सोमवार, 6 नवंबर 2017

ईश्वर रूपी मनुष्य का कर्मफल

एक गाने की पंक्तियाँ मुझे याद आ रही हैं जिसमें कवि ने ईश्वर से इस संसार में आकर कुछ समय रहने के लिए प्रार्थना की है -
             भगवान दो घड़ी जरा इन्सान बन के देख।
             धरती पे चार दिन का मेहमान बन के देख।
इन पंक्तियों में कवि के मन की वेदना छलक रही है। इसका अर्थ हम कर सकते हैं कि दुखों और परेशानियों से घिरा मनुष्य ईश्वर को उलाहना दे रहा है कि ऊपर बैठा वह बस उसे कष्टों में घिरा देखता रहता है। यदि वह इस संसार में कुछ दिन के लिए इन्सान बनकर आ जाए तो उसे भी यह अहसास हो जाएगा कि मनुष्य का जीवन फूलों की सेज नहीं है बल्कि काँटों पर चलते रहने का नाम होता है। यदि भगवान भी इन्सान बनेगा तो उसे भी चैन से बैठना नसीब नहीं होगा, उसे भी हम मनुष्यों की तरह सारी आयु पापड़ बेलने पड़ेंगे।
          उसे भी सारा समय सुखों के मीठे फल खाने होंगे और दुखों के थपेड़े भी सहने होंगे। वह अपनी सृष्टि के बनाए इन नियमों से मुक्त नहीं हो सकेगा। जब वह साधारण मनुष्यों की भाँति जन्म लेगा तो वह भी इस संसार के आकर्षणों के मकड़जाल से बच नहीं पाएगा यानी अछूता नहीं रहेगा।
          आज हम उन महापुरुषों की चर्चा करेंगे जिन्हें हम भगवान कहते हैं। जब उनका इस सृष्टि में अवतरण हुआ तो सांसरिक स्थितियाँ उनके लिए सहज व सरल नहीं थीं बल्कि विपरीत ही थीं।
           भगवान राम का जन्म राजा दशरथ के घर में बहुत समय बाद हुआ था। उनके युवा होने से लेकर राक्षसों से युद्ध करते रहे।जब उन्हें राज्य मिलना निश्चित हुआ, उस समय उनकी सौतेली माता कैकेयी ने उन्हें चौदह वर्ष का बनवास दे दिया। वे भगवती सीता और भाई लक्ष्मण के साथ राज्य का सुख भोगने के स्थान पर वन में चले गए। वहाँ सीता जी का अपहरण हो गया, उसके बाद उन्हें ढूंढते हुए यहाँ वहाँ जंगलों में भटकते रहे। फिर रावण से युद्ध जीतने के बाद राज्य का  सुख भोग भी नहीं पाए थे  कि गर्भावती सीता जी से पुनः वियोग हुआ। कितना दुर्भाग्य था कि अपने बच्चों को भी नहीं पहचान सकते थे और बाद में जब बच्चे मिले तो पत्नी माँ सीता से वियोग हो गया। अन्त में उन्होंने सरयू नदी में जलसमाधि ली।
           अब भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं। उनका जन्म मथुरा की जेल में हुआ था। उनके पैदा होने से पहले मृत्यु उनका इन्तजार कर रही थी। जिस रात उनका जन्म हुआ उसी रात उन्हें अपने माता-पिता से अलग होकर गोकुल में बाबा नन्द और यशोदा माँ के पास जाना पड़ा। उनका बचपन गायों को चराने में बीता। अभी जब वे चल भी नही सकते थे, उस समय उन पर कई प्राणघातक हमले हुए।
         उनके पास कोई सेना नही थी। कोई शिक्षा भी उन्हें नही मिल सकी। उन्हें कोई महल भी नही मिला। उनके अपने सगे मामा ने उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु समझा। वह उन्हें मारने के उपाय करता रहता था। बड़े होने पर उन्हें ऋषि सन्दीपनि के आश्रम में जाने का अवसर मिला। अपनी पसन्द की लड़की से विवाह करने का अवसर भी उन्हें नहीं मिला।
         उन्हें बहुत से विवाह राजनैतिक कारणों से या उन स्त्रियों से करने पड़े जिन्हें उन्होंने राक्षसों से छुड़ाया था। जरासन्ध के प्रकोप के कारण उन्हें अपने परिवार को सुदूर प्रान्त में समुद्र के किनारे बसाना पड़ा। दुनिया ने उन्हें रणछोड़ या कायर तक कहा। पाण्डवों के महाभारत का युद्ध जीतने का श्रेय भगवान कृष्ण को न मिलकर अर्जुन को मिला। कौरवों ने अपनी हार का उत्तरदायी श्रीकृष्ण को माना। अन्त में एक शिकारी के द्वारा पैर पर मारे गए तीर से उनकी मृत्यु हुई।
          भगवान कहे जाने वाले महामानवों भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के विषय में चर्चा की। उन दोनों के जीवन मे घटने वाली  ये सभी घटनाएँ इसी बात का द्योतक हैं कि सारी आयु वे भी मनुष्यों की तरह दुख-सुख के हिण्डोले में ही झूलते रहे। इस संसार में जो भी जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है। कोई भी जीव कर्मफल के चक्र के फेर से नहीं बच सकता, फिर चाहे मनुष्य के रूप में भगवान ही क्यों न अवतरित हो जाए।
चन्द्र प्रभा सूद
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