गुरुवार, 17 सितंबर 2020

प्रोत्साहन की कमी

 प्रोत्साहन की कमी

प्रोत्साहन एक ऐसा भाव है, जो प्रत्यक्षतः दिखाई नहीं देता, परन्तु यदि किसी को मिल जाए, तो उसका जीवन बदल जाता है। यदि कोई मनुष्य आलसी है, कामचोर है या कभी सफल नहीं होता, ऐसे व्यक्ति को प्रोत्साहन मिल जाए, तो वह भी चमत्कार कर सकता है। इसके विपरीत किसी कर्मठ व्यक्ति को यदि निरन्तर हतोत्साहित किया जाए, तो वह अपने जीवन में धीरे-धीरे पिछड़ने लगता है।
          जहाँ तक हो सके माता-पिता को अपने बच्चों को बाल्यकाल से प्रोत्साहित करना चाहिए। यदि वे ऐसा करते हैं, तो उन बच्चों को सफल होने से कोई शक्ति नहीं रोक सकती। इससे बच्चों में सकारात्मकता की भावना जन्म लेती है। वे सोचते हैं कि माता-पिता हमारे लिए इतना करते हैं, तो हम थोड़ा परिश्रम नहीं कर सकते? उन्हें पता होता है कि यदि कभी कहीं थोड़ी कमी रह जाएगी, तब माता-पिता उन्हें समझाकर भविष्य के लिए प्रेरित करेंगे।
           इसके विपरीत यदि माता-पिता अपने बच्चों की तुलना सदा दूसरे बच्चों से करते रहेंगे, तब उनके बच्चों के मन में हीन भावना घर कर जाएगी। यह हीन भावना बच्चों के स्वस्थ विकास लिए हानिकारक सिद्ध होती है। उस समय बच्चों के मन में नकारात्मकता का जन्म होता है। वे सोचते हैं कि कितना भी कर लो माँ-पापा ने बस हमारी गलती ही निकालनी है। इसलिए मेहनत करने का क्या लाभ? परिश्रम करने के स्थान पर जिन्दगी के मजे लो।
          माता-पिता को सदा स्मरण रखना चाहिए कि हर बच्चे में अपनी एक विशेषता होती है। सभी बच्चे एक जैसी योग्यता वाले नहीं हो सकते। यदि ऐसा सम्भव हो जाए, तब सभी बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, एमबीए या व्यवसायी ही बन जाएँगे। उस समय फिर बाकी क्षेत्रों के काम कौन सम्हालेगा? विविधता होने पर ही सभी विभिन्न कार्य अलग-अलग लोगों के द्वारा सम्पादित किए जाते हैं।
          इसी प्रकार कार्यक्षेत्र में यदि बॉस अपने अधीनस्थ लोगों को समय-समय पर प्रोत्साहित करता रहता है और उनसे गलती होने पर अकेले में समझता है, तब वह व्यवसाय चमकता है। वहाँ कार्य करने वाले लोग उत्साहपूर्वक कार्य करते हैं। फिर उस कम्पनी को नम्बर एक बनने से कोई नहीं रोक सकता। वहाँ के कार्य की गुणवत्ता में आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
           किसी व्यक्ति को प्रोत्साहित करना अपने आप में एक बड़ी विशेषता है। जिस व्यक्ति में यह गुण आ गया, समझो वह इस दुनिया को फतेह कर सकता है। माता-पिता अपने बच्चे को, गुरु अपने शिष्य को और बॉस अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को यदि समय-समय पर प्रोत्साहित करते रहते हैं, तो वे बच्चे, वे शिष्य व वे कर्मचारी सभी ही उत्साहित होकर, अपनी क्षमता से बढ़कर परिश्रम करते हैं। उसका परिणाम देखकर चकित रह जाना पड़ता है।
          प्रोत्साहन की कमी से मनुष्य का आत्मविश्वास डगमगाने लगता है। जिस प्रकार मनुष्य में किसी भी तरह के विटामिन की कमी होती है, तो उसे कठिनाई का सामना करना पड़ता है। तब उसका शरीर अस्वस्थ हो जाता है। फिर उसे स्वस्थ होने के लिए डॉक्टर के पास जाना पड़ता है और दवाई खानी पड़ती है। उस समय मनुष्य को समझ ही नहीं आता कि उसकी दिशा ठीक है गलत।
           जिन लोगों के पास इस प्रोत्साहन की कमी होती है, वे निश्चित ही जीवन की रेस में पिछड़ जाते हैं। वे कभी अपने कार्य से सन्तुष्ट नहीं हो सकते। मनुष्य के पास अवश्य ही ऐसा कोई साथी होना चाहिए, जो उसके सही कार्य करने पर उसकी पीठ थपथपा सके, उसे प्रोत्साहित कर सके। इससे वह और अधिक मेहनत करेगा और अपने सपनों को साकार करने के लिए दिन-रात एक कर देगा।
           प्रोत्साहन जीवन के सफलता रूपी ताले की कुञ्जी है। इस कुञ्जी से उस विशेष ताले को खोलकर मनुष्य सफलता के पथ पर अनवरत अग्रसर होता है। वह ऊँची उड़ान भरने में सफल होता है। इस चाबी से वञ्चित रहने वाले जीवन में हताश और निराश रहते हैं। उन्हें सदा असफलता का भय सताता रहता है। इसलिए वे आगे बढ़ने के अवसर अक्सर संकोचवश चूक जाते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद

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