सोमवार, 3 सितंबर 2018

दुष्ट क्रोध

लाल-लाल आँखों से
डराता हुआ मेरा ये क्रोध
शायद आज अनावश्यक ही
मेरी परीक्षा लेने को आतुर हो रहा है।

मुझे तो अभी कुछ भी
समझ में नहीं आ रहा है
ये क्योंकर मुझे सता रहा है
आखिर मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहा है?

देखो तो क्रोधवश मैं
आपे से बाहर हो रही हूँ
मेरी भृकुटि तनती जा रही है
मेरा चेहरा अनायास लाल होने लगा है।

मेरा सारा शरीर अब
थर-थर काँपने लगा है
चाहकर संयत नहीं हो रही हूँ
मैं बस बहुत कुछ बोल देना चाहती हूँ।

छोटी-सी जबान मेरी
अब लड़खड़ाने लगी है
पर बोलने से नहीं हट रही है
देखो न जाने क्या क्या कहती न रही है।

मेरी सारी कुण्ठाएँ
मेरे सारे जो आक्रोश हैं    
वे सब मौका तलाश रहे हैं
बस बाहर निकलने को मचल रहे हैं।

अपनों से झगड़ा करवा
उन्हें भला-बुरा कहलाकर
सबसे बेगाना बनाना चाहता है
दुष्ट क्रोध दूर खड़ा तमाशा देख रहा है।

इसने बहुत विनाश किया
सृष्टि को तबाह औ बर्बाद किया
इसका ताण्डव जब दिख जाता है
तब चारों ओर हाहाकर मचने लगता है।

सोचती हूँ इसे वश में करूँ
अपने ऊपर हावी न होने दूँ
हर बार मेरी कसम तोड़ देता है
मुझे सदा मुँह के बल गिराकर हँसता है।

दुष्ट क्रोध मेरी चुनौती है
तेरे झाँसे में कभी न आना है
लाख यत्न कर ले मैंने नहीं हारना
मन के कोने में तुझे जाकर शरण लेनी है।
चन्द्र प्रभा सूद
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