शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

द्वंद्व सहन

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में द्वंद्व सहन करने पर बल दिया है। समझने वाली बात है कि यह द्वंद्व किस चिड़िया का नाम है। द्वंद्व का अर्थ है विरूद्ध स्वभाव वाली स्थितियों को सहन करना। हम इनका विषलेषण इस प्रकार  कर सकते हैं- सुख-दुख, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, जय-पराजय, मान-अपमान आदि। इसी प्रकार सर्दी-गर्मी, दिन-रात आदि प्राकृतिक द्वंद्वों को भी नित्य प्रति सहन करना पड़ता है।
          ये सभी स्थितियाँ हमारे जीवन में क्रम से आती हैं। दूसरे शब्दों में-
'चक्रनेमि क्रमेण नीचैयुपरि गच्छति दशा' अर्थात् जिस प्रकार पहिए के चलने पर उसमें में लगे हुए अरे(तीलियाँ) ऊपर और नीचे होती रहती हैं, उसी प्रकार ही हमारे जीवन में सुख और दुख की स्थिति होती है।
     ये स्थितियाँ हमारे जीवन में निरंतर आती रहती हैं। यह क्रम अनवरत चलता रहता है। कभी सुख-समृद्धि के हिंडोले में झूलते हुए जीवन का आनन्द लेते हैं और कभी दुख-परेशानियों में घिर कर व्यथित होते हैं।
        जीवन में ऐसा समय भी आता है जब हम उन्नति की पराकाष्ठा को छूते हैं और फिर ऐसी पटखनी खाते हैं कि जमीन में लग जाते हैं।
         स्पष्ट शब्दों में हमें भगवान कृष्ण ने समझाया गया है कि ये सारे द्वंद्व मानव जीवन में बारी-बारी से आते हैं। कभी हमें सुख मिलता है कभी दुख। कभी हम उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं तो कभी कठोर श्रम करने पर भी अवनति के गर्त में गिरते हैं। जब कभी हमारा यश चारों ओर फैलता है तब हम आसमान में उड़ने लगते हैं। हम अपने झूठे अहंकार में डूबकर अपने चारों ओर एक अभेद्य-सी दीवार खड़ी कर लेते हैं। तब हम हर किसी को कीट-पतंगों की भाँति समझते हैं। हम भूल जाते हैं कि ऐसा करने से हम निश्चित ही अपयश के भागीदार बनेंगे। इस स्थिति से यथासंभव बचना चाहिए।
         काम-धंधे में कभी-कभी हमें आशा से बढ़ कर लाभ मिलता है तो कभी सावधान रहते हुए भी अचानक हानि उठानी पड़ जाती है। इस स्थिति के लिए हम तैयार भी नहीं होते परंतु फिर भी हमें यह कष्ट झेलना पड़ता है। 
        बदलते मौसम में सर्दी-गर्मी आदि ऋतुओं को झेलना मनुष्य की मजबूरी है। दिन-रात प्रतिदिन अपना संदेश देते रहते हैं। आंधी-तूफान, अतिवृष्टि-अनावृष्टि आदि प्राकृतिक द्वंद्वों को भी सहन करना पड़ता है। ये सब भी समयानुसार ईश्वर की इच्छा से इस सृष्टि पर मानव जीवन में आते रहते हैं। इनसे बच पाना संभव नहीं होता बल्कि सामना करना पड़ता है।
        निष्कर्षत: हम अपने जीवन में इसी प्रकार इन सभी द्वंदों को सहन करते हैं। ये सभी स्थितियाँ हर मनुष्य के जीवन में उसके कर्मों के अनुसार अवश्यमेव आती हैं। इनका सामना करना हमारी मजबूरी है क्योंकि हमारे पास और कोई चारा नहीं है। इसलिए इनका सामना सम होकर अर्थात् एक समान रह कर करना चाहिए।
        ईश्वर की शरण में जाने और उसकी उपासना करने से ही इन द्वंद्वों को सहन करने की शक्ति मिलती है। उसी से गुहार लगाओ, उसी का स्मरण करने से ही सच्चा सुख और शांति मिलती है। इसलिए उसकी शरण में जाना ही एकमात्र विकल्प है।

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