मंगलवार, 7 नवंबर 2017

फैशन का जनून

फैशन का जनून हर युग में रहा है। स्वयं को दूसरों से अलग दिखाने की होड़ लोगों में लगी रहती है। मानव मन की स्वाभाविक कमजोरी है कि वह सबसे सुन्दर दिखना चाहता है। नित-नये वस्त्राभूषणों की तलाश करता रहता है। ये सभी वस्त्राभूषण व प्रसाधन सामग्री उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगाते हैं।
          ईश्वर ने इस संपूर्ण सृष्टि को बहुत सुन्दर रंगों से तराशा है। एक-एक जीव-जंतु, फल-फूल, पेड़-पौधे को अनोखा सौंदर्य प्रदान किया है। सारी प्रकृति अपनी सुन्दरता से हमें मोह लेती है। जिधर भी नज़र डालते हैं उसका सौंदर्य बोध हमें आश्चर्यचकित कर देता है हम मन्त्र मुग्ध रह जाते हैं।
       इन्सान भी इसी तरह सौंदर्य की प्रतिमा बन चहकना चाहता है। इसी कारण नित-नये सौंदर्य प्रसाधनों की बाजार में भरमार हो रही है। बाजारीकरण के इस युग में कंपनियाँ दिन-प्रतिदिन जनमानस को आकर्षित करने के लिए तरह-तरह के विज्ञापन देते हैं। उन्हें हम टीवी पर देख सकते हैं। समाचार पत्रों व सड़क के किनारे लगे होर्डिंग्स पर भी ये विज्ञापन देखे जा सकते हैं।
       कंपनियाँ अपने उत्पादों को प्रचारित करने के लिए फैशन शो का आयोजन करवाती रहती हैं। युवा पीढ़ी को प्रभावित होने से नहीं रोक सकते। इस दौड़ में शामिल होकर वह धन व शरीर की हानि करती है। शरीर की हानि से तात्पर्य है कि सौंदर्य प्रसाधनों का अत्यधिक प्रयोग त्वचा को खराब करता है। इससे कैंसर जैसी बिमारियाँ गले लगाने को हमेशा तैयार रहती हैं।
       युवाओं को इस अंधानुकरण से बचना चाहिए। इस बात का ध्यान उन्हें रखना चाहिए कि ये प्रसाधन मनुष्य के प्रकृतिक सौंदर्य को नष्ट करते हैं। फैशन के अनुरूप पहनना-ओढ़ना मानवीय कमजोरी है। इससे बचना नामुमकिन तो नहीं पर मुश्किल अवश्य है।
       फैशन करते समय इस बात ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि वह फूहड़ न दिखाई दे। इसका कारण है हर फैशन हर व्यक्ति पर नहीं जँचता। अपने रंग-रूप के अनुसार यदि कलात्मक तरीके से फैशन किया जाए तो मनुष्य सुन्दर व आकर्षक दिखाई देता है लोग उसके सौंदर्यबोध की प्रशंसा करते हैं अन्यथा वह हँसी का पात्र बनता है। लोग भद्दे मजाक करने से बाज नहीं आते। इस छींटाकशी से व्यक्ति का मन दुखी होता है और लोगों का मनोरंजन होता है।
      हर फैशन की भी मर्यादा होती है। अपनी आयु व शरीर के अनुसार फैशन से मनुष्य सदा शालीन दिखाई देता है।
        सुरुचिपूर्ण फैशन कलाकारों, कवियों, चित्रकारों और समाज के सौंदर्य बोध का प्रभावी अंग है। फैशन यदि उत्तेजक व अश्लील न हो तो सर्वत्र सराहनीय होता है।  यदि फैशन फूहड़ या अंग प्रदर्शन का माध्यम बन जाए तो वह समाज में स्वीकार्य नहीं होता। ऐसे लोगों के लिए अभद्र टीका-टिप्पणी की जाती है।
       आधुनिकता के नाम पर हर मर्यादा व मान्यताओं को तोड़ा नहीं जा सकता। आधुनिकता का दंश हमें कहीं का नहीं छोड़ता। अपना घर तो उजड़ता ही है और जग हँसाई भी होती है।
         फैशन की रफ्तार सरपट भागने वाली होती है। पता ही नहीं चलता कब वह आया और कब गया। पलक झपकते ही पुराना हो जाता है। इसीलिए वही-वही डिज़ाइन थोड़ा रूप बदलकर थोड़े समय बाद हमारे सामने आ जाते हैं या कभी उसी रूप में भी। इसलिए फैशन की यह अंधी दौड़ हर किसी को पागल बना देती है।
       फैशन के इस भूत ने युवा पीढ़ी को जकड़ लिया है। इसके चक्कर में वे अपनी सभ्यता व संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। यह स्थिति किसी भी समाज के लिए घातक होती है। समय रहते अपनी जिम्मेदारियों को नहीं को छोड़ यदि इस अंधी दौड़ में बढ़ते जाएँगें तो फिर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
चन्द्र प्रभा सूद
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