रविवार, 14 अप्रैल 2019

नकारात्मक विचार से अवसाद

मनुष्य को मानसिक रोगी बनाने में उसके हृदय में बस जाने वाले नकारात्मक विचार बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। यदि मनुष्य इन नकारात्मक विचारों को समय-समय पर अपने अन्तस् से बाहर उलीचकर नहीं फेंकेगा तो ये विचार उसे उद्विग्न बनाते रहेंगे। ये उसके दिन-रात का चैन नष्ट कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति से सभी बन्धु-बान्धव परेशान रहते हैं। धीरे-धीरे वे उससे कन्नी काटने लगते हैं। इस तरह वह और भी परेशानी में घिर जाता है। उसे कुछ भी नहीं सूझता।
          फिर एक दिन ऐसा आता है कि इस संसार में वह व्यक्ति निपट अकेला हो जाता है। कोई उसके पास खड़ा होना भी पसन्द नहीं करता। यह स्थिति उसके लिए बहुत ही घातक सिद्ध होती है। ऐसे हालात बन जाने पर निश्चित ही एक दिन वह मनुष्य मानसिक रोगी बन जाता है। उस समय उसे न चाहते हुए भी डॉक्टरों के पास चक्कर लगाने पड़ते हैं। अपना अमूल्य समय और परिश्रम से कमाया हुआ धन भी अनावश्यक ही व्यय करना पड़ता है।
            नकारात्मक विचार कौन से होते हैं? इन पर विचार करते हैं। ये विचार हैं- ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, घृणा, असुरक्षा की भावना आदि। इन्हें मनुष्य अपने अन्तस् में दिनों, महीनों और सालों तक खजाने की तरह दबाकर रखता है। समय-समय पर इनका पिष्टपेषण करता रहता है। इसलिए एक छोटी-सी बात जिसे अनदेखा किया जा सकता था, समय बीतते वह पहाड़ जितनी बड़ी बन जाती है। वही बेकार या महत्त्वहीन बात मनुष्य की अशान्ति का मूल कारण बन जाती है।
          हमारे शरीर का ढाँचा ईश्वर ने ऐसा बनाया है, जिसमें अनावश्यक चीजों को बाहर निकलकर फेंकना होता है। अन्यथा वे बीमारी का कारण बन जाते हैं। जैसे खाना जो हम मनुष्य खाते हैं, चौबीस घण्टे के अन्दर वह शरीर से मल के रूप में बाहर निकल जाना चाहिए। अन्यथा कब्ज की बीमारी हो जाती है, पेट में गैस बनने लगती है, वह फूलने लगता है, बवासीर जैसी बीमारियाँ परेशान करने लगती हैं। इनके कारण मनुष्य बेचैन रहता है। तब मनुष्य को इलाज करवाना पड़ता है। फिर उसे दवाइयाँ खानी पड़ती हैं। तब कहीं जाकर उसे इस कष्ट से मुक्ति मिलती है।
           इसी प्रकार जो पानी हम मनुष्य पीते हैं, वह चार घण्टे के अन्दर शरीर से मूत्र के रूप में बाहर निकल जाना चाहिए। यदि दुर्भग्यवश वह किसी कारण से रुक जाए तो उसे निकलने के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता है। यूरिन बैग लगवाना पड़ता है। समस्या अधिक बढ़ जाए तो ऑपरेशन तक करवाना पड़ जाता है। मूत्र के रुक जाने से मनुष्य तड़पता है। उसका उठना-बैठना मुहाल हो जाता है।
        ईश्वर ने हर क्षण-प्रतिक्षण मनुष्य के लिए श्वास लेने का प्रावधान किया है। जो साँस हम मनुष्य लेते हैं, वह कुछ सेकेण्ड में शरीर से बाहर निकल जानी चाहिए। यदि वह साँस किसी कारण से बाहर न निकल पाए तो मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। तब इस शरीर को कोई भी प्रियजन अपने घर नहीं रख सकता। इस शरीर से शीघ्र ही दुर्गन्ध आने लगती है। इससे बीमारियाँ होने का डर रहता है। इसलिए इस शरीर को बिना समय गंवाए अग्नि को समर्पित कर दिया जाता है।
          इन उदाहरणों से एक ही बात समझ में आती है कि मनुष्य शरीर में रहने वाले अनावश्यक पदार्थों का यथासमय इससे बाहर निकल जाना ही लाभप्रद होता है। यदि ये शरीर से नहीं निकलेंगे तो परेशानी का कारण बन जाते हैं। उन्हें निकलवाने के लिए मनुष्य को अपने धन और समय को व्यय करना पड़ता है। इसलिए इनका प्राकृतिक उपचार यही होता है कि अपने आहार-विहार तथा स्वास्थ्य का ध्यान रखा जाए। समय-समय पर स्वयं विचार करते रहना चाहिए और योग्य व्यक्ति से परामर्श लेते रहना चाहिए।
            मनुष्य को आत्म मन्थन करते रहना चाहिए। इससे उसके अन्तस् में नकारात्मक विचार अपना घर नहीं बना सकते। यदि किसी के प्रति कोई दुर्भावना मन में आने लगती है तो वह तत्क्षण दूर हो जाती है। इस प्रकार विचारों पर विवेक का अंकुश बना रहता है। जब नकारात्मक विचारों का मन में उदय ही नहीं हो सकेगा तो मनुष्य अवसाद की स्थिति से बच जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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