गुरुवार, 3 अक्तूबर 2019

कर्मफल से बचना

कर्म किए बिना मनुष्य एक पल भी खाली नहीं बैठ सकता। कभी वह शुभकर्म करता है, तो कभी अनजाने में अशुभ कर्म कर बैठता है। इसी जन्म के किए कुछ कर्मों का फल वह भोगता है, तो कुछ पूर्वजन्मों के बचे हुए कर्मों का फल उसे भोगना पड़ता है। इन कर्मों का फल उसे भोगना पड़ता है, चाहे वह चाहे अथवा न चाहे। इस कर्मफल को भोगने के लिए उसकी मर्जी नहीं पूछी जाती। अनिवार्य रूप से उसे इन्हें भोगना ही पड़ता है।
          जिन्दगी का केलकुलेशन चाहे कितनी बार क्यों न कर लिया जाए, परन्तु सुख-दुख का अकाऊँट कभी भी समझ में ही नहीं आ सकता। जब टोटल यानी जमा किया जाए तब समझ में आता है कि इस जीवन में इन कृत कर्मों के सिवा और कुछ भी बैलेंस (शेष) नहीं बचता। यही सबसे बड़ा अटल सत्य है, इसे संसार के हर जीव को स्वीकारना ही पड़ता है।
          'महाभारत' में वेदव्यास जी ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में इस कर्मफल के विधान के विषय में लिखा है-
अचोद्यमानानि यथा, पुष्पाणि फलानि च।
स्वं कालं नातिवर्तन्ते, तथा कर्म पुराकृतम्।।
अर्थात् जैसे फूल और फल बिना किसी की प्रेरणा से स्वतः समय पर प्रकट हो जाते हैं और समय का अतिक्रमण नहीं करते, उसी प्रकार पूर्वजन्मां में किए गए कर्म भी यथासमय अपना शुभाशुभ फल देते हैं।अर्थात् अपने कर्मों का फल अनिवार्य रूप से प्राप्त होता है, संसार में उससे कोई बच नहीं सकता।
          इस श्लोक का सार यही है कि इस संसार मे हर कार्य अपने समय पर होता है। वृक्ष पर फल-फूल अपने समय पर लगते हैं। उन्हें कोई निर्देश नहीं देता, उसी प्रकार मनुष्य के शुभाशुभ कर्मों का फल भी उसे उचित समय पर मिल जाता है। उसकी चीख-पुकार या उसके रोने-धोने का कोई असर उस मालिक पर नहीं होता। कर्म करते समय तो मनुष्य बहुत प्रसन्न होता है, पर उसका फल भोगते समय वह न्याय की माँग करने लगता है। जिसका कोई भी लाभ नहीं होता।
         बच्चा चाहे विद्यालय में गलती कर या चाहे घर में करे, उसे अध्यापकों के द्वारा स्कूल में और माता-पिता के द्वारा घर में सजा मिलती है। यदि वह अच्छा काम करता है, तो विद्यालय और घर दोनों स्थानों पर उसकी प्रशंसा होती है। उसी प्रकार मनुष्य को भी गलती करने पर दुख और कष्ट के रूप में सजा मिलती है। अच्छा काम करने पा सुखों के रूप में उसे शाबाशी मिलती है।
           कर्म का सिद्धान्त यही है कि मनुष्य को ईश्वर की ओर से सुख और दुख उसके शुभाशुभ कर्मों के अनुसार ही मिलते हैं। यदि शुभकर्मों की अधिकता होती है, तो मनुष्य को अच्छा घर-परिवार, भाई-बन्धु, धन-वैभव, उच्च शिक्षा, अच्छा व्यवसाय या नौकरी और अच्छा स्वास्थ्य आदि मिलते हैं। इसके विपरीत यदि अशुभ कर्मो की अधिकता होती है, तो सामान्य घर-परिवार, भाई-बन्धु, धन-वैभव, शिक्षा का अभव, साधारण नौकरी और स्वास्थ्य आदि सब मिलते हैं।
         इसीलिए हमारे शास्त्र एवं मनीषी मनुष्य को सदा शुभकर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं। अशुभ कर्मों से मनुष्य को यथासम्भव बचने के लिए परामर्श देते हैं। जो उनकी प्रेरणा से शुभकर्मों की ओर प्रवृत्त होते हैं, वे अपना इहलोक और परलोक सुधार लेते हैं। जो लोग बार-बार समझाने पर भी अशुभकर्मों की ओर आकर्षित होते हैं, वेअपने लोक-परलोक दोनों बिगाड़ लेते हैं।
          जहाँ तक हो सके अपने विवेक का सहारा लेते हुए मनुष्य को शुभकर्मों की ओर कदम बढ़ाना चाहिए, साथ ही दूसरों को भी प्रेरित करते रहना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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