शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

ईश्वर को पाना

मनुष्य के हृदय में यदि ईश्वर के लिए सच्चा प्यार है, उसे पाने की सच्ची तड़प है तो उसे वह अवश्य मिल जाता है। जैसे सांसारिक या भौतिक वस्तुओं को पाने की मनुष्य जब कामना करता है तो अथक परिश्रम करके उसे पाकर ही चैन लेता है। जब मन परमात्मा की भक्ति में रमने लगता है तो मनुष्य उस मालिक को सर्वत्र अनुभव करता है। हर जीव उसे परमात्मा का रूप ही दिखाई देने लगता है। तब किसी को मारना तो दूर, वह किसी का अहित करने के विषय में सोच भी नहीं सकता।
           वाट्सअप पर एक कथा पढ़ी थी। उसमें कुछ सुधार करके आप लोगों के साथ साझा कर रही हूँ। एक छह साल का छोटा-सा बच्चा प्रायः परमात्मा से मिलने की जिद किया करता था। उसकी इच्छा थी कि एक समय की रोटी वह भगवान के साथ खाए। एक  दिन उसने एक थैले में पाँच-छह रोटियाँ रखीं और परमात्मा को ढूंढने निकल पड़ा। चलते चलते वह बहुत दूर निकल गया और संध्याकाल हो गया।
           उसने देखा नदी के तट पर एक बुजुर्ग बैठा हुआ है। ऐसा लगा जैसे वह भी उसी के इन्तजार में वहाँ बैठा, उसका रास्ता देख रहा हो। वह छह साल का मासूम बालक बुजुर्ग के पास जा कर बैठ गया।अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लगा। उसने अपना रोटी वाला हाथ उस बूढे व्यक्ति की ओर बढ़ाया और मुस्कुराकर देखने लगा। बूढे ने रोटी ले ली और उसके झुर्रियों वाले चेहरे पर अजीब-सी ख़ुशी आ गई, आँखों में ख़ुशी के आँसू भी थे। बच्चा उस वृद्ध को देखे जा रहा था, जब उसने रोटी खा ली तो बच्चे ने एक और रोटी उसकी ओर बढ़ा दी।
           बूढ़ा व्यक्ति बहुत खुश था। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये। जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत लेकर घर की ओर चलने लगा। वह बार-बार पीछे मुड़कर देखता  तो पाता बुजुर्ग व्यक्ति भी उसी की ओर देख रहा था।
           बच्चा घर पहुँचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देख जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी, बच्चा बहुत खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा, तो बच्चे ने बताया, "माँ, आज मैंने परमात्मा के साथ बैठकर रोटी खाई। आपको पता है उन्होंने भी मेरी रोटी खाई। माँ परमात्मा बहुत बूढ़े हो गये हैं। मैं आज बहुत खुश हूँ माँ।"
            बुजुर्ग जब अपने गाँव पहुँचा तो गाँव वालों ने देखा बूढ़ा बहुत खुश हैं। किसी ने उसके इतने खुश होने का कारण पूछा? बूढ़ा बोला, "मैं दो दिन से नदी के तट पर अकेला भूखा बैठा था, मुझे पता था परमात्मा आएँगे और मुझे खाना खिलाएँगे। आज भगवान् आए, उन्होंने मेरे साथ बैठकर रोटी खाई और मुझे भी बहुत प्यार से रोटी खिलाई। बहुत प्यार से मेरी ओर देखते रहे, जाते समय मुझे गले भी लगाया। परमात्मा बहुत ही मासूम हैं, वह बच्चे की तरह दिखते हैं।"
          यह कथा यही बोध करवाती है कि ईश्वर हमारी तरह कोई मनुष्य नहीं है जो किसी के पुकारते ही हर स्थान पर उपलव्ध हो जाएगा। वह अपने भक्तों के समक्ष किसी भी रूप में प्रस्तुत हो जाता है और उनकी समस्याओं का समाधान करके उन्हें सन्तुष्ट कर देता है। जहाँ तक हो सके किसी भी जीव का तिरस्कार नहीं करना चाहिए। हर जीव उस परमपिता परमात्मा का अंश है, इसे सदा स्मरण रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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