सोमवार, 13 जुलाई 2020

धर्म के लक्षण

धर्म के लक्षण

हम जिसे धारण करते हैं वह धर्म कहलाता है। हमने religion के रूप में इसे रूढ़ कर दिया है। धर्म का अर्थ हम कर सकते हैं- हमारा कर्त्तव्य ही हमारा धर्म है। मुझे धर्म का यह अर्थ अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। 'मनुस्मृति:' के इस श्लोक में महाराज मनु ने धर्म के विषय में बहुत अच्छी तरह से समझाया है-
धृति क्षमा दमोस्तेयं शोचमिन्द्रियनिग्रह:।
धी विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।।
      अर्थात् धर्म के दस लक्षण हैं- धैर्य(धृति),  दूसरों को माफ करना(क्षमा), संयम(दम), चोरी न करना (अस्तेयम्), साफ-सफाई रखना(शोचम्), इन्द्रियों को वश में करना (इन्द्रियनिग्रह:), सद् बुद्धि(धी), विद्या ग्रहण करना(विद्या), सत्य बोलना (सत्यम्) और गुस्सा न करना (अक्रोध:)।
      ये सभी नियम जीवन में सफलता प्राप्त कराते हैं। इन सभी नियमों का मन, वचन तथा कर्म से पालन करना ही धर्म है। केवल कहने मात्र से या दिखावा करने से कुछ भी लाभ नहीं होता जब तक मन के विचारों में शुद्धता नहीं होगी। हमारे सौ बार कसमें खा लेने पर भी वाणी की सच्चाई पर विश्वास नहीं हो पाता। कार्य रूप में ढालने की बात तो बाद में आती है।
      हमारे धर्म ग्रन्थ हमेशा मन, वचन व कर्म की शुचिता पर बल देते हैं। उनके अनुसार आडम्बर की कोई आवश्यकता नहीं है। हमारी कथनी-करनी का एक होना या उसमें अन्तर होना स्वयं ही उजागर हो जाते हैं, इसके लिए हमें श्रम करने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
      इसलिए हमें 'मनसा वाचा कर्मणा' अर्थात् मन, वचन और कर्म से एक होकर अपने धर्म का पालन करना होगा तभी तो हम जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेंगे।
      भगवान कृष्ण ने भगवद् गीता में स्थान-स्थान पर अर्जुन को अपने धर्म (कर्त्तव्य) का पालन करने के लिए समझाया है और प्रेरित किया है। अपने धर्म से विमुख होने वाला इहलोक या परलोक कहीं भी शांति प्राप्त नहीं करता। उसे हर ओर से तिरस्कृत किया जाता है। इसलिए उसे कहीं शान्ति नहीं मिलती। गीता का यह ज्ञान यदि हम केवल आत्मसात न करके जीवन में चरितार्थ कर लें तो हमारा कल्याण निश्चित है।
    धर्म का यह अर्थ कदापि नहीं कि हम उसके नाम पर आतंक या विद्वेष फैलाएँ अथवा रूढ़िवादी होकर अपनों का अहित कर बैठें। धर्म के लक्षण हमें सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हैं।
      अपने धर्म का पालन करते समय कितने प्रलोभन आएँ, कितनी कठिनाइयाँ रास्ता रोक कर खड़ी हों जाएँ, कितने भय दिखाए जाएँ तो भी बिना रुके अथवा बिना घबराए आगे बढ़ते रहना चाहिए। यदि परिश्रम पूर्वक ईमानदार यत्न करेंगे तो कोई कारण नहीं कि हम आकाश की ऊँचाई न छू सकें या सागर में गहरे पैठ कर मोती न ला सकें।
        हमारा लक्ष्य पलक पाँवड़े बिछा कर हमारी प्रतीक्षा कर रहा है। उसे बस कदम बढ़ा कर पाने की आवश्यकता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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