बुधवार, 30 नवंबर 2016

मैं और तुम नहीं , हम

मेरे कुछ भी कह देने से न जाने क्यों
तुम्हारा झूठा अहं तिलमिला जाता है।

छोड़ दो  पुरुषत्व का ओढ़ा झूठा दम्भ
बन जाओ एक आम साधारण इन्सान।

पुरानी बेकार की  रिवायतों  को छोड़ो
जीवन में कुछ नया लाओ, नया सोचो।

हम दोनों हैं जब एक रथ के दो पहिए
तब क्या होगा बड़प्पन और छोटापन।

दोनों को बराबर मानने से ही मिलेगा
जीत की खुशी का अविरल धनबल।

यह रूठना मनाना बहुत हो गया अब
चलो कर लेते हैं नई डगर की तलाश।

व्यर्थ की अना से कोई लाभ न होगा
भूल जाओ क्या हुआ औ क्यों हुआ।

कुछ नहीं रखा इन  हिसाबी बातों में
चले आओ मीत एक नई सोच लिए।

क्षणभंगुर ये जीवन न होगा  अपना
छोड़ो मत प्यार की सुहानी गलियाँ।

पग-पग कदम बढ़ाते चलें हाथ थामे
जहाँ कहलाएँ हम, मैं और तुम नहीं।
चन्द्र प्रभा सूद
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें