से उठकर सत्संग सुनने क्यों आते हो?"
उस छोटे लड़के ने उत्तर दिया- "महाराज, पता नहीं मौत कब आकर मुझे ले जाए?"
सन्त ने उसकी बात सुनकर हैरान होते हुए कहा- "तुम इतनी छोटी-सी उम्र के बच्चे हो, अभी तुम्हे मौत थोड़ा ही मारेगी? अभी तो तुम जवान होवोगे, धीरे-धीरे बूढ़े हो जाओगे, फिर मौत तुम्हे लेकर जाएगी।"
लड़के ने कहा- "महाराज, मेरी माँ चूल्हा जला रही थी, बड़ी-बड़ी लकड़ियों को जब आग ने नहीं पकड़ा तो उन्होंने मुझसे छोटी-छोटी लकड़ियाँ लेन के लिए कहा। जब माँ ने छोटी-छोटी लकड़ियाँ डालीं तो आग ने उन्हें एकदम पकड़ लिया। हो सकता है इसी तरह एक दिन मुझे भी छोटी उम्र में ही मृत्यु पकड़कर ले जाए। इसीलिए मैं बिना समय गँवाए अभी से ईश्वर की उपासना करना चाहता हूँ।"
           मृत्यु मनुष्य के पास कब आ जाएगी, इसके विषय में किसी को कोई भी ज्ञान नहीं है। कबीरदास जी ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में इस विषय में कहा था-
           माली आवत  देखकर कलियाँ करें पुकार।
           फूल फूल चुनी ले गए कल को हमारी बार।।
अर्थात बगीचे में फूल तोड़ने आए हुए माली को देखकर कलियाँ आपस में बात कर रहीं हैं कि खिले हुए फूलों को माली आज तोड़कर ले जा रहा है। कल जब हम खिलकर फूल बन जाएँगी तब माली हमें भी तोड़कर ले जाएगा।
        ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य को काल कब अपना ग्रास बना लेगा इसका कोई नियम नहीं है। पैदा होते बच्चे से लेकर किसी भी आयु के व्यक्ति की मृत्यु कभी भी, किसी भी कारण से हो सकती है। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि माँ के गर्भ में होते हुए बच्चे की भी मृत्यु हो जाती है जिसने अभी इस दुनिया में कदम भी नहीं रखा होता। किसी विद्वान ने सत्य कहा है-
         जल्दी  से  जतन  करके  राघव को  रिझाना है।
         थोड़े दिन ही तो रहना है, माया की कुठरिया में।।
अर्थात जितनी जल्दी हो सके ईश्वर का स्मरण कर लेना चाहिए। इस मायावी कोठरिया में कुछ समय के लिए ही रहना है। निश्चित समय के पश्चात उसे खाली करके मनुष्य को चले जाना होता है।
            यह घटना हमें समझा रही है कि समय को गँवाए बिना जितनी जल्दी हो सके ईश्वर की पूजा-अर्चना कर लेनी चाहिए। यह मत सोचिए कि जब वृद्ध होंगे तब ईश्वर की उपासना करेंगे। उस समय मनुष्य अशक्त हो जाता है तब यह सब सम्भव नहीं हो सकता। वास्तव में उस प्रभु से प्रेम करके ही इस जीवन सफल बना लेना चाहिए। हमारी इन साँसों से बड़ा और कोई भी धोखेबाज नहीं हो सकता। ये कब इस शरीर को छोड़कर परलोक चल दें कुछ भी भरोसा नहीं। इसलिए परमपिता परमात्मा का स्मरण समय रहते कर लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो जाए कि अन्त समय में पश्चाताप करना पड़ जाए।
चन्द्र प्रभा सूद
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