सोमवार, 7 अक्तूबर 2019

आपसी कलह

घर-परिवार की आपसी कलह परिवार का समूल नाश कर देती है। घर टूटकर बिखर जाता है। परिवारी जन एक-दूसरे की शक्ल तक देखना पसन्द नहीं करते। चाहे बाद में सभी सदस्यों को अफसोस ही क्यों न हो। पर तीर कमान से निकल जाए तो वापिस नहीं आता। इसी तरह से कार्यालय आदि में बॉस और कर्मचारियों की परस्पर होने वाली तू तू मैं मैं भी वहाँ विनाश का कारण बन जाती है। आपसी कलह से कभी भी किसी का भला नहीं होता। कोई भी समस्या हो, मिल-बैठकर उसका हल निकालना अच्छा होता है।
           कलह चाहे आम परिवार की हो या राजघराने की हो, दोनों का हश्र एक ही होता है, यानी अलगाव, टूटन या बिखराव। आम परिवार में क्लेश का प्रमुख कारण धन का अभाव माना जाता है। परन्तु राजघरानों में या धनी परिवारों में धन कोई कारण नहीं होता। वहाँ सत्ता की लड़ाई प्रमुख कारण होती है। इसी कारण वहाँ दुश्मनी जन्म लेगी है। सभी सदस्य एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में लगे रहते हैं, इस कारण वे कठोर वचनों का आदान-प्रदान करते रहते हैं।
            मित्रता भी परस्पर कटु बोलने से टूट जाती है। मित्र बिना कुछ सोचे-समझे एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने लग जाते हैं। लोग तमाशा देखते हैं और पीठ पीछे मजाक बनाते हैं। कोई व्यक्ति जब कुमार्ग पर चलने लगता है, तो वह सबकी नजरों से गिर जाता है। लोग उसका तिरस्कार करने लगते हैं। क्रोध में आकर धीरे-धीरे वह अलग-थलग पड़ जाता है। तब उस दुष्प्रवृत्ति वाले व्यक्ति का साथी बनने से लोग कतराने लगते हैं।
            'पञ्चतन्त्रम्' ग्रन्थ के इस श्लोक में पण्डित विष्णु शर्मा ने बहुत ही सुन्दर शब्दों में बताया है-
       कलहान्तानि हर्म्याणि
              कुवाक्यान्तं च सौहृदम् ।
        कुराजान्तानि राष्ट्राणि
                कुकर्मान्तं  यशो नृणाम् ॥
अर्थात् आपसी कलह और वैमनस्य के कारण परिवार  नष्ट  हो जाते हैं, भले ही वह राजघराना क्यों न हो। कटु वचन कहने से दोस्ती समाप्त हो जाती है। जब कोई व्यक्ति बुरे कर्म करने लगता है तो वह लोगों में अपना मान-सम्मान खो देता है । यदि राजा (शासक) अयोग्य और दुष्ट प्रवृत्ति का हो तो राष्ट्र का नाश हो जाता है।
          इस श्लोक का सार यही है कि आपसी कलह और वैमनस्य सदा विनाश को जन्म देते हैं। कटु शब्दों का प्रयोग मित्रता का शत्रु होता है। दुष्कर्म करने वाला व्यक्ति समाज में अपने मान-सम्मान को नष्ट कर देता है। अयोग्य शासक यदि दुर्भाग्य से किसी देश को मिल जाए तो वह उसे बर्बाद कर देता है।
           किसी देश में यदि अयोग्य राजा हो, तो वह स्वयं को योग्य सिद्ध करने के लिए उठा-पटक करता रहता है। इसी कारण वह समाज में हँसी का पात्र बनता है। जो भी व्यक्ति उसकी हाँ में हाँ मिलता है, वही उसका प्रिय बन जाता है। वह अपने स्वार्थों की पूर्ति में व्यस्त रहता है, उसे देश की भलाई से कोई लेना देना नहीं होता। ऐसे देश की प्रजा भी लूट-खसौट करने लगती है। इस तरह राजा यानी शासक और प्रजा मिलकर देश का अहित करने लगते हैं।
         ऐसे रणकता वाले देश पट पड़ौसी राज्य अपनी नजर गड़ाए रहते हैं। ऐसे अराजक देश को पड़ौसी राज्य सदा अपने अधीन करने की फिराक में लगे रहते हैं। इसलिए शासक यदि व्यभिचारी, भ्रष्टाचारी, अत्याचारी, लूट-खसौट करने वाला और प्रजा का हितचिन्तक न हो, तो उस शासक को जनता को एकजुट होकर सत्ता से शीघ्र उखाड़ फेंकना चाहिए। उसे सत्ता पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं होता।
           हर रिश्ते में धैर्य और सहृदयता की आवश्यकता होती है। उन्हें अपने साथ बनाए रखने के लिए प्रेमपूर्वक व्यवहार तथा समानता का व्यवहार करना चाहिए। सदा प्रयास यही करना चाहिए कि बिखराव की स्थिति न बनने पाए, उससे पहले ही आपस में मिल-बैठकर कोई हल निकल लिया जाए। इस तरह करने से कोई छोटा नहीं हो जाता, अपितु वह महान बन जाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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