सोमवार, 14 अक्तूबर 2019

आकर्षक पैकेजिंग

आकर्षक पैकिंग को देखकर हम बहुत शीघ्र प्रभावित हो जाते हैं और यह मान लेते हैं कि इसके अन्दर रखी वस्तु भी उतनी ही अच्छी क्वालिटी की होगी जितनी यह दिखाई देती है। परन्तु हमेशा ही ऐसा नहीं होता है। बहुधा हम लोग धोखा खा जाते हैं और अपने धन एवं समय की हानि कर बैठते हैं।
        उस समय हम स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस करते हैं। हमें इतना क्रोध आता है कि हमें ठगने वाला यदि हमारे सामने आ जाए तो उसका सिर फोड़ दें। परन्तु यह तो समस्या का हल नहीं है। आज किसी एक व्यक्ति या संस्था विशेष ने हमें धोखा दिया है तो इसकी क्या गारंटी है कि कोई और उसके झांसे में आकर भविष्य में ठगा नहीं जाएगा।
        समाचार पत्रों में हमें अक्सर ऐसे विज्ञापन दिखाई देते हैं जो किसी को भी बहुत प्रभावित कर लेते हैं। उनमें तरह-तरह के लालच परोसे जाते हैं।
        आप लोगों को शायद याद होगा कि कुछ वर्ष पूर्व प्लांटेशन वालों ने सबको बहुत भरमाया था। समयावधि का तो मुझे ध्यान नहीं जिसके पश्चात इन्वेस्ट की गई राशि से कई गुणा राशि लौटाने का वादा किया गया था। उसके बाद सब कहाँ चले गए किसी को पता नहीं।
        गली-मुहल्लों में भी बहुत बार ठगने की नियत से लोग आते हैं जो  वादा करते हैं कि सोने को दुगना कर देंगे। सोने को दुगना तो क्या करेंगे परन्तु वे ठग कर चले जाते हैं।
        इसी प्रकार बहुत-सी ऐसी कम्पनियाँ हैं जो उनके पास पैसा इन्वेस्ट करने वालों को बैंक की ब्याज दर से दुगना या तिगुना देने का वादा करती हैं। पर फिर थोड़े दिनों के पश्चात ही लोगों की मेहनत की कमाई बटोरकर रातोंरात गायब हो जाती हैं। अब ढूँढ लीजिए उन मक्कारों को।
          ऐसे ही कई शेयर या डिविडेंड ऐसे भी हैं जिनमें यह पंक्ति लिखी रहती है कि मार्केट रिस्क इसमें रहेगा। तो इनमें पैसा इंनवेस्ट कर करने का तो मुझे कोई औचित्य समझ नहीं आता।
        इसी प्रकार सस्ते व किश्तों पर प्लाट बेचने वाले विज्ञापन भी आकर्षित करते हैं क्योंकि सिर पर छत तो हर व्यक्ति चाहता है। वहाँ लोग पैसा फंसा देते है और जब कब्ज़ा लेने की बारी आती है तो पता चलता है कि वहाँ या तो ऐसी कोई जमीन नहीं जो उन्होंने खरीदी थी या उस जमीन को कई लोगों को बेचा गया है।
        लोगों को विदेश भेजने का धन्धा भी जोरों पर चलता है। बिना पूरे कागजों के विदेश जाने वालों का क्या हाल होता है इसके उदाहरण हमें अपने आसपास ही मिल जाते हैं।
        यह कुछ उदाहरण मैंने लिखे हैं जहाँ फंसकर मनुष्य न घर का रहता है न घाट का। एक व्यक्ति जब तअनजाने में इस तरह के प्रलोभनों में फंस जाता है तो उसका बाहर निकलना उसके ठगे जाने के बाद ही होता है। उस समय यदि कोई साथी या रिश्तेदार उन्हें चेतावनी देने का प्रयास करता है तो उसे वे अपना शत्रु समझते हैं। उन्हें उस समय लगता है कि सभी उसकी तरक्की से जलते हैं। कोई नहीं चाहता कि वह सभी सुख-सुविधाओं से सम्पन्न हो जाए।
        उस समय वे सोचते हैं कि यह सब प्राप्त करना उनके बूते की बात नहीं है इसलिए ऐसी बातें कर रहे हैं। उनके लिए वे प्रायः इन मुहावरों का प्रयोग करके उनकी हंसी उड़ाते हैं- 'अंगूर खट्टे हैं। और हाथ न पहुँचे थे कौड़ी।'
        तुच्छ लालच में आकर इन धोखेबाजों से बचना चाहिए। अपने खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को यूँ ही बरबाद नहीं करना चाहिए।
        बाद में पुलिस स्टेशन में जाकर कितनी ही शिकायतें कर लीजिए पर वे लुटेरे तो लूटकर कर नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। उन्हें पकड़ने में वर्षों लग जाते हैं। केवल सरकार या पुलिस के भरोसे न बैठकर स्वयं अपने विवेक पर भरोसा कीजिए। अपने धन को व्यर्थ न गंवाकर उसे अपने पास या बैंक में सम्हाल कर रखना चाहिए ताकि वह हमारे सुख-दुख में काम आ सके। इन लोगों के विषय में हम यही कह सकते हैं-
            ऊँची दुकान फीका पकवान।
चन्द्र प्रभा सूद
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