मंगलवार, 7 जुलाई 2020

भूख क्या नहीं करवाती

 भूख क्या नहीं करवाती

मनुष्य की भूख जब असह्य यानी बर्दाश्त के बाहर हो जाती है, तब वह अपने सारे आदर्शों को भूल जाता है। उस समय उसे अपने पेट की ज्वाला को शान्त करने की अतिरिक्त और कुछ भी नहीं सूझता। यही वह समय होता है, जब वह किसी भी कुकर्म को करने से नहीं घबराता। वह भीख माँगने के लिए निकल पड़ता है। परन्तु वहाँ से दुत्कारे जाने पर वह चोरी-डकैती और लूटमार करने का रास्ता अपनाने से भी परहेज नहीं करता। 
        'चाणक्यनीति:' में आचार्य चाणक्य स्पष्ट लिखते हैं कि-
        त्यजेत् क्षुधार्ताः जननी स्वपुत्रं
        खादेत् क्षुधार्ताः भुजगी स्वमण्डम् ।
        बुभुक्षितः किं न  करोति पापं
       क्षीणा जनाः निष्करुणा भवन्ति।।
अर्थात् भूख से व्याकुल एक माँ अपने प्राण बचाने के लिए अपने पुत्र को भी त्याग देती है। एक भूखी साँपिणी स्वयं अपने ही अण्डो को खा जाती है। इसीलिए कहा गया है कि एक भूखा व्यक्ति कोई भी पाप अथवा निषिद्ध कार्य कर सकता है। इसी प्रकार एक कमजोर व्यक्ति भी ऐसी परिस्थिति में निर्दय हो जाता है।
          अपने पेट की ज्वाला को शान्त करने के लिए एक माँ अपने बच्चे को त्याग देती है। कई बार टी वी पर, समाचारपत्रों में एवं सोशल मीडिया में इस प्रकार के समाचार आते हैं कि किन्ही माता-पिता ने चन्द रुपयों के लिए अपनी सन्तान को बेच दिया। कितना दुर्भाग्यपूर्ण है यह सब। पर भूख की आग जो न करवाए वही थोड़ा। जिन बच्चों को माता-पिता अपने कलेजे से लगाकर रखते हैं, उन्हें गर्म हवा तक नहीं लगने देते, उन्हें ही चन्द रुपयों के लिए बेच देना अमानवीय कृत्य है।
         साँपिणी जब अपने अण्डों को सेती है, तब उसे भूख लगती है, उस समय वह अपने ही अण्डों को खा जाती है। यानी अपने बच्चों को दुनिया में आने से ही रोक देती है। कितना क्रूरतापूर्ण कार्य है यह? प्रकृति की विडम्बना देखिए।
        बिहार में एक जाती है मुसहर। वे अपनी भूख की ज्वाला को शान्त करने के लिए चूहों को मारकर खा जाते हैं। जिन चूहों को देखकर जन साधारण को घिन आती है, उसका शिकार करके वे लोग खाते हैं।
         इस भूख की आँधी के वश में न आ पाने के कारण कुछ लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। कुछ लोगों को आपने अपने आसपास देखा होगा, जो कचरे में से बीनकर खाते हैं। उनके पास और कोई चारा नहीं होता। इससे बढ़कर दुर्भगय और क्या होगा कि एक वर्ग अन्न को झूठा छोड़ता है, उसे कूड़े में फैंकता है और दूसरी ओर उस कचरे में से बीनकर कुछ लोग अपनी इस ज्वाला को शान्त करते हैं तथा कुछ लोग बड़ी कठिनता से मिले अपने इस जीवन को ही समाप्त कर देते हैं।
         एक कमजोर व्यक्ति इस परिस्थिति में जब जूझ नहीं सकता, तो वह निर्दय बन जाता है। वह किसी की जेब भी काट सकता है और किसी का गला भी काट सकता है। उसे बस भोजन चाहिए खाने के लिए। उसके लिए किसी भी तरह धन को कमाना उसकी प्राथमिकता बन जाता है। इसका कारण है कि वह अपने पत्नी और बच्चों को भूख से बिलखता हुआ नहीं देख सकता।
        भूखा बगुला जिस प्रकार तालाब में भक्त बनकर मछलियों का शिकार करता है। उसी प्रकार कुछ लोग बगुला भक्त बनकर लोगों को ठगते हैं। कुछ लोग 'पञ्चतन्त्र' के भूखे बूढे शेर की तरह सोने का कंगन हाथ में लेकर मासूम बनकर, वह पशुओं को खाता था। उसी प्रकार कुछ भूखे व्यक्ति लालच दिखाकर, झाँसा देकर लोगों को धोखा देते हैं।
         कई घटनाएँ ऐसी पढ़ी और सुनी हैं कि भूखे होने पर मनुष्य डाकू बन जाते हैं। राहजनी करते हैं। जेबकतरे बनकर लोगों की जेब काटते हैं। यानी किसी भी दुष्कर्म को करने में सकुचाते नहीं हैं। वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्हें बस रोटी चाहिए, वह चाहे किसी भी तरीके से मिले, वह बस मिलनी चाहिए।
         पेट की आग किसी भी मनुष्य को समाजविरोधी गतिविधियों में धकेलने का कार्य करती है। मनुष्य के मन में इन सब कुकृत्यों को करते समय समाज और न्याय व्यवस्था का भी डर नहीं रहता। उसे अपनी भूख के आगे कुछ भी नहीं दिखाई देता। भूख को मिटाने के लिए वह हवालात में जाने से भी परहेज नहीं करता। उसे लगता है कि जेल में कम से कम दो समय का खाना तो मिल जाएगा। इस तरह उसे भूख की असहनीय पीड़ा से राहत तो मिल ही जाएगी।
          भूखे व्यक्ति को केवल मात्र खाने के लिए भोजन चाहिए होता है। उस समय उसे कोई उपदेश सुनना अच्छा नहीं लगता। इसिलए किसी ने कहा है-
        भूखे भजन न होई गोपाल
         ले ले अपनी कण्ठी माला।
यानी ईश्वर का भजन भी मनुष्य तभी कर सकता है, जब उसका पेट भरा हो, वह भूखा न हो।
         पूरे विश्व में बहुत से लोग हैं, जिन्हें भरपेट भोजन नहीं मिलता। भारत में भी अनेक लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, जिन्हें दो जून के भोजन नसीब नहीं होता। यह हमारा दुर्भगय है कि अभी तक हमारे देश में इतनी गरीबी है और लोग भूखे पेट सोते हैं। कई कई दिन उन बेचारों को अन्न के दर्शन नहीं होते।
          मैं यह नहीं कहती कि भोजन के लिए मनुष्य गलत काम करे, पर यदि उनके विषय में मानवीयता से विचार करें, तो हम पाएँगे कि कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से गलत कार्य नहीं करना चाहता। परन्तु वह परिस्थितियों के वश में आकर शॉर्टकट अपना लेता है।
          बहुत-सी सामाजिक संस्थाएँ इन भूखे लोगों के लिए रोटी का प्रबन्ध करने का प्रयास कर रही हैं, पर इसकी अभी और अधिक की आवश्यकता है।
चन्द्र प्रभा सूद

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