सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

माता-पिता का सम्मान

एक मित्र ने आग्रह किया कि  कृपया माता-पिता के आदर हेतु भी आप लोगो को प्रेरित करें।
        उनके इस सुझाव के अनुसार प्रस्तुत हैं मेरे उदगार। माता-पिता हमें इस संसार में लाकर हम पर बहुत उपकार  करते हैं। उनके इस ॠण को मनुष्य चुका नहीं सकता चाहे वह सारी आयु उनकी सेवा करता रहे। माँ पालन-पोषण करती है, स्वयं गीले में रहकर हमारे सुख का ध्यान रखती है। वह हमें अक्षर ज्ञान भी कराती है। इसलिए वह हमारी प्रथम गुरू है, महान है और पूज्या है। पिता हमारा पोषक है इसलिए वह आकाश से भी ऊँचा है और महान है।
          हमारे धर्म ग्रंथ माता-पिता को देवता मानने का आदेश देते हैं। मंदिरों में जाकर पत्थर के देवी-देवताओं की हम पूजा करते हैं परंतु घर में बैठे जीवित देवताओं यानि माता-पिता की अवहेलना करते हैं। उनकी सेवा करने के स्थान पर उन्हें दाने-दाने का मोहताज बना देते हैं। घर में उन्हें रहने का ठिकाना भी नहीं देना चाहते। उनकी जरूरतों को पूरा करने में हम कोताही करते हैं। आजकल विदेशियों की नकल पर कुछ बच्चे माता-पिता को ओल्ड होम में भेज देते हैं जो हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार शोचनीय स्थिति है।
        दोनों पति-पत्नी यदि कमाते हैं तो भी माता-पिता को देने के लिए उनके पास पैसे नहीं बचते जबकि अपने खर्च में उनकी कोई कमी नहीं होती। उनके अपने सभी कार्य अपने निश्चित ढर्रे पर चलते रहते हैं। यह बहुत निन्दनीय है। व्यापारियों की हालत भी कोई अधिक अच्छी नहीं है । जमा-जमाया कारोबार सम्हालने पर भी उन्हें अपने ही माँ-पापा बुरे लगने लगते हैं।
         बच्चे अपने माता-पिता से सारी उम्मीदें रखते हैं। उनके मरने के पश्चात लाखों रुपये अपनी शान बघारने के लिए खर्च कर देंगे ताकि समाज में उनकी नाक ऊँची रहे।
         बच्चे अपने माता-पिता से सारी उम्मीदें रखते हैं। उनके पास जो धन-संपत्ति या कारोबार आदि है, सब समेटना चाहते हैं। वे हर समय माता-पिता को उनके कर्तव्य याद दिलाना चाहते हैं परंतु अपने सारे दायित्वों से विमुख हो जाते हैं। जिन माता-पिता को जीते-जी पानी भी नसीब नहीं होत उनके मरने के पश्चात  उनके बच्चे लाखों रुपये अपनी शान बघारने के लिए खर्च कर देते हैं ताकि समाज में उनकी नाक ऊँची रहे।
        अपने बच्चों के समक्ष ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करने के स्थान पर उन्हें ऐसे आदर्श सिखाएँ कि वे अपने माता-पिता का अनादर करने की हिम्मत न कर सकें। वे समाज के डर से नहीं अपने मन से माता-पिता की सेवा करें और उनके प्रति अपने दायित्वों को पूरा करें।
         मैं निराशावादी बिल्कुल नहीं हूँ। आज भी ऐसी संतानें हैं जो अपने माता-पिता के लिए हर सुख का बलिदान कर उनके लिए जीते हैं और हर समय उनके सुख-साधनों को जुटाते हैं। ऐसे ही बच्चों के कारण हमारी सांस्कृतिक विरासत बची हुई है और भारतीय पारिवारिक ढाँचा बरकरार है।

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