गुरुवार, 23 जुलाई 2020

नीरक्षीर विवेक

 नीरक्षीर विवेक

प्रत्येक मनुष्य को कोई विशेष गुण देकर ईश्वर इस धरती पर भेजता है। उसका यह कर्त्तव्य बनता है कि अपने निर्धारित कार्य को वह दक्षता से सम्पन्न करे। दिए गए अपने कार्य को यदि मनुष्य स्वयं पूर्ण नहीं करेगा, तो फिर उसके हिस्से का निर्धारित काम कौन करेगा? उसका कोई प्रिय उसके कार्य को नहीं कर सकता क्योंकि उसे भी तो अपना कार्य करना होता है। ऐसे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी।
          निम्न श्लोक में कवि ने बताया है कि दूध में से पानी को अलग करने का विशेष कार्य ईश्वर ने हंस को दिया है। यदि वह अपना कार्य नहीं करेगा तो फिर उसे कौन करेगा?
      नीरक्षीरविवेके 
      हंस आलस्यं त्वमेव तनुषे चेत्।
       विश्वस्मिनधुना 
       अन्य: कुलव्रतं पालयिष्यति क:। 
अर्थात् हंस नीरक्षीर विवेकी जीव है। यानी उसमें दूध में से पानी को अलग करने की क्षमता है। यदि वह आलस्य के कारण अपना कार्य नहीं करता, तो फिर दूसरा इस संसार में कौन है, जो हंस का कार्य करने में सक्षम है? अर्थात् कोई नहीं ।
           कवि के कहने का तात्पर्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर ने कुछ विशेष गुणों के साथ इस पृथ्वी पर अवतरित किया है। इसलिए हर व्यक्ति में अद्भुत क्षमता होती है। मनुष्य किसी भी कार्य विशेष को करने में सक्षम है। इसलिए हर व्यक्ति को अपना-अपना निर्धारित कार्य बिना आलस्य के पूर्ण कर लेना चाहिए। तभी वह मनुष्य स्वयं का, अपने परिवार का, अपने समाज का और अपने देश का विकास करने में सक्षम हो सकता है।
          मनुष्य को भी नीरक्षीर विवेकी होना चाहिए। उसमें अच्छाई और बुराई को अलग करने की क्षमता होनी चाहिए। यदि उसमें अच्छे और बुरे को पहचानने की समझ नहीं होगी, तो उसे किस राह को ओर जाना चाहिए का ज्ञान ही नहीं हो सकेगा। यदि वह आलस्यवश अथवा किसी लालचवश बुराई के रास्ते पर चल पड़ेगा, तो उस मनुष्य का सारा जीवन दुखों और परेशानियों में घिर जाएगा। 
        यदि मनुष्य सोच-विचार करके, सजग रहकर सन्मार्ग का चयन करेगा और उस पर चलेगा, तो उसका सारा जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होगा। उसके जीवन में प्रकाश का उदय होगा, जो उसके लिए खुशियों के द्वार खोल देगा। इसलिए सुख चाहने वाले मनुष्य को इस संसार में अपना हर कदम फूँक-फूँककर रखना चाहिए। ताकि उससे किसी भी क्षण भूल न होने पाए।
          मनुष्य को इस बात का विचार अवश्य करना चाहिए कि ईश्वर ने उसे किस विशेष कार्य के लिए इस संसार में भेज है। उसे अपना रोल या दायित्वअच्छी तरह निभाना चाहिए। यहाँ इस बात को उदाहरण से समझते हैं। रंगमंच के कलाकारों को उनका रोल दिया जाता है। यदि वे अपना किरदार ठीक तरह से नहीं निभा पाते, तो डायरेक्टर उन पर नाराज होता है। उसी प्रकार जो मनुष्य ईश्वर प्रदत्त अपना रोल ठीक से नही निभाता, उससे वह प्रभु नाराज होता है।
          जो लोग आलस्यवश अपने कार्य को टालते रहते हैं, उसे पूर्ण नहीं करने की आवश्यकता नहीं समझते, उनसे ईश्वर बहुत अधिक नाराज होता है। वह उन लोगों को क्षमा नहीं करता। सोचने वाली बात यह है कि उनके हिस्से का कार्य फिर कौन पूरा करेगा? कहने का अर्थ यही है कि सभी लोग अपने-अपने कार्यों के बोझ के नीचे दबे हुए हैं। इसलिए उनका कोई प्रिय व्यक्ति भी उनके हिस्से का काम कदापि नहीं कर सकता।
          हर व्यक्ति को चाहिए कि हंस की तरह अपने दायित्व को समझे। आलस्य बहुत बड़ा दुर्गुण है। इसलिए उसका त्याग करके पूरी सच्चाई और ईमानदारी से अपने लिए निर्धारित कार्य को पूर्ण करने का प्रयास करे। तभी इस मानव जीवन को सफल हुआ माना जा सकता है। अन्यथा ईश्वर की दृष्टि में मनुष्य असफल माना जाता है। आखिर हिसाब तो उसे ही जाकर देना होता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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