मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

जीवन-मृत्यु में झूलता मनुष्य

जीव इस संसार में जन्म लेता है और अपने कर्मानुसार ईश्वर प्रदत्त आयु भोगकर इस दुनिया से विदा लेता है। वह जीवन और मृत्यु के बीच में झूलता रहता है।एक शरीर से मुक्त होने के बाद उसका जन्म कब हो कोई नहीं जानता। हमारे ग्रन्थों का मानना है कि जो पुण्यात्मा होते हैं उनका पुनर्जन्म एक शरीर को छोड़ते ही हो जाता है। कुछ लोगों के कर्म ऐसे होते हैं जो वायुमंडल में वर्षो तक भ्रमण करते रहते हैं उन्हें नया शरीर नहीं मिलता। उन्हें हम भूत-प्रेत के नाम से पुकारते हैं। शेष अन्यों को अपने कर्मानुसार निश्चित अवधि के पश्चात पुनर्जन्म मिलता है। वह निश्चित अवधि क्या है व किस समय नया जन्म मिलेगा इस विषय में हमारी यह मानुषी बुद्धि नहीं जान पाती। किस स्थान पर हम जन्म लेंगे यह सब भी भविष्य के गर्भ में सुरक्षित है।
       एवंविध मृत्यु कब और किस पल आ जाए यह भी एक रहस्य है। ईश्वर के अतिरिक्त इस भेद का ज्ञान ही किसी को नहीं हो पाता। हम मनुष्यों के लिए तो इसे जान पाना असंभव-सा है। बड़े-बड़े ज्ञानी व ॠषि-मुनि इस रहस्य को खोजने में सारा जीवन बिता देते हैं फिर भी इस सार को समझने में असमर्थ रहते हैं।
        सारांशत: हम कह सकते हैं कि हमारी बुद्धि अथवा हमारी सोच से परे है इस पुनर्जन्म का रहस्य समझ पाना। इसे भले ही हम न जान सकें पर इतना निश्चित मान सकते हैं कि हम सभी इस धरती पर कुछ निश्चित समय के लिए आते हैं।
      ईश्वर ने हमें अपने कर्मों के अनुसार जो भी समय हमें दिया है उसका सदुपयोग करना चाहिए। अन्यथा हमारा जीवन इस पृथ्वी पर बोझ बन जाएगा। मृत्यु के समय हमें पश्चाताप करने का समय भी नहीं मिल पाएगा। अंतसमय में जीवन व्यर्थ गंवाने का क्षोभ मन में लेकर इस संसार से विदा होकर नवजीवन की ओर जाना होगा।
           हम चौरासी लाख योनियों के चक्र में पड़कर इस संसार में ही आवागमन करते रह जाएँगे।ऐसे तो मुक्ति का कोई भी रास्ता नहीं निकल सकेगा।
       घर, परिवार, धर्म, देश और समाज के   प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह हमें नित्य ही निष्ठापूर्वक मन, वचन और कर्म से करना चाहिए। इसमें किसी भी प्रकार का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। 
       इस असार संसार में कौन पहले विदा लेगा और कौन बाद में, यह एक अनसुलझी पहेली है। अपने किसी प्रियजन से वियोग कभी भी हो सकता है यह हमें हमेशा याद रखना चाहिए। जीवन में न जाने कौन-सी रात आखिरी होगी इसलिए सबसे मिल-जुलकर रहना चाहिए। अपने झूठे अहम के नशे में इस संसार के भौतिक रिश्ते-नातों की गरिमा और मर्यादा खंडित न होने पाए इसका ध्यान रखना आवश्यक है। हमें यह विश्लेषण समय-समय पर करते रहना चाहिए।
       ईश्वर को हमें अपने जीवनकाल में हर कदम पर पल-पल स्मरण करना चाहिए जिससे अंतकाल में जब उसके पास जाने का समय आए तो उस प्रभु से नजरें चुराने की कदापि आवश्यकता महसूस न हो। इस संसार से विदा लेते समय हमारे मन में परमपिता से मिलने की प्रसन्नता का अनुभव हो। यह मलाल न रहे कि काश समय रहते हम चेत जाते तो हम बहुत कुछ कर सकते थे।

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