रविवार, 6 सितंबर 2020

भारतीय जीवन मूल्य

 भारतीय जीवन मूल्य

इक्कीसवीं सदी में फैली कॅरोना नामक इस वैश्विक महामारी ने सम्पूर्ण विश्व को त्रस्त कर दिया है। इसके चलते कुछ खास बातों की ओर ध्यान देने पर बल दिया जा रहा है।
भरतीय जीवन मूल्यों को, आज पूरा विश्व अपनाने के लिए बाध्य हो रहा है। हम भारतीय गुलाम मानसिकता के कारण अँग्रेज लोगों की नकल करने के कारण इन मूल्यों को त्यागते जा रहे हैं। साथ ही उनका उपहास करके हम लोग आनन्दित होने लगते हैं।
         आज वैज्ञानिक व डॉक्टर सभी लोग शाकाहारी भोजन पर अधिक बल देने लगे हैं। वे लोगों को माँसाहारी भोजन को न खाने की हिदायत दे रहे हैं। कोई ऐसा जीव या जन्तु ऐसा नहीं है, जिन्हें लोग नहीं खा रहे। जिन जीवों को देखकर लोग वितृष्णा से भर जाते हैं अथवा उनसे डर जाते हैं, उन्हें भी लोग खाने लगे हैं। भरत में सदा से ही ऋषि-मुनि सात्विक भोजन खाने पर बल देते हैं।
           आज लोगों को परामर्श दिया जा है है कि थोड़ी-थोड़ी देर में साबुन से हाथ धोएँ। भारत में लोग दिन में कई बार हाथ धोते थे। आजकल टिश्यू से काम चलाया जाता है। इससे हाथों की शुद्धता नहीं हो पाती। पर हाथ धोने ही उनकी सफाई हो सकती है। खाने के पश्चात हाथ न धोए जाएँ तो लगता है, वे साफ ही नहीं हुए। मल-मूत्र त्यागने के पश्चात तो हाथ धोना आवश्यक माना जाता है। इस तरह हाथ शुद्ध कर लेने चाहिए।
          इस समय यह भी निर्देश दिया जा रहा है कि कहीं से भी आओ तो स्वास्थ्य कारणों से जूते और चप्पल घर के बाहर रखो। हमारे यहाँ तो यह परम्परा है कि बाहर पहने जाने वाले जूते और चप्पल अलग होते हैं और घर पहनने वाले अलग। गुजरात, दक्षिण भारत आदि में घर के बाहर अलमारी रखी रहती है, जिसमें जूते या चप्पल उतारकर रखे जाते हैं और फिर लोग घर में प्रवेश करते हैं।
           हमारे यहाँ तो स्वच्छता के कारण रसोईघर में भी जूते-चप्पल नहीं ले जाते थे। आजकल मॉड्यूलर किचन बन गए हैं और खड़े होकर खाना बनाया जाता है। इससे कई बीमारियाँ बढ़ रही हैं। आज डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाया जाता है। पहले महिलाएँ बैठकर खाना बनाती थीं और घर के सदस्य रसोईघर में ही बैठकर खाना खाते थे। इस प्रकार से भोजन की शुद्धता बनी रहती थी।
          इस बीमारी के चलते यह कहा जाता है कि कहीं बाहर से या ऑफिस से या अपने व्यवसाय से घर आओ तो पहले नहाकर कपड़े बदलो, फिर परिवार के साथ बैठो। हमारे यहाँ यह परम्परा रही है कि कहीं बाहर से आओ तो हाथ, मुँह और पैर धोकर घर में प्रवेश करो। इसका उद्देश्य यही होता है कि घर में बाहर की गन्दगी न आए और घर साफ-सुथरा और कीटाणु रहित रह सके। 
         मास्क लगाने को बहुत आवश्यक बताया जा रहा है। इसका कारण यही है कि वायरस से हम सब बचे रहें। भारत में जैन धर्म का एक सम्प्रदाय है, 'उसे मुँह पट्टी वाला' सम्प्रदाय कहते हैं। उनका मानना है कि बहुत से कीटाणु साँस लेने और छोड़ने के कारण मर जाते हैं। मुँह पर पट्टी लगाने से वे बच जस्ते हैं। भारत में बहुत-सी स्त्रियाँ दुपट्टे से मुँह ढकती हैं और पुरुष अपने गमछे से।
          विदेशियों की तर्ज पर हम भारतीयों ने हाथ जोड़कर नमस्कार करने के स्थान पर हाथ मिलाना आरम्भ कर दिया था। आज इस बीमारी ने हाथ मिलाने के स्थान पर फिर से हाथ जोड़कर अभिववादन करना सिखा दिया है। हाथ जोड़कर, झुककर नमस्ते करने से मनुष्य की विनम्रता का ज्ञान होता है। हमारे यहाँ बड़े-बुजुर्ग मानते हैं कि हाथ मिलाने से मनुष्य के हाथों में विद्यमान शक्तियाँ उसके हाथ से चली जाती हैं।
          इस प्रकार इस वैश्विक बीमारी ने पूरे विश्व को भारतीयता के आदर्श मूल्यों का ज्ञान करवा दिया है। जिन्हें विदेशियों की देखादेखी हम लोग स्वंय भी भूलने लगे थे। हो सकता है, अब लोगों की समझ आ जाए कि जो जीवन मूल्य हमारे मनीषियों ने स्थापित किए थे, वे गहराई लिए हुए थे। उनमें कुछ न कुछ सार अवश्य होता था। उनसे जन साधारण को लाभ ही होता है। इससे स्वास्थ्य पुष्ट होता है और घर शुद्ध व पवित्र बना रहता है। इन मूल्यों को अपनाने में ही सबका भला है।
चन्द्र प्रभा सूद

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